विशेष :

आदर्श हों हमारे घर

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ओ3म् सुनृतावन्तः सुभगा इरावन्तो हसामुदाः।
अतृष्या अक्षुध्यास्त गृहा मास्मद् विभीतन॥ (अथर्ववेद 7.602.6)

शब्दार्थ- (गृहा) हे गृहस्थ लोगो! आप (सुनृतावन्तः) सत्यभाषी, मधुरभाषी और सुव्यवस्थित (स्तः) बनो (सुभगाः) उत्तम सौभाग्यशाली, ऐश्‍वर्य-सम्पन्न बनो (इरावन्तः) अन्न और धन से भरपूर रहो (हसामुदः) सदा हँसमुख और प्रसन्न रहो (अतृष्याः) तृष्णारहित, संतोषी बनो (अक्षुध्याः) सदा तृप्त रहो, कभी अभावग्रस्त मत बनो और (अस्मद्) हमसे (मा विभीतन) भयभीत मत होओ।

भावार्थ- मन्त्र में एक आदर्श गृहस्थ का चित्रण किया गया है। हमारे घर ऐसे होने चाहिए जहाँ-
1. घर के सभी सदस्य सत्यवादी, मधुरभाषी और सुव्यवस्था प्रिय हों।
2. सभी पारिवारिक जन सौभाग्यशाली हों।
3. घर में अन्न और धन-धान्य की न्यूनता न हो।
4. परिवार के सभी सदस्य सदा हँसते और मुस्कुराते रहें।
5. सभी निर्लोभी और सन्तोषी हों।
6. घर में कोई भी व्यक्ति अभावग्रस्त न हो, सभी तृप्त हों, सभी की आवश्यक इच्छाओं की पूर्ति होती रहे।
7. घर के सदस्य एक-दूसरे से भयभीत न हों।
प्रभु हमें बल और शक्ति दें कि हम अपने घरों और परिवारों को ऐसा ही आदर्श वैदिक-परिवार बनाने में समर्थ हो सकें। - स्वामी जगदीश्‍वरानन्द सरस्वती

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