ओ3म् परि माग्ने दुश्चरिताद्वावस्वा मा सुचरिते भज।
उदायुवा स्वायुषोदस्थाममृताँ अनु ॥ यजुर्वेद 4।28॥
शब्दार्थ- हे (अग्ने) ज्ञानस्वरूप परमेश्वर ! आप (मा) मुझे (दुश्चरितात्) दुराचार, दुष्टाचार से (परि बाधस्व) दूर हटाओ और (मा) मुझको (सुचरिते) उत्तम चरित में, सदाचार में (आ भज) स्थापित करो । मैं (अमृतान्) जीवन्मुक्त, श्रेष्ठ, सदाचारी पुरुषों का (अनु) अनुकरण करके (उत् आयुषा) उत्कृष्ट जीवन और (सु आयुषा) सुदीर्घायु से युक्त होकर (उद् अस्थाम्) उत्तम मार्ग में स्थिर रहूँ।
भावार्थ- मन्त्र में कितनी सुन्दर प्रार्थना और कामना है-
1. प्रभो ! तू मुझे दुराचार से छुड़ाकर सदाचार की ओर ले चल।
2. प्रभो ! मुझे ऐसी शक्ति प्रदान कर कि मैं जीवन्मुक्त, श्रेष्ठ और सदाचारी पुरुषों का अनुकरण कर सकूं।
श्रेष्ठ और सदाचारी पुरुषों के अनुकरण से मनुष्य में तीन गुण आएंगे-
1. जीवन उन्नत और उत्कृष्ट होगा ।
2. आयु दीर्घ होगी ।
3. सदाचारी पुरुषों से प्रेरणा लेकर वह निरन्तर उत्तम मार्ग में स्थिर रहेगा तथा पतन के गढे में गिरने से बच जाएगा । - स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती
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