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कैसे बना हमारा संविधान

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सन् 1942 की अविस्मरणीय लोकक्रान्ति ने अंग्रेजी हुकूमत का यह आत्मविश्‍वास तोड़ दिया था कि अब वह अपना प्रभुत्व और अधिक दिनों तक बनाये रख सकती है। मजबूरन इंग्लैण्ड की श्री एटली के प्रधानमन्त्रित्व वाली सरकार को 14 मार्च 1946 को घोषित करना पड़ा कि भारत को भी स्वतन्त्र होने का अधिकार है। इसके तुरन्त बाद उनका एक मन्त्रिमण्डलीय मिशन भारत आया और उसी ने प्रस्ताव किया कि भारत की एक संविधान-सभा गठित की जाए। उस समय के विधानमण्डलों के सदस्यों को ही संविधान सभा के गठन के लिए मतदाता मान लिया गया। जुलाई 1946 में ही इसका चुनाव भी हो गया।

संविधान के पहले सत्र के लिए जो 9 दिसम्बर 1946 को प्रारम्भ हुआ था, आचार्य जे.वी. कृपलानी के प्रस्ताव पर अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा को अस्थायी तौर पर निर्वाचित किया गया। 11 दिसम्बर 1946 को ही केवल दो दिनों बाद स्थायी अध्यक्ष के रूप में देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद को निर्वाचित किया गया। विश्‍व को वैशाली गणतन्त्र के रूप में लोकतान्त्रिक पद्धति का उपहार देने वाले बिहार को भारत को संविधान सभा का अध्यक्ष देने का गौरव भी प्राप्त हुआ।

संविधान-निर्माण के सम्बन्ध में पहला सत्र 9 दिसम्बर 1946 को शुरु हुआ। तब तक इंग्लैण्ड के मन्त्रिमण्डल-मिशन के प्रस्ताव के अनुसार ही 2 सितम्बर 1946 को एक अन्तरिम सरकार गठित की गयी थी। 15 अगस्त 1947 को सत्ता का विधिवत् हस्तान्तरण कर दिया गया। इधर संविधान-निर्माण का काम चलता रहा। इसका प्रारूप तैयार करने के लिए संविधान सभा की 15 समितियाँ गठित की गयीं। इन समितियों के दायित्व थे कि वे 1935 के भारत-शासन के अधिनियमों, ब्रिटिश, अमेरिकी, आयरिश, ऑस्ट्रेलियन, कनाडाई, जापानी तथा दक्षिण अफ्रीकी देशीय संविधानों तथा उनके लागू कानूनों के स्रोतों की समीक्षा करें। इन्हें यह कार्य भी सौंपा गया कि भारतीय गणतन्त्र का संविधान रचने का वे समितियाँ कानून, नियम, विनियम, अध्यादेश, कालबद्ध आदेश आदि तथा न्यायायिक निर्णय संविधान के विशेषज्ञ वकीलों, बुद्धिजीवियों और लेखकों के विचार, संविधान सभा के वाद-विवाद तथा पूर्वागत संविधान आदि के आधार पर अलग-अलग अपनी अनुशंसाएं प्रस्तुत करें। समितियों के संकलन और सम्पादन का दायित्व जिस समिति को दिया गया, वही बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता वाली सम्पादन समिति थी।

इस समिति को अलग से कोई तथ्य एकत्र करने का या नीति निर्धारण का कोई खास दायित्व भी नहीं रहा हो तो भी प्रस्तुत सामग्री संकलित कर तथा आवश्यक बिन्दुओं को सम्पादित कर नियोजित करने का काम भी कम श्रम-साध्य नहीं था। श्री अम्बेडकर की अध्यक्षता वाली समिति के सहयोगी सदस्यगण थे सर्वश्री एन. गोपालस्वामी आयंगर, के.एम. मुन्शी, कृष्णास्वामी अय्यर, मु. सहदुल्लाह, सर वी.एल. मित्र और डी.पी. खेतान। बाद में कतिपय कारणों से श्री खेतान के बदले श्री टी.टी. कृष्णामाचारी को मनोनीत किया गया।

संकलित तथ्यों के आधार पर संविधान-सभा द्वारा भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार किया गया। कहा जाता है कि उसकी मूलप्रति कहीं खो गयी। लेकिन डॉ. राजेन्द्रप्रसाद ने अपनी स्मरण शक्ति से ही उसे दोबारा हू-ब-हू तैयार करवा दिया था। बाद में जब वह खोयी हुई प्रति मिल गयी तो लोग चकित थे कि उसकी हू-ब-हू प्रतिलिपि राजेन्द्र बाबू ने कैसे लिखवा दी थी। इसका प्रारूप 21 फरवरी 1948 को तैयार हो गया, जिस पर सर्वप्रथम 4 नवम्बर से 9 नवम्बर 1948 तक विमर्श हुआ, जिसे प्रथम वाचा की संज्ञा दी गई। दूसरे वाचा का सत्र 15 नवम्बर 1948 से 17 अक्टूबर 1949 तक चला। तीसरा वाचा 14 नवम्बर 1949 से शुरू हुआ तथा 26 नवम्बर 1949 को उसको अन्तिम रूप दिया गया। संविधान सभा के अध्यक्ष की हैसियत से उसके अन्तिम रूप पर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपने हस्ताक्षर कर उसे पारित घोषित किया। उसी संविधान को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। इस बीच संविधान में अनेक संशोधन किये गये। कई बार सरकार के आदेशों को भी संविधान की सीमा से बाहर मानकर निरस्त भी किया जाता रहा। - प्रस्तुतिः कु. भावना पहल

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