धर्मशास्त्रकार महर्षि मनु ने धर्म के दस लक्षण कहे हैं-
धृतिः क्षमा दमोस्तेयं शौचचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्॥
धैर्य धारण करना, क्षमा करना अर्थात् अपने से निर्बल ने कोई भूल कर दी है तो उसे सहन कर लेना, उसको सुधार कर लेने के लिए कह देना।
दम- स्वयं पर नियन्त्रण करना। अस्तेय- चोरी का त्याग। शौच-अन्दर और बाहर की पवित्रता। इन्द्रिय-निग्रह- अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण। धीः-बुद्धि या विवेक। विद्या- पदार्थों की जानकारी। सत्य- सत्य व्यवहार करना। जो पदार्थ जैसा है उसको वैसा ही कहना, मानना और लिखना सत्य कहाता है। अक्रोध-आक्रोश और आवेश में आकर कोई अनुचित कार्य न कर बैठना। ये दस धर्म के लक्षण बताए गए हैं। जिस तत्व में ये दस लक्षण हैं वो धर्म है। और ये धर्म सार्वभौम है। दुनिया का किसी भी हिस्से का रहने वाला व्यक्ति हो, दुनिया के किसी भी मत-मजहब और पन्थ को मानने वाला व्यक्ति हो, उसके लिये के इन दस लक्षणों को अपने जीवन में धारण करना अनिवार्य है। इन धर्म के लक्षणों के बिना रहा ही नहीं जा सकता। ये सार्वभौम हैं।
ये बताया था मैंने कि धर्म और सम्प्रदाय में अन्तर है। आज धर्म को और सम्प्रदाय को एक मान लिया गया है। मोटे रूप में यह समझ लें कि धर्म वो होता है जो सबके लिये समान रूप से आवश्यक होता है। सबके लिये समान रूप से अनिवार्य होता है। जो बात सबके लिये होती है वो धर्म होता है और जो बात व्यक्तिगत होती है, कुछ लोगों के लिये होती है वह सम्प्रदाय, मत, मजहब और पन्थ होती है। आप अपने परिवेश में रहने वाले, अपने समाज में या परिवार में रहने वाले लोगों के साथ मित्र की दृष्टि से व्यवहार करते हैं, ये धर्म है। आप परमात्मा को किस रूप में मानते हैं? साकार रूप में मानते हैं या निराकार रूप में मानते हैं ये धर्म नहीं है। ये सम्प्रदाय है। आप मूर्ति को भगवान मानकर उसकी पूजा करें या निराकार परमात्मा की उपासना करें। ये सम्प्रदाय के अन्तर्गत आता है। आप पूरब की तरफ मुख करके उपासना करें या पश्चिम की ओर मुख करके उपासना करें। ये आपका व्यक्तिगत विषय है। इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। आप परमात्मा को माने या न मानें। आप आस्तिक हैं या नास्तिक हैं, यह आपका व्यक्तिगत विषय है।
धर्म तो यह कहता है कि आप परमात्मा को मानते हैं या नहीं मानते हैं यह नहीं पूछा जा रहा है। बल्कि प्रश्न तो यह है कि आप परमात्मा के बन्दों से कितना प्यार करते हैं? खुदा के बन्दे तो हजारों जंगलों में फिरते हैं मारे मारे। मैं उसका बन्दा बनूंगा जिसको परमात्मा के बन्दों से प्यार होगा। जिसको खुदा के बन्दों से प्यार होगा। आप प्राणियों में, जीवों में कितनी मित्र भावना की दृष्टि रखते हैं,कितना अच्छा व्यवहार करते हैं वो धर्म है।
