मई महीने की भरी दोपहरी में श्यामलाल खेत में हल चला रहा था नंगे सिर! उसका पिता नन्दलाल दोपहर को भोजन देने आया तो कहा, बेटा इतनी सख्त धूप में सिर पर अंगोछा बाँध लिया करो ताकि Sun-Stroke से बचाव रहे। श्यामलाल को टोका-टाकी अच्छी नहीं लगी। बूढे बाप को झाड़ा-फटकारा, खाली बर्तन दे घर लौटा दिया। बाद में बूढा बेटे के लिए लस्सी लेकर आया तो साथ में पोते को ले आया।
श्याम ने बेटे को दादा के साथ धूप में खड़े देखा तो तन-बदन में आग लग गई। बोला कि बाबा ! तेरा दिमाग खराब हो गया है जो तू फूल से नन्हे को धूप में घर से ले आया और ले ही आया तो उसे धूप में खड़ा रक्खा। बूढे ने कहा मैं उसका दुश्मन तो नहीं ! श्याम और बिगड़कर बोला, बेकार बहस मत किया कर। मैं उसका बाप हूँ। मैं बेहतर जानता हूँ कि बच्चे की भलाई किसमें है ।
बूढा रो पड़ा और कहा कि बेटा मैं भी तो एक बाप हूँ । मैं भी जानता हूँ कि मेरे बच्चे की भलाई किस में है। सीधी बात उलटे ढङ्ग से श्याम की समझ में आ चुकी थी। वह बाप से अपने द्वारा किए गए बर्ताव पर शरमिन्दा था और उसकी झुकी आँखें क्षमा प्रार्थना कर रही थीं। (दिव्ययुग- जनवरी 2014)