जिला एटा के आठ गांव आगरा से लगा हुआ था जिला एटा । यहाँ के किसानों ने भी कभी मुसलमानों की दासता नहीं स्वीकारी थी । इस जिले में अहीर, जाट, गूजर व राजपूतों का बाहूल्य था । ये लोग केवल अपने हिन्दू राजाओं को ही कर देते थे । जबसे देश पर विदेशियों का कब्जा हुआ था, इन्होने लगान देना बंद कर दिया था। ये खूब मेहनत करते, अनाज उगाते और आगरा से 30 मील दूर बसे साकेत नामक कस्बे में बेच आते । परगना साकेत के ये आठ स्वतंत्र गांव अटघड़ा कहलाते थे । विदेशी सेना के छोटे-मोटे दस्तों को मार भगाना इनके बाएं हाथ का काम था । जब कभी कोई बड़ी सेना अभियान करती, तो ग्रामवासी भागकर निकट के जंगलों, यमुना के दूरस्थ बीहड़ों में छिप जाते और सेना के जाने बे बाद पुन: गांव में लौट आते ।
परोंख गांव पर अकबर का हमला-जैसे- तैसे एटा जिले के अन्य गांवों को कब्जे में ले अकबर ने उन पर जागीरदार बैठा दिए । लेकिन अटघड़े के आठ गांवों को लेने के लिए कोई मुसलमान जागीरदार तैयार नहीं हुआ । अट़घड़े के ये संगठित हिन्दू किसान आगरा व आसपास के मुस्लिम बहुल इलाकों पर धावे मार मुगलों से अत्याचार का बदला भी ले लिया करते थे । मेवाड़ और दक्षिण को जाने वाली मुगल रसद के व्यापारी काफिले भी इन लड़ाकुओं द्वारा लूट लिए जाते थे । जजिया व लगान वसूली वाले इनके हाथों मार दिए जाते थे । शाही अधिकारियों ने अकबर से शिकायत की ।
अकबर ने आगरा में प्रचारित किया कि वह शिकार खेलने जा रहा है । अकबर ने परगना साकेत, बदख्शां के एक विदेशी मुसलमान ख्वाजा इब्राहीम को जागीर में दे दिया । अकबर ने ख्वाजा को कुछ सैनिकों के साथ आगे रवाना किया । साकेत के जैन अग्रवाल व्यापारियों की दुकानें आगरा में भी थीं । जब सैनिक दुकानों से एक-एक माह का राशन खरीदने लगे, तो व्यापारियों ने पूछताछ की कि कहाँ की मुहीम है ? मुसलमान सैनिकों के बताने पर कि बादशाह साकेत परगना में शिकार के लिए जा रहे हैं, व्यापारियों के कान खड़े हो गए । व्यापारियों के राजपूत अश्वारोही संदेश लेकर उड़ चले । मुस्लिम सेना पहुंचने के पूर्व ही साकेत के सभी गांवों में सन्देश फैल गया कि सावधान हो जाएं, अकबर का हमला होने वाला है ।
अटघड़े के आठों गांवों में रात भर कुदाल, फावड़े, सब्बलें चलीं । गांव वालों ने अपनी धन, संपदा, सोना-चांदी, मोहरें धरती में गाड़ दीं । गांव के स्त्री-बच्चे दो-तीन दिन का भोजन बांध जंगलों, बीहड़ों में छिपने के लिए भाग निकले । आठों गांवों के नौजवान परोंख गांव की ओर दौड़ पड़े । परोंख राजपूत बहुल बड़ा गाँव था । मुस्लिम कानून के अनुसार हिन्दू न हथियार बांध सकते थे, न घरों में रख सकते थे । पेरों में जूते नहीं पहन सकते थे । घोड़े ना तो रख सकते थे, ना उन पर बैठ सकते थे । राजपूतों को छूट थी । वे जूते भी पहनते थे, हथियार भी बांधते थे और घोड़ों पर भी बैठते थे, इसलिए आगरा साकेत के व्यापारियों की दुकान और हवेलियों की रक्षा के लिए राजपूत रखे जाते थे । परोंख गांव में घोड़ों व हथियारों की कमी नहीं थी । आठों गांवों के हिन्दू नौजवानों के परोंख पहुंचते ही गांव की मोर्चाबंदी शुरु हो गई । गांव के किनारे के मकानों पर तीर कमान से लैस नौजवान खपरैलों पर जा चढ़े । गांव के प्रत्येक मार्ग और किनारे के दो मकानों के बीच की खाली जगह पर सूखी लकड़ियां व घास बिछा दी गई । लकड़ियों के पीछे राजपूत बंदूकची बैठ गए । मकान के खपरैलों पर गांव की महिलाओं ने पत्थरों के ढेर लगा दिए । कई नौजवानों ने रस्से, चमड़ा लेकर पत्थर फैंकने की गोफनें बना डालीं । अब मुसलमानों की राह देखी जाने लगी ।
अकबर एक बड़ी सेना को रात में ही रवाना कर प्रात: 200 घुड़सवार,200 हाथियों पर महावत सहित तीन-तीन सैनिक लेकर स्वयं दिलशंकर नामक हाथी पर सवार हुआ । अकबर के हाथी पर पीछे ख्वाजा झुझार खां अंगरक्षक बनकर बैठा । - रामसिंह शेखावत
Akbar | Muslim | Hindu | Creed | Worship | Arya | Sanatan | Mandir | Incest | Evils | Dharm | Karm | Divyayug |