उमा के घर के पीछे एक बबूल का पेड़ था। उमा अपने कमरे की खिड़की से उसे देखती रहती थी। एक दिन उसने देखा कि एक चिड़िया बार-बार आ-जा रही है। वह अपनी चोंच में छोटे-बड़े तिनके लाती है, उन्हें वह पेड़ की डाल पर रखती जाती है। उमा ने देखा कि एक बड़ा सुन्दर घोंसला बनना शुरू हो गया है। उसने अपनी माँ से पूछा- “माँ! यह चिड़िया कैसा सुन्दर घोंसला बना रही है, पर हमारे घर में जो चिड़िया घोंसला बनाती है, वह तो इतना उच्छा नहीं होता। ऐसा क्यों है?’’
माँ ने कहा- “बेटी! पेड़ पर तुम जो घोंसला देख रही हो, वह बया नाम की चिड़िया का है। बया घोंसला बनाने के लिये बड़ी प्रसिद्ध है। इसके घोंसले बड़े ही सुन्दर होते हैं। इसका कारण यह है कि यह जी-जान से अपने काम में जुटी रहती है। यह अपने काम को पूरी मेहनत और लगन के साथ करती है, इससे इसका काम अच्छा होता है।’’
यह कहकर मैं तो रसोई में खाना बनाने चली गई। अब उमा को शरारत सूझी। उसने खिड़की में एक डण्डा डाला। डण्डे से धीरे-धीरे हिलाकर घोंसला गिरा दिया। इतने में दाना चुगकर चिड़िया वापिस आयी, उसने देखा कि घोंसला टूटा पड़ा है। कुछ तिनके बिखर गये हैं, कुछ हवा में उड़ गये हैं। अपनी मेहनत यों बेकार होती देख बया को बड़ा दुःख हुआ। वह थोड़ी देर तक चीं-चीं करके रोती रही। फिर सोचा कि रोने से क्या होता है। रोते रहने से तो कोई काम पूरा हो नहीं सकता। इससे अच्छा तो यही है कि मैं दुबारा से ही घोंसला बनाना शुरू करूँ। अतएव वह फिर अपने काम में जुट गयी।
दूसरे दिन बया जब खाना खाने गयी तो उमा ने फिर उसका घोंसला गिरा डाला। उसने यह न सोचा कि इससे उसे कितनी परेशानी और दुःख होगा। दो दिन तक यह होता रहा। बया घोंसला बनाती और उसके जरा हटने पर उमा उसे तोड़ डालती। एक दिन जब उमा घोंसला गिरा रही थी, तो उसकी माँ ने उसे देख लिया। उन्होंने कहा- “उमा तुम यह क्या कर रही हो? किसी को सताते नहीं हैं, किसी के काम को बिगाड़ते नहीं हैं? बया चिड़िया है तो क्या, तुम्हारे इस काम से उसे बड़ी कठिनाई होती है। तुम्हें उसकी सहायता करनी चाहिये, उसे तंग नहीं करना चाहिए। मनुष्य हो या पशु-पक्षी, किसी को परेशान नहीं करते।’’ पर माँ की बात का भी उमा पर कोई असर नहीं हुआ। जैसे ही वह कमरे से बाहर जाती तो वह डण्डा उठाकर घोंसला गिराने लगती। पर बया थी कि बार-बार घोंसला बनाये जाती थी। वह सोचती थी, कभी तो उसकी मेहनत सफल होगी।
माँ ने देखा उमा गलत काम करती है। वह उनकी बात नहीं मानती। उन्होंने एक उपाय सोचा। माँ ने उमा के सामने उसकी गुड़िया तोड़ डाली। उस गुड़िया को उमा बहुत प्यार करती थी। प्यारी गुड़िया के दो टुकड़े देखकर वह बड़ी दुखी हुई। वह फूट-फूट कर रोने लगी।
माँ ने कहा- “मैं तुम्हारी गुड़िया जोड़ दूंगी। पर तब जब कि तुम भी बया का घोंसला बनाकर आओगी। अब तक तो उसका पूर घोंसला बन जाता। तुमने उसकी मेहनत बेकार कर दी।’’
माँ की बात सुनकर उमा दौड़कर कमरे से निकली। उसने अपने घर के बगीचे से तिनके और टूटी घास बीनी। वह पिछवाड़े से निकलकर जल्दी से पेड़ के पास पहुँची। वह सोच रही थी कि मैं अभी मिनटों में घोंसला बनाकर तैयार किये देती हूँ। वह डाल पर तिनके रखती, घास से उन्हें लपेटती जाती, पर तिनके थे कि डाल पर टिकते ही न थे। कुछ नीचे गिर जाते थे, कुछ हवा के झोंकों से उड़ जाते थे। वह बार-बार कोशिश करती, पर सब बेकार जाती। उन्त में वह खीझकर पेड़ के नीचे बैठकर रोने लगी। जिसे वह छोटा-सा काम समझ रही थी, वह तो बड़ा कठिन काम निकला। थोड़ी देर बाद उसे लगा कि कोई उसके सिर पर हाथ फिरा रहा है। उमा ने पीछे मुड़कर देखा तो माँ सामने खड़ी थीं। वह कह रही थीं- “कोई काम बिगाड़ना तो सरल है, पर बनाना कठिन होता है। यदि कर सकती हो तो दूसरों की सहायता करो। किसी को न तो सताओ और न उसका काम बिगाड़ो।’’ उमा को लगा कि माँ की बात न मानकर उसने कितनी बड़ी भूल की है। अब वह सदैव उनकी हर आज्ञा मानेगी। - डॉ. आशा सरसिज
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