विशेष :

भारतीय संस्कृति की जड़ पर प्रहार

User Rating: 5 / 5

Star ActiveStar ActiveStar ActiveStar ActiveStar Active
 

भारतीय संस्कृति जिसने विश्‍व को मानवता का संदेश दिया और विश्‍वबन्धुत्व का पाठ पढ़ाया, जिसने सहअस्तित्व के संस्कार देकर हिल मिलकर जीना सिखाया, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय जन-जीवन उस गुलदस्ते के समान सुसज्जित है, जिसमें भाँति-भाँति के पुष्प सुशोभित हो रहे हैं, जिसकी प्रशंसा अनेक विदेशी चिन्तक करते रहे हैं, उस पर उसी के पुत्र आज प्रहार करते हुए उसे समूल नष्ट करने पर तुले हुए हैं।

ये आत्मघाती कथित विद्वान् अपने दूषित विचारों से आने वाली पीढ़ी के मन-मस्तिष्क को भर देना चाहते हैं, ताकि उनमें भारतीय संस्कृति के पवित्र विचार और संस्कार जमने ही नहीं पाएं। वे अपनी ही संस्कृति का तिरस्कार कर सकें। इस चिन्ता का संदर्भ उस पाठ्य-पुस्तक से है, जो देवी अहिल्या विश्‍वविद्यालय इन्दौर द्वारा बी.ए. प्रथम वर्ष की कक्षा हेतु चलाई जा रही है। उसका नाम है- ‘इंग्लिश लैंग्वेज एण्ड इंडियन कल्चर’। इस पुस्तक के ‘वैदिक साहित्य में जीवन’ शीर्षक के अन्तर्गत पढ़ाया जा ररा है कि- ‘यह कहना बिल्कुल सही नहीं है कि वैदिक साहित्य विश्‍व का सबसे प्राचीन साहित्य है, क्योंकि मेसोपेटिमिया तथा मिश्र तथा मिश्र के साहित्य इससे पहले के हैं।’ इस मान्यता के प्रमाण में इन विद्वानों का आधार किन्हीं अन्य लेखकों की पुस्तकों के लेख हो सकते हैं। ‘वैदिक साहित्य विश्‍व का सबसे प्राचीन साहित्य हैं’ इस सम्बन्ध में भारतीय आधार को जाने दीजिए, क्योंकि इस सम्बन्ध में अपने पक्ष का आरोप लगाया जा सकता है। इसके लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के यूनेस्को की मान्यता को लिया जाना ही उचित होगा। यूनेस्को ने विश्‍व के प्राचीनतम साहित्य के रूप में ‘ऋग्वेद’ को मान्य किया है। इस सत्य को झुठलाकर विद्यार्थियों को दिग्भ्रमित किया जा रहा है। सत्य तो यह है कि वैदिक-साहित्य किसी जाति या किसी देश के लोगों तक सीमित नहीं है । वह तो मानव-मात्र का मार्गदर्शक ग्रन्थ है। ‘भारत-भारती’ के अनुसार-
फैला यहीं से ज्ञान का आलोक सब संसार में, जागी यहीं थी जग रही जो ज्योति सब संसार में।
इंजील और कुरान आदिक थे न जब संसार में, हमको मिला था दिव्य वैदिक बोध जब संसार में॥
एक और प्रश्‍न पूछा गया है- ‘उपनिषद् का अर्थ समझाइये ?’ उत्तर दिया गया है- ‘उपनिषद् का मतलब विद्यार्थी का गुरु के समीप बैठकर चर्चा करना तथा उनका आध्यात्मिक विकास है।’ यह कितना ऊटपटांग उत्तर है। शास्त्रीय संदर्भ के प्रकाश में इसका उत्तर इस प्रकार है- उपनिषद् तीन शब्दांशों से मिलकर बना है- उप+नि+षद्। उप अर्थात् उपपत्ति अर्थात संगति, न अर्थात् निश्‍चय और षद् अर्थात् स्थिति। भाव यह है कि जिस उपपत्ति ज्ञान के प्रभाव से जो कर्त्तव्य-कर्म कर्त्तव्य दृष्टि से मनुष्य के मन-मस्तिष्क में दृढता से स्थित हो जाता है, वह उस कर्त्तव्य-कर्म की उपनिषद है। सूत्रात्मक भाव यह है कि नित्य-सिद्ध विज्ञान सिद्धांत को ही उपनिषद् कहते हैं। उदाहरणार्थ ईशोपनिषद को लेते हैं । वह नित्य सिद्ध विज्ञान सिद्धांत जो निश्‍चित रूप से ईश का पूर्णतः ज्ञान देकर ईश के निकट बैठा दे अर्थात् उसका पूर्णतः परिचय देकर उसके प्रति दृढ़ निष्ठा पैदा कर सके वही ईशोपनिषद है।

और भी प्रश्‍न उक्त पाठ्य पुस्तक में हैं, जिनके भ्रमित उत्तर विद्यार्थी को भारतीय संस्कृति की गलत जानकारी देने वाले हैं। इनमें कुछ प्रश्‍न इस प्रकार हैं- ‘वैदिक स्तुतियों का वर्णन किस तरह करेंगे ? पहले दो वेद किस काल से सम्बन्ध रखते हैं? अथर्ववेद की विषय सामग्री क्या है ? ब्राह्मण ग्रन्थों का उद्देश्य क्या था ? आरण्यक किसके द्वारा रचे गए थे ?

इन प्रश्‍नों के जो उत्तर दिए गए हैं, उनसे भारतीय मनीषा संतुष्ट नहीं हो सकती। क्या ऐसी स्थिति में वैदिक-संस्कृति के मर्मज्ञ आचार्यों से इनके उत्तर प्राप्त कर बालकों को बताए नहीं जा सकते थे ? ऐसा न करके जो उत्तर दिए गए हैं, उनसे ऐसा लगता है कि भारतीय संस्कृति का समूल नाश करने के लिए उसकी जड़ों पर प्रहार किया जा रहा है। - प्रा. जगदीश दुर्गेश जोशी

Indian Culture | Humanity | World Bond | Holy thoughts | Devi Ahilya Vishwavidyalaya | Vedic Knowledge | Vedic Literature | United Nations Organisation | Understanding | Spiritual Growth | Vedic Motivational Speech & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) for Chechat - Pataudi - Mullanpur Garib Dass | Newspaper, Vedic Articles & Hindi Magazine Divya Yug in Cheema - Pathanamthitta - Nabha | दिव्ययुग | दिव्य युग |