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वीरांगना सती प्रतिभा देवी

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वर्तमान युग के दधीचि, विश्‍व के अद्वितीय प्राणिवत्सल संत परम तपस्वी महान् गौभक्त श्रीमन्महात्मा रामचन्द्र वीर महाराज की एकमात्र पुत्रवधु एवं सुविख्यात योद्धा संत पूज्य आचार्यश्री धर्मेन्द्र जी महाराज की सहधर्मिणी श्रीमती प्रतिभादेवी जी सभी अर्थों में आदर्श हिन्दू नारी का परिपूर्ण प्रतीक थीं।

वे वीर पुत्री, वीर वधू, वीर पत्नी और वीर माता होने के साथ-साथ स्वयं वीरांगना थीं। भय उन्हें छू तक नहीं गया था। वे देशभक्त, ममतामयी, वात्सल्यमयी महीयसी महिला थीं। उनके असामयिक निधन से हिन्दू समाज को अपूरणीय क्षति हुई है।

विक्रम संवत 1997 की पौषी पूर्णिमा के पवित्र दिन प्रतिभा जी का आविर्भाव जहानाबाद (बिहार) के सुप्रतिष्ठित एडवोकेट पं. थानेश्‍वर प्रसादसिंह शर्मा की धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्यादेवी जी की कोख से हुआ। उनके पिता हिन्दू महासभा के नेता थे। वे प्रभावशाली जमींदार और दबंग हिन्दू नेता थे । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वे नगर संघचालक थे।

श्री थानेश्‍वर बाबू का घर हिन्दू कार्यकर्ताओं का प्रिय केन्द्र था। कार्यकर्ताओं और संघ के प्रचारकों का वह अघोषित आश्रयस्थल था। बिहार के प्रांत संघचालक स्व. श्री कृष्णवल्लभ नारायण प्रसाद सिंह और सुप्रसिद्ध हिन्दू योद्धा श्री मथुरासिंह जैसे विशिष्ट जन श्री थानेश्‍वर बाबू के दूर-निकट के स्वजन थे। द्वितीय सर संघचालक पूजनीय श्री गुरु जी का उन पर विशेष स्नेह था। श्री गुरु जी श्री थानेश्‍वर बाबू के घर तीन बार पधारे थे। श्रीमन्महात्मा रामचन्द्र वीर महाराज की उन पर विशेष कृपा थी।

ऐसे हिन्दुत्वनिष्ठ देशभक्त परिवार में जन्मी प्रतिभा जी को अपने प्रभावशाली पिता और परम धार्मिक जननी के सभी सद्गुण और सुसंस्कार तो मानो विरासत में ही प्राप्त हुए थे। वे माता के समान परम आस्तिक और धर्मनिष्ठ थीं, तो पिता के समान स्पष्टवादिनी और निर्भीक भी थीं। तीन भाइयों और पाँच बहनों के भरे-पूरे परिवार में उनका व्यक्तित्व विलक्षण था।

1966 में ऐतिहासिक गोरक्षा आन्दोलन में पूज्य वीर जी महाराज की अनशन के बीच गिरफ्तारी के बाद हिन्दू महासभा भवन के परिसर में आचार्यश्री धर्मेन्द्र जी ने जब अनशन प्रारंभ कर दिया और पूजनीय श्री गुरु जी स्व. श्री दीनदयाल उपाध्याय, स्व. श्री माध्वराव आदि के साथ उन्हें देखने आये, तो प्रतिभा भाभी जी से मिलने उनके कक्ष में गये।

प्रतिभा जी और तीन शिशुओं को देखकर श्री गुरु जी का मन भीग गया । वे बोले- “उधर जेल में वंदनीय वीर जी महाराज का अनशन चल रहा है और इधर श्री धर्मेन्द्र जी अनशन कर रहे हैं। तुम पतिदेव को समझाती क्यों नहीं ?“

श्री गुरु जी के चरणों में प्रणाम करके प्रतिभा जी ने विनम्रतापूर्वक कहा- “वे सबको समझाते हैं । उन्हें मैं कैसे समझा सकती हूँ? वे देश की सेवा कर रहे हैं। मैं उनकी सेवा कर रही हूँ। आपका आशीर्वाद उनको भी चाहिए, मुझे भी चाहिए।“

श्री गुरु जी अवाक् और चकित रह गये।

श्‍वसुर का जेल में और पति का हिन्दू महासभा भवन में अनशन चल रहा था। भाभी जी सत्याग्रह की तैयारी कर रही थीं। देश के कोने-कोने से सहस्त्रों सत्याग्रही प्रतिदिन दिल्ली आते थे और ‘गोमाता की जय’ का घोष करते हुए गिरफ्तार होकर जेल चले जाते थे। तिहाड़ जेल सत्याग्रहियों से भर गयी थी। किन्तु इतने विराट आन्दोलन में अब तक एक भी महिला जेल नहीं गयी थी।

भाभी जी ने प्रथम महिला सत्याग्रही जत्थे का नेतृत्व करते हुए जेल जाने की घोषणा की और उसकी तैयारी में जुट गयीं। उन दिनों श्री मदनलाल खुराना और श्रीमती शकुन्तला आर्या भाभी जी की सभाओं का आयोजन करते थे। श्री खुराना आगे चलकर जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के प्रथम पंक्ति के नेता बने और श्रीमती शकुन्तला आर्या दिल्ली महानगर की महापौर हुई। इस बीच 31 अक्टूबर को दिल्ली पुलिस ने आचार्यश्री को गिरफ्तार करके तिहाड़ कारागार पहुँचा दिया।

