विशेष :

दीपोत्सव और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम

User Rating: 5 / 5

Star ActiveStar ActiveStar ActiveStar ActiveStar Active
 

दीपोत्सव के पावन पर्व के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का नाम अभिन्न रूप से जुड़ा है। लंकाधिपति रावण पर विजय प्राप्ति के उपरान्त श्रीराम के अयोध्या आगमन पर अयोध्या नगर की डगर-डगर, हर वीथि और वीथिका में नगरवासियों द्वारा ज्योतित की गयी दीपपंक्तियों से उस महानगरी का कोना-कोना ज्योतित हो उठा होगा। उसी पुनीत अवसर की प्रेरक स्मृति को अपने मानस में सहेजे कोटि-कोटि वेद-धर्म अनुरक्त जन प्रतिवर्ष इस पावन पर्व का सोत्साह पालन करते हैं। जिस मर्यादा पुरुषोत्तम की स्मृति सहस्त्रों वर्षों से विश्‍व को अन्याय और अनाचार के विरूद्ध कर्मरत होने की प्रेरणा प्रदान कर रही है, उनके श्री चरित्र को महर्षि बाल्मीकि ने अपनी अमर कृति रामायण से अमरत्व प्रदान कर दिया है। सन्त तुलसी ने भी उनकी महिमा का गायन अपने महान ग्रन्थ रामचरितमानस में किया है।

इन ग्रन्थों में वर्णित श्रीराम का जीवन आज भी जन-जन का पथ प्रदर्शक है। श्रीराम का जीवन चरित्र आज भी श्रद्धा सहित सुना जाता है। बाल्मीकि ने श्रीराम के चरित्र का अपने शब्दों में अंकन कर अमरत्व पाया है, तो सन्त तुलसी ने भी उसी महिमा मण्डित महापुरुष के जीवनवृत्त को अपने ग्रन्थ रामचरितमानस की विषयवस्तु बनाकर विदेशियों की दासता के युग में अपने इस वाक्य से स्वातन्त्र्य का महामन्त्र गुंजाया था कि ‘पराधीन सपनेहुं सुख नाहीं।’

सन्त तुलसीदास ने रामचरितमानस में अनेकों प्रतीकों और कल्पनाओं के माध्यम से श्रीराम के चरित्र को आभामण्डित किया था। उनकी ‘मानस’ ने अपने रचनाकाल में जनमानस को धैर्य तो प्रदान किया ही था, इसी ग्रन्थ ने विश्‍व के अनेक भागों में जाकर बसे लाखों हिन्दू जन को हिन्दुत्व से जोड़े रखने और उनके वैदिक संस्कृति के प्रति अनुरक्त रहने में महती भूमिका निभाई है। इसी ग्रन्थ ने श्रीराम के चरित्र का पठन-मनन कर अनेक अहिन्दू मनीषियों को भी हिन्दुत्व की वैचारिक गंगा और वैदिक धर्म के ज्ञान-सागर में आकण्ठ स्नान करने का सुअवसर प्रदान किया था। रहीम और नजीर आदि अहिन्दू मनीषियों की रचनाएं इसी सत्य को आज भी उजागर कर रही हैं।

राम का सम्पूर्ण जीवनवृत्त राष्ट्र-जीवन में एकता और महान वैदिक संस्कृति के शाश्‍वत सत्य की अभिव्यक्ति करता है। आदर्श पुत्र और आदर्श भ्राता, आदर्श पति और आदर्श मित्र ही नहीं, अपितु आदर्श सेनानायक और कुशल प्रशासक के रूप में आज भी श्रीराम की छवि कोटि-कोटि जन के मन में अंकित है। श्रीराम सत्य की रक्षार्थ संघर्ष के पक्षधर थे। जीवन यात्रा के विभिन्न चरणों में जो कुछ भी अनुकरणीय और श्रेयस्कर है, उस सबके श्रीराम सजीव, साकार और जीवन्त प्रतिमान थे।

