विशेष :

परमेश्‍वर को नमन

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ओ3म् नमः शम्भवाय च मयोभवाय च
नमः शंकराय च मयस्कराय च
नमः शिवाय च शिवतराय च ॥ यजुर्वेद 16.4॥

शब्दार्थ- शम्भवाय = शम् स्वरूप वाले के लिए नमः = नमन। मयोभवाय च = और मयः स्वरूप वाले के लिए भी पूजा भाव हो। शंकराय = कल्याण करने वाले के लिए नमः = नमन हो, कृतज्ञता प्रकट करते हैं। मयस्कराय च = और मयः = सुख करने वाले के लिए भी आदर भाव हो। शिवाय = कल्याण भाव वाले के लिए च = भी नमः = नमन हो शिवतराय च = अत्यधिक कल्याण करने वाले के लिए भी नमन् हो।

व्याख्या- इस मन्त्र में प्रत्यक्ष रूप से तीन बार नमः शब्द है। नामपद यहाँ छः हैं। अतः शेष तीन के साथ च लगाकर नमः की अनुवृत्ति की गई है। वैसे मन्त्र में च छः बार है। इसका भाव यह है कि वेद की शैली में किसी के साथ एक बार के स्थान पर दो बार भी च की अनुवृत्ति हो सकती है। अतः कम से कम इन छः गुण वाले के लिए नमन हो। च शब्द निपातों में है, यह और, तथा, भी अर्थ को दर्शाता है। च का अधिकतर प्रयोग दो या अधिक के सम्बन्ध को दर्शाने के लिए किया जाता है। हाँ, सभी नामपद यहाँ चतुर्थी विभक्ति के एकवचन में हैं। संस्कृत भाषा के व्याकरण के अनुसार नमः के साथ आने वाले नामपद में चतुर्थी विभक्ति आती है। (नमः स्वस्ति..., पा. अ. 2.3.16)

आइए ! पहले नमः पर ही विचार करते हैं। नमः = नमः प्रह्णत्वे शब्दे च। सामान्यतः नमः शब्द झुकने के अर्थ में अधिक प्रसिद्ध है। यहाँ झुकना सत्कार, सम्मान, आदर, पूजा-भाव में है। अर्थात् इस प्रकार उपकार करने वाले के प्रति कृतज्ञता, आभार प्रकट करते हैं। अर्थात उसके लिए कार्यों को स्वीकार करते हैं। सत्कार की दृष्टि से जिसको जैसा आदर देना होता है, उसके आगे उसी के अनुपात से झुकते हैं। विशेष रूप से अपने-अपने गुरु और धर्मस्थल पर अपने इष्टदेव के सामने श्रद्धालुओं के झुकने में ऐसा देखा जाता है। कुछ साष्टांग भी करते हैं। ऐसे ही तीर्थयात्रा के समय कुछ नंगे पैर और कुछ साष्टांग नमस्कार करते हुए यात्रा करते हैं। अपने पूज्यों के प्रति पूजा भाव, सत्कार के अनुरूप कोई चीज देते हुए और बोलते हुए आदरभाव दर्शाया जाता है। जैसे कि हिमालय आदि पहाड़ी प्रदेश और ग्राम वाले किसी पूज्य को एक हाथ से वस्तु नहीं देते। हर स्थिति में दोनों हाथों के प्रयोग का प्रयास करते हैं। इस प्रकार विशेष आदरभाव दर्शाया जाता है। इस दृष्टि से विनीत, विनम्र, शिष्य या भक्त आदि शब्द भी विशेष भाव दर्शाते हैं, जिसका भाव आदर देने वाला, कहना मानने वाला प्रकट होता है। इसी भाव को नम्र, नम्रता, विनय शब्द भी प्रकट करते हैं। तभी तो कहते हैं- विद्या विनयेन शोभते। यह उक्ति गागर में सागर कहावत के अनुरूप अनेक रहस्यों को प्रकट करती है। नमः के स्वारस्य को समझने के लिए भर्तृहरि के नीति शतक का यह श्‍लोक एक सार्थक उदाहरण है-
भवन्ति नम्रास्तरवः फलोद्गमैः,
नवाम्बुभिर्भूरिरवलम्बिनो घनाः।
अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः॥
फल जैसे-जैस बढता और पकता है, वैसै-वैसे वह शाखा झुकती जाती है। दुसरा दृष्टान्त यहाँ मेघ = बादल का है। प्रह्णत्वे के साथ नमस् का दूसरा अर्थ है- शब्दे, जो कि यहाँ यह शब्द प्रयोग, स्तुति के भाव में लिया जा सकता है। हम आदर देने के अनुरूप ही किसी की स्तुति और उसके अनुकूल शब्दों का प्रयोग करते हैं। निघण्टु में नमः शब्द का अन्न और दण्ड अर्थ भी निर्दिष्ट है। हाँ, प्रकरण के अनुरूप कहीं ये अर्थ भी संगत होते हैं।