आज कई प्रकार की भ्रांतियाँ हैं धर्म के विषय में। एक तो यह कहा जाता है कि ’धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र।’ भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। राजनीति को धर्म से अलग करो और धर्म को राजनीति से अलग करो। धर्म में राजनीति नहीं होनी चाहिए या राजनीति में धर्म नहीं होना चाहिए। और धर्म के नाम पर वोट मांगना अपराध है। धर्म के नाम पर वोट मांगना ठीक नहीं है। वो साम्प्रदायिकता है। सम्प्रदाय को और धर्म को दोनों को घाल-मेल कर दिया गया है। वास्तविकता तो यह है कि ‘धर्म’ का पर्यायवाची कोई शब्द हो ही नहीं सकता। कोई राष्ट्र न तो धर्मनिरपेक्ष हो सकता है और न होना चाहिए। अच्छा, धर्म के नाम पर तो वोट नहीं मांगना चाहिए। धर्म के नाम पर वोट मांगने का मतलब यह है कि मैं अपने कर्त्तव्यों का सच्चाई से, ईमानदारी से निर्वहन करूंगा। मैं निर्बलों को नहीं सताऊंगा। मैं दुष्टों को दण्ड दूंगा और देश की ठीक-ठीक प्रकार से सेवा करूंगा। धर्म के नाम पर वोट मांगने का यह तरीका है। और आप कहते हैं कि धर्म के नाम पर वोट मत मांगो। तो क्या ये कहें कि मैं निर्बलों को सताऊंगा, देश पर अत्याचार करूंगा, मैं अपने कर्त्तव्यों का पालन सच्चाई से और ईमानदारी से बिल्कुल नहीं करूंगा। और नए-नए अनेक प्रकार के घोटाले करूंगा। तो क्या ये जो अधर्म आचरण है इस पर वोट मांगना चाहिए? जिस दिन यह आपकी विचारधारा बन जाएगी, उस दिन राष्ट्र, समाज और परिवार को कोई भी नहीं चला सकता। धर्म को सम्प्रदाय के साथ जोड़ दिया गया है। धर्म को सम्प्रदाय का पर्यायवाची मान लिया गया है। इस भ्रांति से यह भूल हो रही है। वस्तुतः तो राजनीति में धर्म आवश्यक है। जिस दिन राजनीति से धर्म निकल जाएगा, शासन से धर्म निकल जाएगा उस दिन सारी अव्यवस्था हो जाएगी। सारा राष्ट्र अस्त-व्यस्त हो जाएगा और सारे राष्ट्र में, समाज में अराजकता फैल जाएगी।
परिवार की एकजुटता के लिये, समाज की एकजुटता के लिये, राष्ट्र की एकजुटता के लिये धर्म अनिवार्य तत्व है। महाराज मनु ने धृति, क्षमा, दम, अस्तेय आदि-आदि जो दस लक्षण बताए हैं, ये किसी सम्प्रदाय की बात कहाँ कर रहे हैं? इनको यदि अपने जीवन में नहीं ढालोगे तो राष्ट्र को और समाज को कैसे चला पाओगे? भला अहिंसा के बिना, सत्य के बिना, करुणा के बिना, मैत्री के बिना, मुदिता के बिना, दया के बिना, मित्र भाव के बिना कोई परिवार, कोई राष्ट्र, कोई समाज कैसे चल सकता है! धर्म वो तत्व है जो परिवार, समाज और राष्ट्र को जोड़कर चलता है। पति और पत्नी में जो रिश्ता है वो धर्म का रिश्ता है। दो अनजाने व्यक्ति साथ-साथ जीने का संकल्प लेते हैं, उनके बीच में जो सेतु का कार्य करता है वो तत्व ही तो धर्म है। नहीं तो आज जो रोज-रोज तलाक हो रहे हैं इसका कारण है कि आपने उस धर्म के सेतु को हटा दिया। धर्म को अपने जीवन से निकाल दिया इसी कारण परिवार टूट रहे हैं, समाज टूट रहा है और राष्ट्र में अव्यवस्था हो रही है। आतंकवादी सर उठा रहे हैं। क्योंकि आपने कह दिया कि मेरा देश धर्मनिरपेक्ष है। धर्म से कोई सरोकार नहीं है। चाहे कोई अन्याय करे, चाहे कोई अत्याचार करे, चाहे कोई खून की नदियाँ बहाए, निर्बलों को सताए, आपको तो धर्म से कोई सरोकार है नहीं। आपका देश तो धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है।
