26 जनवरी 1950 को भारतीय गणतन्त्र का संविधान लागू किया गया था और तब से देश ने अनेक राजनीतिक करवटें ली हैं। यद्यपि हमारे देश में गणतन्त्र की प्रणाली इससे भी पहले से चली आ रही है। गणराज्य व्यवस्था क्रियान्वित होने से भी लगभग बीस वर्ष पूर्व रावी के तट पर बसन्त पंचमी (26 जनवरी 1930) के दिन हमारे नेताओं ने स्वराज की घोषणा की थी। हमने संविधान की मर्यादाओं के अन्तर्गत अब गणतन्त्र की जो व्यवस्था लागू की है, वह यूनान से भी पूर्व हमारे देश में पर्याप्त विकसित हो चुकी थी। प्राचीन भारत में गणराज्य व्यवस्था के शुभारम्भ की कोई निश्चित तारीख इतिहास में लिखित रूप में विद्यमान नहीं है। तदपि ऋग्वेद में- समानो मन्त्रः समितिः समानी समानं मनः सहः चित्तमेषाम् आदि मन्त्र उपलब्ध हैं। अर्थात् ऋग्वेद के समय में भी ’समिति’ शब्द विद्यमान था। उस काल में सभा और समिति जैसे शब्दों का प्रयोग मिलताहै। बाद में कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी ‘सभा’ आदि शब्दों का व्यापक रूप से उल्लेख सुलभ है।
बुद्ध और महावीर का जन्म जिस कालखण्ड में हुआ था, उस समय भी गणराज्यों के प्रमाण मिलते हैं। भगवान बुद्ध का जन्म शाक्य गणराज्य में हुआ था, जबकि भगवान महावीर का जन्म लिच्छवी गणराज्य के एक संघ में हुआ था। बुद्धकाल में ‘मल्ल’ और ‘वज्जि’ संघों के नाम मिलते हैं। जिन्हें मिलाकर जनपद बनते थे। हमारे देश में बुद्धकाल से भी पूर्व गणतान्त्रिक परम्पराएं होने के और भी अनेक प्रमाण मिलते हैं। तभी तो भगवान बुद्ध ने आनन्द से एक साथ सात प्रश्न पूछे थे। वे प्रश्न थे- 1. क्या लिच्छवी गणराज्य के लोग निर्धारित समय पर सभा बुलाते हैं? 2. क्या सभा में पूरी उपस्थिति रहती है? 3. क्या नीति विषयक निर्णय एक मत से होते हैं? 4. क्या वे लोग प्राचीन परम्पराओं और संस्थाओं का नियमानुसार पालन करते हैं? 5. क्या वे ज्ञान और आयु में वृद्ध लोगों का सम्मान करते हैं? 6. क्या वे साधु-संन्यासी और स्त्रियों को प्रतिष्ठा देते हैं? 7. क्या वे कुल स्त्रियों व कुल कुमारियों के सतीत्व की रक्षा करते हैं?
बुद्ध के इन सभी प्रश्नों का आनन्द ने सकारात्मक उत्तर दिया। बुद्ध ऐसा मानते थे कि गणतान्त्रिक रचना में आंतरिक एकता को बनाए रखना सबसे कठिन काम होता है। गणराज्य व संघों के बारे में महाभारत में कृष्ण और नारद के संवाद में भी प्रकाश डाला गया है। इसमें कृष्ण ने बताया है कि अहंकार और गुटबन्दी गणराज्य की व्यवस्था के सबसे प्रबल शत्रु हैं।
जिस समय सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया था, उस समय भी शूद्रक और मालव गणों ने उसका जोरदार मुकाबला किया था। इस तरह के उल्लेखों से गणतान्त्रिक व्यवस्था की जड़ें भारत में सुदृढ़ होने के प्राचीन काल से ही संकेत मिलते हैं। ऐसे में छब्बीस जनवरी 1950 से ही हमारी गणतान्त्रिक परम्परा का प्रारम्भ मान लेना उचित नहीं लगता। 26 जनवरी 1930 को गणतन्त्र दिवस मनाने का जो संकल्प लिया गया था, वह संकल्प लगभग हर साल लोगों ने दोहराया। राजस्थान की कुछ रियासतों में तो कुछ स्थानों पर 1941, 1942, 1944 और 1946 में भी लोगों ने तिरंगा फहराकर स्वाधीनता दिवस मनाए थे। इससे ऐसा लगता है कि गणतन्त्र के स्मरण की हमारी परम्परा अविराम गति से चलती रही है। इस पर 26 जनवरी 1950 को हमारे संविधान की मुहर लगी और तब से हम 26 जनवरी को गणतन्त्र दिवस के रूप में मना रहे हैं। - वन्दना विश्वकर्मा
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