शम् मयस् शब्द सुख के अर्थ में हैं। वेदान्त में शम् = मन का शमन अर्थात मन से सम्बद्ध है। अतः मानसिक, आत्मिक सुख-शान्ति के अर्थ में शम् शब्द को लिया जा सकता है। मयस् भिन्न अर्थ की दृष्टि से भौतिक सुख वाचक लिया जा सकता है। हमारे इतिहास में भवन कला विशेषज्ञ का मय नाम आता है। भव भू (सत्ता) धातु से बनता है अर्थात जिसमें शम् की सत्ता है, मय का अस्तित्व है। अतः अर्थ होगा- सुखस्वरूपा। सत्-चित्त्-आनन्द में आनन्द शब्द प्रभु के इस स्वभाव, गुण को व्यक्त करता है।

शंकर, मयस्कर में भव के स्थान पर कर = करने वाला आ गया। अर्थात प्रभु जहाँ सुख स्वरूप है, वहाँ वह सुख का करने वाला भी है। इन दोनों का अन्तर यह है कि चीनी, शक्कर भी मिठाई की तरह मीठी होती हैं। वे जिस किसी को जिस प्रकार मीठा कर देती हैं, वैसा मिठाई नहीं कर सकती। यही बात नमक और नमकीन में भी देखी जाती है। अतः इस दृष्टान्त के अनुरूप प्रभु जहाँ सुखस्वरूप हैं, वहाँ वे सुखी करने वाले भी हैं।

शिव = कल्याण के अर्थ में और शिवतर में तर और जुड़ गया है। जो दो में से या दूसरे से किसी को अच्छा बताने के लिए वर्ता जाता है। गुड, बेटर, बेस्ट की तरह डिग्री का अन्तर है। अर्थात् भौतिक, संसारी वस्तुएं भी अपने-अपने अनुपात से कल्याण करती हैं। प्रभु उनसे अधिक, अत्यधिक हित करने वाला है। अतः ऐसे महान गुणों वाले परमात्मा को हमारा नमस्कार, बारम्बार नमन, स्मरण, पूजन हो। क्योंकि दयालु प्रभु ने हमारे कल्याण के लिए एक से एक बढकर कल्याणकारी वायु, जल, धरती जैसे प्राकृतिक पदार्थ दिए हैं। (वेद मंथन)

वेद मंथन, लेखक - प्रा. भद्रसेन वेदाचार्य एवं संपादक - आचार्य डॉ. संजय देव (Ved Manthan, Writer- Professor Bhadrasen Vedacharya & Editor - Acharya Dr. Sanjay Dev) Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev | घर की सुख और शांति के वैदिक उपाय | सफलता का विज्ञान | वेद कथा - 99 | भारत की गुलामी का कारण | Explanation of Vedas in Hindi | Ved Gyan | Ved Pravachan