एक व्यक्ति के पास एक गधा और एक छोटा सा सुन्दर कुत्ता था। गधा बाहर एक अस्तबल में बन्धा रहता था और उसे यथावश्यक चारा-पानी दिया जाता था। जबकि छोटा कुत्ता घर में रहता था। मालिक के साथ तरह-तरह के कौतुक करता रहता था। वह बहुत से खेल जानता था और अपने मालिक का बहुत प्यारा था। मालिक भी उसे खूब दुलार करता था। जब भी मालिक बाहर जाते तो उसके लिए कुछ न कुछ खाने को जरूर लाते थे।
दूसरी ओर गधे को खेत से सामान ढोने, जंगल से लकड़ी आदि लाने तथा मिल में अनाज की पिसाई आदि में काफी मेहनत करना पड़ती थी। बहुधा वह कुत्ते के आराम तथा आनन्द से पूर्ण जीवन से अपने दुर्भाग्य की तुलना करता और कोसता रहता था।
आखिरकार उससे रहा न गया। उसने भी कुत्ते की नकल करके मालिक को खुश करने की ठानी। एक दिन वह रस्सी तुड़ाकर मालिक के कमरे में घुस गया और पाँवों को उठाकर खेल दिखाने का प्रयत्न करने लगा। कुत्ते के समान वह मालिक के चारों ओर कूदने की चेष्टा करने लगा। परन्तु इसके फलस्वरूप वह मेज से टकराया और मेज के कीमती सामान टूट गए। फिर मालिक को चाटने के लिए उसकी पीठ पर चढ़ने की कोशिश की।
नौकरों ने यह विचित्र शोरगुल सुना और अपने मालिक पर आए खतरे को भाँप लिया। तुरन्त ही गधे पर डण्डों की मार पड़ने लगी। मारते-मारते उसे अस्तबल ले गए और अधमरी अवस्था में खूंटे से बांध दिया। वह पश्चाताप करते हुए बोला- “यह सब मेरी अपनी करनी का फल था। उस निकम्मे कुत्ते के समान दिनभर चुहलबाजी करने की इच्छा के बजाए मुझे अपने साथियों के समान परिश्रम करते हुए सन्तुष्ट रहना चाहिए।’’ - प्रमोद त्रिवेदी ‘पुष्प’
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