ओ3म् अग्ने त्वं सुजागृहि वयं सुमन्दिषीमहि।
रक्षा णो अप्रयुच्छन् प्रबुधे नः पुनस्कृधि॥ यजुर्वेद 4.14।
शब्दार्थ- अग्ने = हे अग्निस्वरूप परमात्मन ! त्वम् = आप सु जागृहि = अच्छी प्रकार से जागिए, सजग रहिए। जिससे वयम् = हम विश्राम, निद्रा की इच्छा वाले सुमन्दिषीमहि = मधुर नींद लें, ले सकें। अप्रयुच्छन् = बिना प्रमाद, लापरवाही के नः = हमारी रक्ष = रक्षा, सम्भाल करो। प्रबुधे = जागने पर नः = हमको, हमें पुनः कृधि = फिर पहले जैसा तरोताजा, थकावट रहित, हल्का-फुलका कर दो।
भावार्थ- हे प्रकाश, ज्ञानस्वरूप परमेश्वर ! आप अच्छी तरह से जागिए और हम मधुर नीन्द लेते हैं। बिना किसी प्रकार के प्रमाद के हमारी रक्षा कीजिए तथा जागने पर पुनः जाग्रत जैसा कर दीजिए।
व्याख्या- इस मन्त्र में निद्रा के महत्व को स्पष्ट करने वाला सुमन्दिषीमहि शब्द आया है। प्रकरण के अनुसार इसका अर्थ है- हम मनधुर (गहरी) नीन्द सोएँ। वैसे यह शब्द मदि हर्षे (प्रसन्न, हर्षित होना, स्वप्ने= सोना) धातु से बनता है। इससे स्पष्ट होता है कि निद्रा की दशा में शरीर हल्का, मन प्रसन्न, हर्षित अर्थात विकसित होता है। अतः सोना सोना है। सम्भवतः इसीलिए ही कहते हैं कि दिन दुगनी रात चौगुनी उन्नति करो। अर्थात रात को दिन की अपेक्षा शरीर की दुगनी उन्नति होती है। तभी तो जो शिशु अधिक सोते हैं, वे दूसरों से अधिक बढते हैं।
शिशु के इस उदाहरण से यह भी स्पष्ट होता है कि उसको गहरी नीन्द इसलिए आती है, क्योंकि वह निर्मल, निश्छल, निर्द्वेष होता है। इसलिए भारतीय परम्परा में रात को सोते समय यज्जाग्रतो- के रूप में शिव संकल्प वाले छः मन्त्र पढने का विधान है। उन सभी की अन्तिम टेक है- तन्मे नमः शिवसंकल्पमस्तु। (यजुर्वेद 34.1-6) अर्थात इन मन्त्रों में कहे गए स्वरूप वाला मन शुद्ध-शुभ विचारों वाला हो।
अतः अच्छी नीन्द के लिए शुद्ध-शुभ मन पहली बात है। महर्षि दयानन्द सरस्वती के जीवन चरित के सभी लेखकों ने इस बात का संकेत किया है कि स्वामी जी को लेटते ही गहरी नीन्द आ जाती थी। क्योंकि उनके मन एवं विचार निर्मल, निश्छल और द्वेष रहित थे।
यह अच्छी नीन्द तभी आती है जब व्यक्ति निश्चिन्त होता है। इसीलिए लोकोक्ति चलते है- घोड़े या बकरी बेचकर सोना अर्थात चिन्ता मिट जाने पर व्यक्ति निश्चिन्त होकर सोता है। ईश्वर विश्वास से भी निश्चिन्तता आती है। तभी तो मन्त्र के प्रथम चरण में प्रार्थना की है- आप सावधान होकर अच्छी तरह से जागिए।
गहरी निद्रा के लिए तीसरी बाता है- सुरक्षा की भावना। अतः तीसरे चरण में प्रार्थना की गई है कि हे प्रभो! आप हमारी बिना प्रमाद के रक्षा कीजिए। व्यक्ति निश्चिन्त होकर तभी सोता है, जब उसको सुरक्षा का विश्वास होता है। यह भावना ईश्वर के भरोसे होती है।
मन्त्र के चौथे चरण में गहरी निद्रा के लाभ, प्रभाव को दर्शाते हुए ही कहा है कि प्रबुधे नः पुनस्कृधि। जागने पर ही इन्द्रिय, मन, बुद्धि सक्रिय होते हैं। गहरी निद्रा के समय ये तीनों विश्राम करते हैं। मनुस्मृति (7.225) के उत्तिष्ठेयुर्गतक्लमः शब्दों में कहा गया है कि क्लम = थकावट, तनाव को दूर कर निद्रा तरोताजा कर देती है।
मन्त्र के भावों को स्पष्ट करने वाला एक आख्यान प्रचलित है। भर्तृहरि जी विरक्त होकर भिक्षा के लिए प्रथम अपनी माता के द्वार पर आए। तब माता जी ने चावल के तीन दाने दिए। जब इसका अभिप्रायः पूछा, तो माता जी ने कहा- 1. खूब स्वाद से खाओ, 2. सुरक्षित रहो, 3. सुखभरी गहरी नीन्द लो। इस पर भर्तृहरि ने पुनः पूछा, जंगल में तो कन्द-मूल ही मिलते हैं। फिर स्वाद से खाने का अभिप्राय? तब माता जी ने समझाते हुए कहा कि स्वाद का सम्बन्ध भूख से है, तभी तो तीव्र भूख के समय सूखे चने भी स्वाद देते हैं। जब भोजनार्थ वन-वन घूमोगे या परिश्रम करोगे अर्थात नियमित आसन या प्राणायाम-योगाभ्यास करोगे तो स्वतः भूख लगेगी।
सुरक्षित रहो के रहस्य को स्पष्ट करते हुए माता जी ने आगे कहा कि साधु जीवन का उद्देश्य है परमपिता परमेश्वर से अपनी आत्मा की लौ लगाना। योग द्वारा ईश्वर से जुड़ने पर ईश्वर पर विश्वास उभरता है। तब सर्वरक्षक ईश्वर का संरक्षण सामने आता है। तीसरे (सुखभरी गहरी नीन्द लो) के रहस्य को स्पष्ट कराने के लिए भर्तृहरि ने पूछा कि वन में सुविधाओं के अभाव में सुखभरी निद्रा कैसे? तब माता जी ने समझाया कि जब तुम्हारे मन में बुरे विचार, दूसरों के प्रति घृणा-द्वेष न होगा, तो मन के शुद्ध, पवित्र, निर्मल होने से स्वतः निश्चिन्त-प्रसन्न रहोगे। इससे स्वतः ही सुखभरी गहरी नीन्द आएगी। जैसे कि छोटे बच्चों में यह स्थिति स्वतः स्पष्ट है। उनका अबोधपन, निर्मलता, निश्चिन्तता यह सब समझा देता है। वेद मंथन, लेखक - प्रा. भद्रसेन वेदाचार्य एवं संपादक - आचार्य डॉ. संजय देव (Ved Manthan, Writer- Professor Bhadrasen Vedacharya & Editor - Acharya Dr. Sanjay Dev) Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev | वेद कथा - 5 | Rashtra | राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष नहीं होता -1 | क्रांतिकारी वीरों का धर्म हेतु बलिदान