विशेष :

हे वरुण !

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varun dev

ओ3म् इमं मे वरुण श्रुधी हवमद्या च मृडय।
त्वामवस्युरा चके॥ यजुर्वेद 21.1

ऋषि शुनः शेप॥ देवता वरुणः॥ छन्दः निचृद्गायत्री॥

विनय- हे वरुण देव! मैं कितने दिनों से तुम्हें पुकार रहा हूँ। पुकारते-पुकारते अब तो बहुत काल बीत गया है। मेरी पुकार की सुनवाई कब होगी? लोग मुझ पर हँसते हैं। तुम्हारे प्रति मेरी व्याकुलता को देखकर मेरा ठट्ठा करते हैं और मुझे पागल समझते हैं। परन्तु मैं तो तुम्हारी शरण में आ चुका हूँ। एकमात्र तुमसे ही रक्षा पाने की आशा रखता हुआ निरन्तर प्रार्थना कर रहा हूँ और करता चला जाऊंगा। तुम्हीं को मेरी लाज बचानी होगी। क्या मैं ऐसे ही पुकार मचाता रहूँगा और तुम अनसुनी करते जाओगे? नहीं, तुम्हें मेरी पुकार सुननी होगी। हे सर्वश्रेष्ठ! हे पापनिवारक! हे मेरी परम आत्मन्! तुम्हें मेरी यह पुकार जरूर सुननी होगी। तो, अब तो बहुत काल बीत चुका है। मेरा मन अपनी इस कामना को तुम्हारे आगे कब से धरे बैठा है। क्या इसकी स्वीकृति का समय अब तक नहीं आया है? अब तो हे नाथ ! इसे पूरा कर दो, आज का दिन खाली न जाए। बहुत बार आशा बाँधते-बाँधते टूट चुकी है, पर आज तो निराश न होना पड़े, आज तो इस चिरकांक्षित अभिलाषा को पूरा कर दो, चिरकाल के व्यथित-व्याकुल हृदय को सुखी कर दो। यह हृदय तुममें अटल श्रद्धा रखे, तुमसे कामना के अवश्यम्भावितया पूरा होने का विश्‍वास रखे। यह बड़े दिनों से तपस्या कर रहा है, बहुत सी निराशाओं के घावों से घायल हो चुका है, पर श्रद्धा नहीं छोड़ सकता। तो आज तो उसके दुर्दिनों का अन्त कर दो, इसकी शुभाकांक्षा को मूर्त्तिमती कर दो जिससे इसके घावों की सब व्यथा अब एक क्षण में मिट जाए। बस, आज जरूर, आज जरूर! पुकार मचाते-मचाते अब पर्याप्त दिन हो चुके। तुम्हारी शरण में पड़ा मैं बहुत चिल्ला चुका। अपने इस पागल का आज तो सुदिन कर ही दो और इसे अपनी गोद में उठा लो।

शब्दार्थ- वरुण=हे वरुण! मे=मेरी इमम्=इस हवम्=पुकार को श्रुधी=सुन लो अद्य च=आज तो मुझे मृळय=सुखी कर दो त्वां अवस्युः=मैं तुम्हारी शरण में आया हुआ, तुमसे रक्षा चाहता हुआ आचके=प्रार्थना कर रहा हूँ। - आचार्य अभयदेव विद्यालंकार

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