विशेष :

आशा ही जीवन है

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आशा यदि जीवन है तो निराशा मृत्यु। निराश होकर कौन हंस सकता है और आशा में कौन कभी रोया? रुदन और हास का चक्र भी आशा और निराशा का संगी है। जीवन जब रुक जाता है, चारों ओर जब अन्धेरा ही अन्धेरा दीखता है और दीखती है मृत्यु सामने खड़ी, तब कभी-कभी व्यक्ति के सामने एक प्रकाश रेखा प्रश्‍न चिह्न बनकर खड़ी हो जाती है जो आशा का प्रतीक बनकर जीवन प्रदान करती है।

सर्वनाश में भी कभी-कभी निर्माण के स्वर इतिहास ने सुने हैं। काल रात्रि में भी जीवन संगीत कभी-कभी बज उठता है। जैसे मृतप्रायः भारत को एक साधारण घटना ने मूलशंकर को बोध देकर बचाया था। ‘बोध’ का अर्थ है सत्य ज्ञान। और सत्य स्वयं आशा है.....प्रकाश है।

जो भी निराश हैं उनको यही सन्देश है कि यह जीवन का मार्ग नहीं है। छोड़ो इसे और प्रभु पर विश्‍वास रख आशा करो जीवन की, मुस्कुराने की, विजय की। ‘धर्म’ और सत्य की विमल पताका मनुज के मन मन्दिर पर लहरायेगी और यह अन्धेरा मिटेगा, कब?.... जब हमें बोध होगा।

जब आपके हृदय में ऐसे भाव आने लगे कि मैं तो अकेला हूँ, तो आकाश की ओर देखो- एकः सूर्यो विश्‍वमनु प्रभूतः॥ (ऋग्वेद 8.58.2)

एक ही सूर्य समस्त विश्‍व को ताप और प्रकाश दे रहा है। हे मानव! तू भी अकेला है तो क्या हुआ? जब विघ्न-बाधाएं, आपत्तियाँ और संकट तेरे ऊपर आने लगें तो वेद के इन शब्दों को स्मरण कर लिया कर- मा भेर्मा संविक्था ऊर्जं धत्स्थ॥ (यजुर्वेद 6.35) मत डर, मत घबरा, धैर्य धारण करतथा आशा रख। - प्रस्तुतिः कु. भावना पहल (दिव्ययुग- मई 2011)

Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
Ved Katha Pravachan 47 | Explanation of Vedas | महाभारत युद्ध एवं भारत देश की गुलामी के कारण