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योगी द्वारा राजा को आशीर्वाद

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सतपुड़ा पर्वतमाला में एक घना जंगल था। इस जंगल में कुछ ऋषि-मुनि रहते थे और जप-तप करते थे। इनमें एक बहुत वृद्ध योगी भी थे। लोगों की मान्यता यह थी कि वे बोलते नहीं हैं लेकिन जब बोलते हैं, तब उनके वचन बहुत कठोर होते हैं। पर उनके अर्थ बहुत उपयोगी होते हैं। उनके दर्शन मात्र से ही मनुष्य का कल्याण होता है। योगी महाराज कभी किसी से कुछ लेते नहीं थे।

एक राजा ने योगी महाराज की कीर्ति सुनी। उन्हें लगा कि इन योगी महाराज के दर्शन करने चाहिए। एक दिन राजा उनके दर्शन के लिए निकले। महारानी को भी साथ ले लिया था। मन्त्री और सेनापति तो संग में थे ही। सूर्योदय होते-होते ये सभी योगी के निवास स्थान पर पहुंच गए। वहाँ पहुंचकर उन्होंने देखा कि एक बड़े बरगद के पेड़ के नीचे योगी की एक छोटी-सी कुटिया थी। कुटिया में कोई सामान नहीं था। योगी के गले में रुद्राक्ष की एक माला थी और कपड़ों के नाम पर केवल दो धोतियां। वे एक धोती धोते और दूसरी पहनते थे। राजा अपनी सेना के साथ पहुंचे, उस समय योगी ध्यानमग्न थे।

राजा और उनके साथी कुटिया के सामने चुपचाप बैठ गए ताकि उनका ध्यान भंग न हो। थोड़ी देर के बाद योगी ने आँखें खोलीं। उन्होंने सबको देखा। राजा ने योगी को साष्टांग प्रणाम किया। योगी बोले, ‘गधा हो जा और कुत्ता बन जा।’ सुनकर सभी स्तब्ध रह गए। राजा को आज तक किसी ने ऐसा नहीं कहा था। इस तरह के वचन बोलने वाले की जीभ काट ली जाती थी। पर राजा शान्त रहे। उन्होंने विनयपूर्वक हाथ जोड़कर कहा, ’‘महाराज!, मुझसे कोई गलती हुई हो, तो क्षमा मांगता हूँ। पर ऐसा शाप मुझे क्यों दे रहे हैं? आप कहें तो मैं प्रायश्‍चित करूं?’’

’‘राजन्, यह शाप नहीं आशीर्वाद है। गधा सदा काम करता रहता है। उसकी आवश्यकताएँ कम से कम होती हैं। जो मिल जाए, वही खाकर सन्तुष्ट रहता है। कुत्ता हमेशा सावधान रहता है। वह सोते हुए भी जागता रहता है। अपने मालिक के प्रति वह वफादार होता है। हे राजन्, प्रजा की भलाई के लिए निरन्तर काम करो। अनावश्यक आवश्यकताएं मत बढ़ाओ। जो मिल जाए, उसी में निर्वाह करो। तुम एक राजा हो। तुम पर प्रजा की जिम्मेदारी है। इसलिए सदा सावधान रहो। नींद में भी जागते रहना सीखो। ईश्‍वर सभी का मालिक है। उसकी भक्ति करो। मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूँ।’’ इतना कहकर योगी मौन हो गए। वे आंखें बन्दकर पुनः ध्यान में लीन हो गए। राजा, रानी, मन्त्री, सेनापति सभी योगी को प्रणाम कर राजधानी लौट आए। - प्रस्तुतिः कु. भावना

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