अभी सम्पन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से एक सुखद संकेत मिला है कि हमारे देश के लोग लोकतन्त्र के प्रति गम्भीर हो रहे हैं, जिम्मेदार बन रहे हैं। इसका अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता हैं कि पहले मतदान 45-50 प्रतिशत तक होता था, लेकिन अब यह बढ़कर 74-75% तक पहुंच गया है। कहीं-कहीं तो यह आंकड़ा 80 प्रतिशत तक भी देखने को मिल रहा है।
हालांकि राज्यों में सरकार किसकी बनी, यह एक अलग मुद्दा हो सकता है । लेकिन लोग मतदान के प्रति गम्भीरता दर्शा रहे हैं। यह बड़ी बात है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि आने वाले वक्त में मतदाता राजनेताओं के क्षुद्र लालच, शराब, उपहार आदि से भी दूरी बना लेगा। यह भी सच है कि पूर्व की तुलना में मतदाताओं को लुभाने का यह प्रयास काफी कम हुआ है।
चुनावों में शोरगुल भी पहले की तुलना में कम हो रहा है। पार्टी और प्रत्याशी भी आजकल मतदाता के मौन को लेकर सशंकित रहते हैं। क्योंकि आज वे पहले से अपनी जीत-हार का आकलन भी नहीं कर पाते। मतदाताओं का मौन तभी टूटता है, जब वोटिंग मशीनों से वोट बाहर आता है। इससे यह भी लगता है कि अब वह समय भी दूर नहीं, जब देश में पूरी तरह साफ-सुथरे चुनाव होंगे।
...और गणतन्त्र दिवस की सार्थकता भी तो इसी में ही है। गणतन्त्र दिवस हमें हमारे गणतान्त्रिक अधिकारों और मूल्यों का सम्मान करने की याद दिलाता है। एक लोकतान्त्रिक देश के लिए उसका संविधान बहुत मायने रखता है। उसका संविधान ही उसे यह सभी अधिकार और कानून उपलब्ध करवाता है, जिसकी बदौलत देश अपनी व्यवस्था को चलाता है।
हालांकि यह भी उतना ही सच है कि अभी स्थितियाँ पूरी तरह ऐसी निर्मित नहीं हुई हैं कि देश का पूरा शासन और प्रशासन जनहित के प्रति समर्पित हो। भ्रष्टाचार, अव्यवस्थाओं का आलम आज भी चारों ओर दिखाई देता है। सत्ता सेवा से ज्यादा सुख का माध्यम बनी हुई है, लेकिन हमें आशा नहीं छोड़नी चाहिए। यदि सब मिलकर प्रयास करेंगे तो समता, समरसता और समृद्धि की धारा निश्चित ही प्रवाहित होगी। नवनिर्वाचित सरकारों के कर्णधारों से आशा की जाती है कि वे जनभावनाओं पर खरा उतरने का प्रयास करेंगे। दिव्ययुग के सभी पाठकों और शुभचिन्तकों को गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ ! - वृजेन्द्रसिंह झाला (दिव्ययुग- जनवरी 2014)