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भारत पुकार रहा है, अपने इतिहास को पहचानो!

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आज हमारा देश प्रगति-पथ पर दौड़ रहा है। अब मोटर कार तो क्या हवाई जहाज, युद्ध, टैंक और मिसाईल तक भारत में बनने लगी हैं। आंकड़े पेश किये जा रहे हैं कि अमुक उत्पादन में हमारा देश फलां नम्बर पर पहुंच गया है, अमुक उत्पादन में फलां नम्बर पर। आंकंड़ों के इस मकड़जाल में फंसकर आज हर नागरिक अपने देश पर गर्व कर रहा है।

लेकिन ये सिर्फ आंकड़े हैं और आंकड़े सदा यथार्थ से परे होते हैं। आज हम प्रगति नहीं कर रहे हैं, बल्कि बर्बादी के रास्ते पर जा रहे हैं। क्योंकि आंकड़ों से हटकर यदि हम देखें, तो यथार्थ इससे बिल्कुल भिन्न है। इसके लिये कुछ ही उदाहरण काफी होंगे। हम रोज अखबारों में पढते हैं बलात्कार, जातीय हिंसा और बडे-बडे घोटाले। इस कार्य में लिप्त भी पाये जाते हैं देश के बड़े-बड़े सम्मानित नागरिक व देश के नेतृत्व को संभालने वाले लोग।

अब प्रश्‍न उठता है कि हम मान लें कि हमारा देश प्रगति कर रहा है या आगे बढ रहा है। यदि ध्यान से सोचा जाये, तो इसका उत्तर हमें नकारात्मक ही मिलेगा। क्योंकि हमने बड़ी-बड़ी फैक्टरियां लगाई, बड़े-बड़े कारखाने लगाये, हम हवाईजहाज, युद्धटेंक व ऐशो-आराम की बड़ी-बड़ी वस्तुएं तो बनाने लगे। लेकिन मेरे देश में कोई ऐसी फैक्टरी, कोई ऐसा कारखाना नहीं, जिसमें इंसान बनाये जाते हों, मनुष्य बनाये जाते हों। जिस मनुष्य के लिये ये सब कुछ बनाया जा रहा है, वह मनुष्य नहीं बनाया गया। कोई ऐसी फैक्टरी मेरे देश में नहीं लगाई गई जिसमें नैतिकता, देश-प्रेम, चरित्र-निर्माण की वस्तुएं बनाई जाती हों।

इसी सबका परिणाम है कि राम और कृष्ण का यह देश नैतिक पतन की चरम सीमा तक पहुंच चुका है। आज इस देश के लोगों के पास न तो कोई चरित्र है, न देश-प्रेम और न ही भाई-चारा, जो कि इस देश के समाज की सबसे बडी विशेषता तथा सम्पत्ति होती थी। आज सारा देश भ्रष्टाचार, जातीय वैर-भाव व नफरत की आंधी में झुलस रहा है। इस सबका उत्तरदायित्व है उन लोगों पर, जो कि अपने आपको राम और कृष्ण के उत्तराधिकारी बताते हैं। जिस राम और कृष्ण ने अपनी सभ्यता, संस्कृति और धर्म को बचाने के लिए युद्ध किये, आज उनके तथाकथित उत्तराधिकारी इन सब मर्यादाओं को खत्म करने के लिए युद्ध छेडे हुए हैं।

विश्‍व को मनुर्भव (हे मनुष्य! तू मनुष्य बन) का सन्देश देने वाला यह देश आज स्वयं मनुष्यता से दूर होता जा रहा है। आज हम अपने सब आदर्श और सिद्धान्त भूलकर भौतिकता के पीछे भाग रहे हैं। जब पश्‍चिम के देश भौतिकता से तंग आकर आध्यात्मिकता की ओर झुके हैं, तब हमारा भौतिकता की दलदल की तरफ आकर्षण एक खतरनाक संकेत है। इसका लाभ भी आसुरी शक्तियाँ उठा रही हैं। आज हमारा समाज संस्कारविहीन व दिग्भ्रमित होता जा रहा है। किसी को नहीं मालूम कि माता-पिता, भाई-बहन, गुरु आदि के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है। आज प्रगति की अन्धी दौड में सब रिश्ते-नाते भुला दिये गये हैं। बेटा बाप को मार रहा है व बाप बेटे को और भाई भाई का कत्ल कर रहा है। आज आदमी अपने अस्तित्व को भूल चुका है और उसे अब अपनी छाया से भी डर लगने लगा है।

