बिहार के चम्पारण जिले में गोरे मालिकों के हाथों खेतिहार मजदूरों को तरह-तरह की यातनाएं दी जा रही थीं। गान्धी जी ने वहाँ जाकर उनकी दुःखद स्थिति की जांच की। किसी ने गान्धी जी से कहा कि इस इलाके का गोरा मालिक बड़ा खराब आदमी है। उसने आपको खत्म करवाने के लिए कई हत्यारों को तैनात कर रखा है।
यह सुनकर गान्धी जी उसी रात को अकेले ही गोरे की कोठी पर पहुंच गए। गोरे ने पूछा- “मिस्टर गान्धी! आप और यहाँ, इतनी रात गए?’’ गान्धी जी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- ’‘मैंने सुना है कि आपने मुझे मारने के लिए कुछ लोगों को किराए पर रख छोड़ा है। आप इतनी परेशानी क्यों उठाएं? इसलिए में खुद ही अकेले आपके पास चला आया, ताकि आप अपनी इच्छा पूरी कर सकें।‘’
बेचारा गोरा गान्धी जी की निर्भीकता देखकर दंग रह गया और माफी मांगने लगा।
मैं जूता भी बना लेता हूँ
गान्धी जी के आगे प्रत्येक काम का महत्व था। वे किसी काम को छोटा नहीं समझते थे। बापू ने जेल में रहते हुए एक अंग्रेज से जूता बनाना सीखा था।
सन् 1932 की बात है। उन दिनों सरदार पटेल यरवदा जेल में थे। एक दिन एक मोची पटेल के लिए जूता बनाकर लाया। बापू ने जूते देखकर कहा, ’‘पटेल! तुमने मुझसे क्यों नहीं कहाँ? मैं तुम्हारे लिए इतना बढ़िया जूता बना दूंगा।’’
सरदार पटेल बोले, ’‘बापू, क्या आप जूता भी बना लेते हैं?’’
बापू बोले, ‘’हाँ, बहुत दिन हो गए जूते बनाए हुए।’’
बापू ने एक घटना सुनाई- ’’तुम्हें पता है, सत्यानन्द बोस के लिए सोराब जी ने एक बार मेरे हाथ के जूते भेजने को लिखा था। मैंने जूते बनाकर भेज दिए। परन्तु बोस तो अति विनम्र थे। उन्होंने कहा, ये जूते मेरे पैरों के लिए नहीं, सिर के लिए हैं। बाद में मेरे बनाए जूतों को उन्होंने सोदपुर खादी प्रतिष्ठान को भेंट कर दिया।’’
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