जब तक इस देश में धर्म का शासन रहा, राजनीति पर धर्म का अंकुश रहा, तब तक इस देश में सुख का साम्राज्य था, शान्ति का साम्राज्य था सृष्टि से लेकर महाभारत पर्यन्त। दो सौ करोड़ वर्ष पुरानी संस्कृतिहै हमारी। इतनी पुरानी संस्कृति है भारतवर्ष की। सृष्टि से लेकर महाभारत पर्यन्त इस देश का चक्रवर्ती साम्राज्य सारे संसार पर रहा था। क्योंकि उस समय तक राजनीति पर, शासन पर, शासक पर, राजा पर और प्रजा पर धर्म का अंकुश था। इसी कारण रामायण में यह आता है कि उस समय कोई भी भूखा नहीं होता था। कभी अकाल नहीं पड़ता था। समय पर बरसात होती थी। कोई भी असमय में मरता नहीं था। असमय में बूढ़ा नहीं होता था। क्योंकि सब अपने-अपने कर्त्तव्यों का निष्ठा से निर्वहन करते थे। अपने-अपने कर्त्तव्यों का आचरण करते थे। और जिस समय से धर्म को अपने जीवन से कुछ निकाल दिया, तो जैसा मैंने बताया था कि शरीर में 80 प्रतिशत मात्रा जल की है, उसमें कुछ भी कमी होने पर तुरन्त प्यास लगती है। आत्मा का स्वभाव तो 100 प्रतिशत धर्म है। आत्मा के इस 100 प्रतिशत स्वभाव में से हमने धर्म को कुछ प्रतिशत निकाल दिया। इसीलिए आज देश में, समाज में और परिवार में आज अव्यवस्था है। परिवार टूट रहे हैं, समाज टूट रहा है और देश टूट चुका है और भी टूटने की कगार पर है। अखण्ड भारत कितना था !
क्योंकि आपका देश धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। धर्म से कोई सरोकार नहीं। सच्चाई से, ईमानदारी से कोई सरोकार नहीं। जबकि सत्य तो ये है कि ये धरती, ये राष्ट्र सत्य के आधार पर, धर्म के आधार पर ही टिका हुआ है। आज भी आप ये जो कहते हैं कि धर्म के काम करने से निर्वाह नहीं होता, सच्चाई से आजकल निर्वाह नहीं होता। जबकि सत्य ये है कि निर्वाह तो सच्चाई पर चलकर ही होता है, निर्वाह तो धर्म पर चलने से ही होता है। जब तक इस धरती पर धर्म है, इस राष्ट्र में, इस समाज में, इस परिवार में तब तक ही नियन्त्रण है। तब तक ही संयम है, तब तक व्यवस्था है। तभी तक राज्य का भाव है, तभी तक राष्ट्र का भाव है।
आज भी न्यायालय में कोई प्रतिज्ञा की जाती है, कोई शपथ ली जाती है तो साक्षी गीता पर, कुरान पर या बाइबिल पर हाथ रखकर यह तो नहीं कहता कि- मैं झूठ निष्ठापूर्वक यह शपथ लेकर कहता हूँ कि मैं जो कुछ भी कहूँगा झूठ कहूँगा, इससे अतिरिक्त कुछ न कहूँगा। कोई भी न्यायाधीश उसकी बात को नहीं मानेगा। साक्षी को शपथ सत्य की ही लेनी पड़ेगी। विधायक से लेकर राष्ट्रपति तकको शपथ सत्य की ही लेनी पड़ेगी। यही कहना पड़ेगा कि मैं सत्य निष्ठापूर्वक प्रतिज्ञा लेता हूँ कि मैं जो कुछ कहूँगा सच कहूँगा, सच के अतिरिक्त कुछ न कहूँगा। भले वो झूठ ही बोल रहा हो। झूठ कैसे चलता है? सत्य का आवरण ओढ़कर ही झूठ चलता है। बिना सत्य का आवरण ओढ़ाए झूठ भी नहीं चलता। बिना धर्म का आवरण ओढ़ाए पाप भी नहीं चल सकता। आप वोट मांगेगे कि मैं अपना कार्य अच्छाई के साथ करूंगा, अपना कार्य पूरी निष्ठा से, सच्चाई से, ईमानदारी से करूंगा। भले ही आप कितनी ही बदमाशी करते रहें, कितनी ही गुण्डागर्दी करते रहें, कितने ही अत्याचार करते रहें, कितने ही अन्याय करते रहें। पर आपने वोट तो अच्छाई के नाम से ही मांगने हैं। तो आप कैसे कह सकते हैं कि धर्म के बिना ही काम चलता है। आजकल धर्म के नाम से काम नहीं चलता। आजकल सच्चाई से और ईमानदारी से काम नहीं चलता। काम तो ईमानदारी और सच्चाई से ही चलता है।
धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र न होता है, न होना चाहिए, न कभी हुआ है। इस देश की आजादी, हजारों वर्षों तक ये गुलाम रहा। और मैं तो ये कहता हूँ यह देश केवल गुलाम नहीं रहा। इस देश का इतिहास गुलामी का इतिहास नहीं, इस देश का इतिहास गुलामी के विरुद्ध संघर्ष का इतिहास है। जहाँ आक्रमणकारी सिकन्दर है वहाँ पोरस भी है। जहाँ विदेशी अत्याचारी, अन्यायी अकबर है, वहाँ महाराणा प्रताप भी है। जहाँ औरंगजेब है वहाँ शिवाजी भी है। जहाँ अंग्रेज हैं वहाँ चन्द्रेशखर, भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु, सुभाषचन्द्र बोस, रामप्रसाद बिस्मिल आदि आदि अनेक क्रान्तिकारी भी हैं, जिन्होंने धर्म से ओतप्रोत होकर अपने जीवन को स्वाहा कर दिया था राष्ट्र के लिये। इन क्रान्तिकारियों का हृदय धर्म से ओतप्रोत न होता तो ये देश कैसे आजाद होता? जो गीता को सिरहाने रखकर सोते थे, जिनको ये मालूम था कि मरना तो एक दिन है ही। क्यों न राष्ट्र के लिये मरें, धर्म उनके जीवन में ओतप्रोत था। इसलिए वो राष्ट्र के लिए मरे। राष्ट्र के लिये अपने जीवन को स्वाहा कर गए।
दसों गुरुओं ने क्या ऐसे ही अपना बलिदान कर दिया था? अपने जीवन को स्वाहा कर दिया था। अपने जीवन को समर्पित कर दिया था। धर्म से ओतप्रोत होकर ही उन्होंने अपना जीवन जीया था। भारत का इतिहास साक्षी है कि देश के महापुरुषों ने अपने जीवन को धर्म से ओतप्रोत करके अपने राष्ट्र, अपने समाज के लिए न्यौछावर किया है। और जब-जब धर्म की हानि हुई है महापुरुषों ने और सन्तों ने, ऋषियों ने और ग्रन्थों ने धर्म का ही सन्देश दिया है। जब गुरु गोविन्दसिंह 9 साल के बालक थे, गुरु तेग बहादुर अपने शिष्यों में संगत में बैठे हुए कहते हैं कि आज धर्म को और देश को बलिदान की आवश्यकता है। 9 साल का बालक गोविन्दराय कह रहा है कि पिताजी! धर्म और देश किसी महापुरुष का बलिदान मांगते हैं, तो आपसे बढ़कर महापुरुष कौन हो सकता है इस समय हिन्दू धर्म में, सनातन धर्म में? क्या अभिप्राय था? आप ही अपना बलिदान दीजिए! इतिहास साक्षी है गुरु गोविन्दसिंह ने धर्म से ओतप्रोत होकर सनातन धर्म की रक्षा के लिए, देश के लिये अपने पिता का बलिदान कर दिया। क्योंकि धर्म के संस्कार उनको घुट्टी में मिले थे। बाद में गुरु गोविन्दसिंह अपने चारों बेटों को बलिदान कर देते हैं। धर्म से ओतप्रोत होकर, धर्म को अपने में जीवन में धारण करके। दो बेटे युद्ध में मारे गए और दो बेटों को जिन्दा दिवारों में चिनवा दिया गया। और उसके बाद स्वयं भी धर्म से ओतप्रोत होकर धर्म के लिए अपने आपको बलिदान कर देते हैं। दुनिया के इतिहास में, केवल भारत के इतिहास में ही नहीं, दुनिया के इतिहास में ऐसा कोई व्यक्तित्व नहीं मिलेगा, आज तक नहीं हुआ है और न आगे होने की संभावना है, जिसने धर्म से ओतप्रोत होकर के पहले अपने पिता को बलिदान किया और बाद में अपने चारों बेटों को बलिदान किया और उसके बाद स्वयं भी बलिदान हो गए।