सुभाषचन्द्र बोस, लाला लाजपतराय, सरदार भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, पं. रामप्रसाद बिस्मिल, राजगुरु, सुखदेव, वीर सावरकर, चाफेकर बन्धु जैसे बलिदानियों तथा असंख्य क्रांतिकारियों ने अपने अस्तित्व को मिटाकर देश को आजादी दिलाई थी। इन्होंने देश व समाज को व्यक्तिगत हितों से सदा ऊपर समझा था। लेकिन हमारे बलिदानियों ने स्वाधीनता संग्राम के समय जो कष्ट सहे थे, उन सबको हमने बहुत ही जल्दी भुला दिया। विश्‍व इतिहास में शायद ही कोई उदाहरण हो, जब किसी देश में अपनी स्वतन्त्रता के बाद गुलामी के समय सहे कष्टों को इतनी जल्दी भुला दिया गया हो।

लेकिन अभी भी समय है, जब हम सम्भल सकते हैं। इसके लिए आवश्यक होगा कि हम अपने गौरवमय इतिहास को पहचानें तथा उसी रास्ते पर चलें, जिस पर चलकर हमारे पूर्वजों ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को विश्‍व में प्रतिष्ठित किया था। अब समय आ गया है, जब हम खुद जगकर नई पीढी को जगायें तथा उन्हें संस्कारित करें। देशवासियो अब उठो! अपने प्यारे भारत की करुण पुकार को सुनो। वह तुम्हें बार-बार पुकार रहा है। उठो और अपने आपको पहचानो।
गौरवमय संस्कृति है हमारी, पहचानो गौरवमय इतिहास को ।
कुसंस्कार मिटा डालो जला दो अन्ध विश्‍वास को ॥

‘स्वतन्त्रता मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है।’ यह कोई राजनीतिक नारा अथवा कोरा नीति वाक्य नहीं, बल्कि मनुष्य की एक स्वाभाविक आकांक्षा का प्रतीक है। जिस प्रकार एक ही माता-पिता की प्रत्येक सन्तान का अपने माता-पिता की सम्पत्ति पर बराबर-बराबर अधिकार होता है, उसी प्रकार एक ही ईश्‍वर की सन्तान प्रत्येक मनुष्य का भी प्रकृति की प्रत्येक वस्तु पर समान अधिकार होता है। किन्तु ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ वाली कहावत के अनुसार सृष्टि के आरम्भ से ही कुछ व्यक्ति अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते आये हैं तथा शासक और शासित इन दो वर्गों का निर्माण करके संसार में अशान्ति के बीज बोते आए हैं। कोई अपनी शारीरिक शक्ति के बल पर, तो कोई अपने बुद्धिबल के सहारे अपने से दुर्बल शरीर और अल्प बुद्धि वाले लोगों को अपने आधीन करता आया है और उन पर मनमाना शासन भी करता रहा है।

किन्तु शारीरिक और मानसिक शक्ति से भी बढ़कर एक शक्ति होती है और वह है संगठन शक्ति। जब-जब शासकों के अत्याचार बढ़े हैं, तब-तब इसी संगठन-शक्ति के सहारे शासितों ने विद्रोह करके अपने को शासकों के चंगुल से मुक्त किया है। मनुष्य को स्वतन्त्रता अपने प्राणों से भी प्यारी होती है। भारतवासियों ने यह स्वतन्त्रता बड़े संघर्षों के बाद प्राप्त की है।

India is Calling, Recognize Your History ! | Path of Progress | Patriotism | Character Building | Moral Decay | Subhashchandra Bose | Lala Lajpat Rai | Sardar Bhagat Singh | Chandrashekhar Azad | Lokmanya Tilak | Ramprasad Bismil | Rajguru | Sukhdev | Veer Sawarkar |