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कलियुग केवल नाम अधारा

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चैत्र मास की रामनवमी। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के अवतरित होने का शुभ दिन। आज से लाखों वर्ष पहले त्रेता युग में प्रभु श्रीराम ने अयोध्या में जन्म लिया था और अपने अन्तिम समय तक तत्कालीन समाज में नए-नए आदर्श स्थापित किए थे, जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। ...लेकिन क्या मन्दिरों में उनके नाम के घंटे बजाने वाले, उनके भजन गाने वाले, पूजा-अर्चना करने वाले भारतवासियों ने उनके जीवन से कोई प्रेरणा ली है? या फिर उनके द्वारा स्थापित आदर्श और मूल्य समाज में दिखाई देते हैं? इनके अतिरिक्त भी और कई प्रश्‍न हो सकते हैं, जिनका उत्तर संभवत: नकारात्मक ही मिलेगा। हालांकि इसे निराशावादी विचार कहा जा सकता है, लेकिन असत्य कदापि नहीं ।

रामचरित मानस में गोस्वामी जी ने कहा है - कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा। यूं तो श्रीराम का संपूर्ण जीवन ही प्रेरणादायक है, किन्तु इसमें कोई संदेह नहीं कि मानस की इस एक चौपाई को भी जीवन में उतार लिया जाए तो व्यक्ति का न सिर्फ यह लोक बल्कि परलोक भी सुधर सकता है। राम नाम का स्मरण कर व्यक्ति अपना परलोक सुधार सकता है। साथ ही उनके आदर्शों पर चलकर अपने देश और समाज को भी ’पार’ लगा सकता है। कौशल्यानंदन राम ने उस समय पिता के वचन का मान रखने के लिए अयोध्या का सिंहासन छोड़कर चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया, लेकिन आज का नेता एक दिन के लिए भी ’कुर्सी’ का मोह नहीं छोड़ पाता। उसके आदर्श और मूल्य सत्ता से शुरू होकर सत्ता पर ही जाकर समाप्त होते हैं। उत्तरप्रदेश चुनाव के दौरान इनकी वास्तविकता भी देखने को मिली, जब संविधान के नाम पर शपथ लेने वाले नेताओं ने चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था का खुलकर मजाक उड़ाया। अल्पसंख्यकों के वोट प्राप्त करने के लिए उन्होंने संविधान की सीमा से परे जाकर उनको आरक्षण देने का आश्‍वासन दे दिया। इस तरह तो देश में कभी भी रामराज्य नहीं आ सकता।

अन्त में, दिव्ययुग के 11वें वर्ष में प्रवेश पर सभी सुधी पाठकों को शुभकामनाएं, जिनके सहयोग के बिना इस ’वैचारिक महायज्ञ’ को जारी रखना संभव नहीं है। पत्रिका ने अपनी दस वर्ष की इस यात्रा में कई उतार-चढ़ाव देखे, किन्तु हमेशा अपने पाठकों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने का पुरजोर प्रयास किया है। हमें इस अवधि में कई बार पाठकों ने यह आग्रह भी किया कि पत्रिका का कलेवर बदला जाए और इसको रंगीन स्वरूप दिया जाए, किन्तु आर्थिक विवशताओं के कारण यह संभव नहीं हो सका। हालांकि पत्रिका परिवार इस दिशा में सतत प्रयत्नशील है। आशा है आप सबके सहयोग से इस दिशा में हमारे प्रयास सफल होंगे। श्रीरामनवमी के अवसर पुन: आप सभी को शुभकामनाएं। जय श्रीराम! जय भारत !! - वृजेन्द्रसिंह झाला

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