बाल्यकाल से ही सत्य और धर्म के रक्षण तथा असत्य के उन्मूलन को उन्होंने अपना जीवन दर्शन बनाया था। युवावस्था के प्रारम्भ से ही अधर्म के विरूद्ध संग्राम करने को उन्होंने अपने कर्म कौशल में प्रतिष्ठित किया था। पिता के आदेश से राज्य को त्यागकर वन जाने में उन्होंने संकोच तो तनिक सा भी अपने मानस पटल पर उभरने ही नहीं दिया था। इस तरह उन्होंने पितृभक्ति का एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया था।

सिद्धान्त की रक्षार्थ सत्ता का त्याग, अन्याय, शोषण, उत्पीड़न और दमन के विरुद्ध संघर्ष तथा राष्ट्र के उपेक्षित जन के उद्धारार्थ सतत प्रयत्न, यही मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन चरित्र का महान मन्त्र है। देश उनके काल में भी अनेक खण्डों में विभक्त सा था। उन्होंने अपनी कर्मशक्ति के बल पर राष्ट्र में अखण्डता का मन्त्र फूंका था। उनका लंका विजय अभियान भी वैदिक संस्कृति के सत्य स्वरूप को विकृत करने वाली एक महाशक्ति के दमन का एक पग था। आध्यात्मिकता यदि वैदिक संस्कृति का सारतत्व है, तो आसुरी प्रवृत्तियों के दमन हेतु शक्तिसंचय भी उसका मूलमन्त्र रहा है। श्रीराम ने अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध शर-सन्धान को एक पावन अनुष्ठान के रूप में प्रतिष्ठित किया था।

वैदिक संस्कृति और आर्य सभ्यता जिसे वर्तमान सन्दर्भों में हिन्दुत्व की संज्ञा देना ही समीचीन है, उनके जीवन के हर पक्ष में प्रतिभासित हुई थी। श्रीराम ने वनवासियों और गिरिजनों को अपने हृदय के निर्मल प्रेम की गंगा के शीतल जल से इस तरह से आप्लावित किया था कि सुग्रीव, अंगद, जाम्बवन्त और हनुमान सरीखे अपनी शक्ति को ही विस्मृत कर निराश और हताश होकर बैठे थे, व नरपुंगव पौरुषवान सेनानियों के रूप में उभर उठे थे। श्रीराम का प्रेरक चरित्र आज भी हताश-निराश राष्ट्र के उत्थान हेतु एक महान संजीवनी सुधा है।

श्रीराम संगठन सूत्र के ऐसे कुशल सूत्रधार थे, जिन्होंने बिछड़ों और पिछड़ों को गले लगाने का मार्ग सहस्त्रों वर्ष पूर्व दिखाया था। वनवासिनी शबरी के बेरों के स्वाद में जीवन में परम आल्हाद की अनुभूति करने वाले श्रीराम का प्रेरक जीवन आज भी हमें यह सन्देश दे रहा है कि हम उन वानवासियों और उपेक्षित तथा शोषित बन्धुओं को सप्रेम गले लगाएं जो उपेक्षित और उत्पीड़ित होते हुए भी हिन्दुत्व की पावन डोर से स्वयं को बांधे हुए हैं। श्रीराम का जीवन इस सत्य का साक्षी है कि धन-धान्य, स्वर्ण और सुख तथा वैभव के साधन ही राष्ट्र की जीवनधारा को सतत सशक्त रखने का मूलाधार नहीं हैं, बल्कि साहस, शौर्य और न्याय एवं सत्य सिद्धान्त के लिए संघर्ष ही विजयश्री वरण करने का सामर्थ्य उपजाता है। जो लोग प्रेम के मार्ग को नहीं समझते, उन्हें सत्य की शक्ति के रौद्र रूप का दर्शन कराना ही सही राह पर लाने का एकमात्र मार्ग है। ‘शठे शाठ्यम् समाचरेत’ ही राष्ट्र की एकता को खण्डित करने में संलग्न अपनों और परायों को सद्मार्ग पर लाने का एकमात्र मन्त्र है।

पाश्‍चात्य विचारधारा के प्रति अनुरक्त अनेक जन भौतिक समृद्धि को ही राष्ट्र के उत्थान का एकमात्र मार्ग मान बैठे हैं। उनके नेत्रों पर पड़े भ्रम के परदे को हटाकर उन्हें सत्य का दर्शन कराने हेतु श्रीराम का पावन चरित्र एक महान साधन है। जो यह दर्शाता है कि चारों वेदों और षट्दर्शन का प्रकाण्ड पण्डित माना जाने वाला रावण जब अहंकार के वशीभूत आर्य मर्यादाओं के उल्लंघन पर उतर आता है, तो उसे शास्त्र नहीं अपितु शस्त्र की भाषा से ही सत्य का साक्षात कराया जा सकता है।