पूर्व निश्‍चित कार्यक्रम के अनुसार 1 नवम्बर, 1966 के प्रातःकाल आन्दोलन के पहले महिला सत्याग्रही जत्थे को लेकर वंदनीया भाभी जी संसद भवन की ओर रवाना हुई। इस जत्थे में सुविख्यात हिन्दू नेता प्रो. रामसिंह जी की धर्मपत्नी, गोभक्त पं. विश्‍वम्भरप्रसाद शर्मा की धर्मपत्नी और श्रीमती शकुन्तला आर्या सम्मिलित थीं। भाभी जी की गोद में दस मास के पुत्र प्रणवेन्द्र भी थे। 3 वर्ष की पुत्री प्रियंवदा और 5 वर्ष की पुत्री प्रेरणा भी माँ के साथ थीं।

संसद भवन के द्वार तक पहुंचने पर पुलिस ने इस दल को रोका, तो भाभी जी कुपित सिंहनी सी दहाड़ उठीं। अपनी चूड़ियां पुलिस अधिकारियों को दिखाती हुईं बोलीं- “लो कायरो ! चूड़ियाँ पहन लो! हमें रोकते हो? गोमाताओं को उधेड़ने वाले कसाइयों को नहीं रोकते ?’’

एक उच्चाधिकारी ने कहा- “हम तो कानून के बन्दे हैं । कानून बन जाएगा तो उन्हें भी रोकेंगे।’’
प्रतिभा जी ने ललकारते हुए कहा- “अरे तो कानून बनवाने में हमारी मदद करो ! मदद नहीं कर सकते तो नौकरी छोड़ दो !’’

उच्चाधिकारी सामने से हट गये। महिला पुलिस आयी तो प्रतिभा जी ने गोदी का शिशु प्रणवेन्द्र साथ की एक सत्याग्रही महिला को सौंपा और महिला पुलिस से जूझ गयीं। पुलिस वैन के ड्रायवर सरदार जी के मुँह से निकला “ओह ! औरत है या शेरनी?’’ प्रतिभा जी ने सुन लिया। मुड़कर बोलीं- “न औरत हूँ, न शेरनी ! तुम्हारी बहन हूँ !’’

उनकी इस अनोखी भंगिमा को देखकर पुलिसकर्मी सहम गये और पुरुष सत्याग्रहियों के जोश का ज्वार आकाश छूने लगा। कुछ ही समय में वीरांगना वीरपत्नी अपनी तीन सन्तानों और सहयोगिनी देवियों सहित तिहाड़ कारागार में पहुँचा दी गयी, जहाँ परमसंत श्‍वसुर और तपस्वी पति एक साथ अनशन कर रहे थे। वंदनीया प्रतिभा भाभी के उस तेज को देखकर धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज भी चकित हो गये थे। 24 घंटे में यह सत्याग्रही जत्था मुक्त कर दिया गया।
किन्तु फिर तो महिला सत्याग्रहियों की बाढ़ आ गयी। सात नवम्बर तक आन्दोलन उग्रता की चरम सीमा तक जा पहुँचा, जिसका दमन करने के लिए प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने पार्लियामेन्ट स्ट्रीट को गोभक्तों के रक्त से रंजित करा दिया। भारतीय लोकतंत्र का इतिहास कलंकित हो गया। आन्दोलन का दमन हुआ। अनशन समाप्त कराये गये।

आसन्न महानिर्वाचन में अनेक राज्य कांग्रेस के हाथों से खिसक गये। संविद सरकारें बनीं। ग्वालियर की जनता के प्रचंड अनुरोध पर आचार्यश्री धर्मेन्द्र जी महाराज ने वहाँ से लोकसभा का चुनाव लड़ा। वंदनीय भाभी जी की तेजस्विता के दर्शन ग्वालियर की जनता ने भी किये।

1967 से 2007 तक के कालखंड में 40 वर्षों में देवी प्रतिभा की विभिन्न भूमिकाएँ रहीं। किन्तु मूलतः वे आचार्यश्री की प्रेरणाशक्ति बनकर उनके जीवन की ऊर्जा के रूप में सक्रिय रहीं। दो पुत्रों और चार पुत्रियों को उन्होंने जो संस्कार दिये उनसे सब परिचित हैं।

प्रायः प्रत्येक चुनाव में विराट नगर की जनता उन्हें प्रत्याशी के रूप में देखना चाहती थी, किन्तु वे सभी प्रलोभनों से मुक्त रहीं। तीन वर्ष उन्होंने समाज कल्याण परियोजना की अध्यक्षा के रूप में अपनी क्षमता का यशस्वी प्रदर्शन किया। क्षेत्र का प्रत्येक व्यक्ति उनकी ममता से अभिभूत था। पूज्य आचार्यश्री धर्मेन्द्र जी महाराज का विशाल भक्त परिवार उन्हें अपनी ममतामयी माँ के रूप में देखता था।

उनकी राष्ट्रीय अन्तरराष्ट्रीय विषयों में गहरी रूचि थी। उनकी टिप्पणियाँ और निष्कर्ष सटीक होते थे। 66 वर्ष की आयु में वे ऊर्जा, उत्साह और कर्मण्यता से परिपूर्ण थीं। उनका व्यक्तित्व अलौकिक दिव्यता अनुभव कराता था। अनभ्र आकाश से एकाएक हुए वज्रपात के समान उनका असामयिक निधन उनके विशाल भक्त परिवार के लिए असहनीय आघात है, जो उन्हें अपनी ममतामयी माँ के रूप में देखता था।• - शिव कुमार गोयल

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