राष्ट्र के प्रति इतनी भक्ति उनमें कैसे आई? क्योंकि वे धर्म से ओतप्रोत थे। वीर बन्दा वैरागी की बोटी-बोटी काटी जा रही है। बोटी-बोटी काटे जाने पर उसका खून गिर रहा है और उसी खून को उठाकर वह अपने चेहरे पर मल रहा है, लगा रहा है। उस धर्मानुयायी, उस सनातन धर्मी बंदा वैरागी से लोग पूछते हैं कि आपकी बोटी-बोटी काटी जा रही है,ये आप क्या कर रहे हैं? बन्दा वैरागी कहता है, धर्म का उद्घोष करता है कि मेरी बोटी-बोटी काटी जा रही है, इस कारण मेरा चेहरा निस्तेज हो रहा है। जबकि होना ये चाहिए कि धर्म पर बलिदान होने वाले व्यक्ति का चेहरा सतेज होना चाहिए, तेजस्वी होना चाहिए। इसीलिए मैं अपने खून को अपने चेहरे पर लगा रहा हूँ, ताकि मेरा चेहरा मरते हुए भी तेजस्वी रहे।
धर्म के मार्ग पर चलने वालों को लोग कहते हैं, पागल है। धर्म के मार्ग पर चलने वालों को लोग नासमझ कहते हैं। पर मेरा प्यारा बलिदानी रामप्रसाद बिस्मिल क्या कहता है धर्म से ओतप्रोत होकर के-
इन्हीं बिगड़े दिमागों में भरे अमृत के लच्छे हैं।
हमें पागल ही रहने दो हम पागल ही अच्छे हैं॥
धर्म के दिवाने जिन्होंने सारे देश को अपना घर मान लिया है, जिसने सारे समाज को अपना परिवार मान लिया है, जिनको जीवन में धर्म के संस्कार घुट्टी में प्राप्त हुए हैं, वो इन छोटी-छोटी बातों की परवाह नहीं करते। रामप्रसाद बिस्मिल कहते हैं-
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ।
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ॥
रामप्रसाद बिस्मिल, चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि आदि अनेक क्रान्तिकारियों ने धर्म से युक्त होकर के ही तो अपना बलिदान दिया था। महाराणा प्रताप ने भी तो धर्म से युक्त होकर के ही जंगलों की खाक छानी थी। घास की रोटियाँ खाई थी। अरे! उनके बच्चों को घुट्टी में धर्म के संस्कार मिले थे। इसीलिए तो उनके बच्चों ने घास की रोटियाँ खाई थी। ओर वो घास की रोटी भी खा रही थी उनकी बालिका, तो बिलाव छिन ले जाता है। ये राष्ट्र के प्रति उनकी भावनाधर्म के ही कारणथी। मेरा राष्ट्र अत्याचार से पीड़ित न हो, मेरा देश अन्याय से पीड़ित न हो। मेरा देश कभी विदेशियों का गुलाम न रहे। विदेशियों का परतन्त्र न रहे। ये भावना मेरे देश के क्रान्तिकारियों में, महापुरुषों में धर्म के कारण से ही आई थी और जिस दिन से आपने मैकाले की शिक्षा पद्धति पर चलकर धर्म को बहिष्कृत कर दिया है, उस दिन से आपके परिवार भी टूट रहे हैं, आपका समाज भी बिखर रहा है, आपके बच्चे आतंकवादी बन रहे हैं। आपके बच्चे अश्लील फिल्मों को देखकर के न जाने क्या-क्या कुकृत्य कर रहे हैं। क्योंकि आपने अपने बच्चों को धर्म के संस्कार देना छोड़ दिए हैं। जिस दिन धर्म को अपने जीवन में धारण करोगे, उस दिन समाज, परिवार और राष्ट्र में सुव्यवस्था हो जाएगी, समाज, परिवार और राष्ट्र और अधिक सुदृढ़ होगा, सुदृढ़ से सुदृढ़तर होता जाएगा। राष्ट्र का अभ्युदय, उत्थान और उन्नति होती जाएगी।
No nation can be secular | Theologian | Devout | Secular nation | Sacrifice | Chandrashekhar | Bhagatsingh | Sukhdev | Rajguru | Subhashchandra Bose | Ramprasad Bismil | Divine | Divyayug | Divya Yug