मर्यादा पुरुषोत्तम के जीवनवृत्त से यह तथ्य उजागर हो जाता है कि धर्म, मर्यादा, सत्य और शील तथा विनय के साथ ही साथ प्रबल पौरुष और पराक्रम का संचय भी आवश्यक है तथा साधना मात्र नहीं, अपितु साधन ही उसका सशक्त और सफल माध्यम होता है। देश के समक्ष आज विकट परिस्थितियाँ विद्यमान हैं। कश्मीर की केसर क्यारियाँ आज पुष्पों की सुगन्ध से नहीं अपितु राष्ट्रद्रोही तत्वों के जघन्य कृत्यों से संतप्त हैं। रामचरित के उद्गाता गुरु गोविन्दसिंह की कर्मभूमि भारत वर्ष में भ्रमित जन आज अपने षड्यन्त्रों को सफल बनाने के प्रयासों में किसी न किसी सीमा तक संलग्न हैं।

हम दीपोत्सव मना रहे हैं, किन्तु समस्याओं का घटाटोप राष्ट्र के भाग्य गगन को तिमिराच्छन्न सा किए हुए हैं। विघटन और विखण्डन की शक्तियाँ अपने प्रभाव मण्डल को सशक्त बनाने के लिए संकीर्णता और साम्प्रदायिकता के हथकण्डे बरतने में पीछे नहीं हैं। सत्य के लिए सिंहासन को त्याग देने वाले श्रीराम के ही देश में सत्ता प्राप्त करने के लिए सिद्धान्तों को सूली पर चढ़ा देने में भी संकोच नहीं बरतने वाले तत्व अहर्निश नित-नए षड्यन्त्र रचने में संलग्न हैं। अन्धकार के बढ़ते तान-वितान को भेदकर समाज के जन-जन में नवचैतन्य के सृजन और विद्यमान समस्याओं से राष्ट्र को उबरने के लिए श्रीराम के मात्र जयगान की नहीं, अपितु जयमन्त्र को गुंजायमान करने की आदरभाव है।

जो अतीत था, वह जा चुका है, उसे पुनर्जीवित करना तो सम्भव नहीं है। परन्तु अतीत के अनुभवों को आधार बनाकर हम उन तत्वों की दुरभिसन्धियों को क्षार-क्षार करने में समर्थ हो सकते हैं। ऐसे तत्व भारत को मात्र भोग्यवस्तु मानते हैं। वन्दना का भाव उनमें नहीं है। आओ! दोपोत्सव की इस पावन बेला में संकल्प ग्रहण करें कि हम हर भारतीय के हृदय में आशा का एक दीप जलाएंगे और उस भारतभूमि के प्रति अनुरक्ति का भाव जगाएंगे, जिसकी महिमा श्रीराम ने अपने इन शब्दों में व्यक्त की थीः-
अपि स्वर्णमयी लंका, लक्ष्मण न मे रोच्चयते
जननी जन्मभूमिश्‍च, स्वर्गादपि गरीयसी। - दिव्या आर्य

Maryada Purushottam Shri Ram | Vedic Sanskriti | Tulsidas | Shabri | Guru Govind Singh | Cultural Festival- Deepawali | Conflicting World | Our Festival | Indian System | Spiritual | Vedic Motivational Speech in Hindi by Vaidik Motivational Speaker Acharya Dr. Sanjay Dev for Bhulath - Nokpul - Bharoli Kalan | News Portal, Current Articles & Magazine Divyayug in Bhum - Nongstoin - Bhawanigarh | दिव्ययुग | दिव्य युग |


स्वागत योग्य है नागरिकता संशोधन अधिनियम
Support for CAA & NRC

राष्ट्र कभी धर्म निरपेक्ष नहीं हो सकता - 2

मजहब ही सिखाता है आपस में बैर करना

बलात्कारी को जिन्दा जला दो - धर्मशास्त्रों का विधान