नए वर्ष के आगमन और पुराने वर्ष की विदाई पर आमतौर पर कहा जाता है- बीति ताहि बिसार देय, आगे की सुध लेय। सकारात्मक सोच की दृष्टि से यह कथन सही हो सकता है, व्यापक दृष्टिकोण से यह पूरी तरह सही नहीं है । क्योंकि हमें आगे की सुध तो लेना ही है, लेकिन बीते को बिसारना नहीं है । बल्कि उससे सबक लेकर आगे बढ़ना है। वर्ष प्रतिपदा (तद्नुसार 31 मार्च 2014) से नव संवत्सर 2071 का शुभारम्भ हो रहा है और 2070 विदाई ले रहा है। नवीनता में आशा, उमंग और उत्साह, आनंद का समावेश होता है और विदाई के साथ जुड़ी होती हैं कई अच्छी-बुरी स्मृतियाँ।
विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र भारत के लिए यह नवीन वर्ष ’बड़ी’ सम्भावनाएं लेकर आया है । क्योंकि इस वर्ष लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। निश्चित ही यह प्रत्येक देशवासी (मतदाता) के लिए जिम्मेदारी का समय होगा। भ्रष्टाचार और महंगाई से जूझ रही जनता के लिए यह तय करने का भी समय होगा कि वह कैसी सरकार चाहती है? यही वह समय होता है जब व्यक्ति अपने मत से इन बुराइयों पर चोट कर सकता है। अर्थात सही उम्मीदवार और सही पार्टी का चयन कर वह अपनी जिम्मेदारी का सही निर्वाह कर सकता है।
उम्मीदों के आसमान में हमें यदि सतरंगी इन्द्रधनुष रचना है तो हमें देखना होगा कि हमारे वर्तमान जनप्रतिनिधि और सरकार क्या हमारी उम्मीदों को पूरा कर पाए हैं? यदि नहीं तो फिर कौन हमारी आशाओं और विश्वास की कसौटी पर खरा उतर सकता है, इसका फैसला हमें ही करना है। यदि चूक गए तो फिर पांच साल तक प्रतीक्षा करनी होगी और यह समय काफी लम्बा होता है। तब तक देश और दुनिया में काफी कुछ बदल चुका होता है।
इसी महीने में हम रंगों का पर्व होली भी मना रहे हैं, लेकिन उससे पहले होलिका का दहन भी होगा अर्थात उत्सव से पहले बुराई का समापन आवश्यक है। तभी तो हम उत्सव का आनन्द उठा पाएंगे। अत: ’शक्ति’ एकत्रित करें और भारतीय लोकतन्त्र की बुराइयों को समाप्त कर सात्विक शक्तियों का मार्ग प्रशस्त करें। तभी दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र सबसे अच्छा लोकतन्त्र भी बन पाएगा।
कवि अशोक चक्रधर की पंक्तियाँ इस अवसर पर समीचीन हैं...
न धुन मातमी हो न कोई ग़मी हो,
न मन में उदासी, न धन में कमी हो।
न इच्छा मरे जो कि मन में रमी हो,
साकार हों सब मधुर कल्पनाएं।
अन्त में ’दिव्ययुग’ के सभी सुधी पाठकों को होली और नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। - वृजेन्द्रसिंह झाला (दिव्ययुग - मार्च 2014)