आई.सी.एस. परीक्षा पास करने के बाद अरविन्द घोष ब्रिटिश सरकार की नौकरी न करके अपने राष्ट्र को स्वाधीन कराने के कार्य में सक्रिय हो गए। उन्होंने ‘वन्देमातरम्’ तथा ‘कर्मयोगी’ पत्रिकाओं के संपादक होने के नाते जन-जागरण अभियान में योगदान किया। अपने देशवासियों को संबोधित करके लिखे गए उनके संपादकीय को अंग्रेज सरकार ने आपत्तिजनक घोषित कर राजद्रोह का मुकदमा दायर कर दिया। अरविन्द घोष के गिरफ्तारी के वारण्ट जारी हो गए। वे फरार हो गए। और एक दिन अरविन्द गुप्त रूप से कोलकाता से नौका द्वारा फ्रांस शासित क्षेत्र चन्द्रनगर पहुँचने में सफल हो गए।
चन्द्रनगर में अरविन्द के सहयोगी क्रान्तिकारी सक्रिय थे। उन्होंने उन्हें चुपचाप कोलम्बो जाने वाले जहाज में बैठा दिया।
5 अप्रेल, 1910 को जहाज पाण्डिचेरी में रुका। अरविन्द उतरे और चुपचाप एक आश्रम में चले गए, जहाँ उन्होंने जीवन-पर्यन्त साधना की। कुछ समय बाद पाण्डिचेरी का वह आश्रम असंख्य भक्तों के प्रेरणा-स्रोत महर्षि अरविन्द की साधना स्थली और एक तीर्थस्थल बन गया। - शिवकुमार गोयल
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