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भारतीय संस्कृति का अनोखा पर्व : होली

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holi ka anand

होली भारतीय संस्कृति की पहचान का एक पुनीत पर्व है। होली एक संकेत है वसन्तोत्सव के रूप में ऋतु परिवर्तन का। एक अवसर है भेदभाव की भावना को भुलाकर पारस्परिक प्रेम और सद्भावना प्रकट करने का। एक सन्देश है जीवन में ईश्‍वरोपासना एवं प्रभुभक्ति बढ़ाने का।
इस उत्सव ने कितने ही खिन्न मनों को प्रसन्न किया है, कितने ही अशान्त-उद्विग्न चेहरों पर रौनक लायी है। होलिकोत्सव से मानव जाति ने बहुत कुछ लाभ उठाया है। इस उत्सव में लोग एक-दूसरे को अपने-अपने रंग से रंगकर, मन की दूरियों को मिटाकर एक-दूसरे के नजदीक आते हैं।
यह उत्सव जीवन में नया रंग लाने का उत्सव है। आनन्द जगाने का उत्सव है। ‘परस्पर देवो भव’ की भावना जगाने वाला उत्सव है। विकारी भावों पर धूल डालने एवं सबके प्रति प्रेम जगाने का उत्सव है।
हमारी इन्द्रियों, तन और मन पर संसार का रंग पड़ता है और उतर जाता है। लेकिन भक्ति और ज्ञान का रंग अगर भूल से भी पड़ जाये तो उस रंग को कभी भी हटाया नहीं जा सकता। इसी भक्ति और ज्ञान के रंग में खुद को रंगने का पर्व है होली।
होली रंगों का त्यौहार है। यह एक संजीवनी है जो साधक की साधना को पुनर्जीवित करती है। यह समाज में प्रेम का सन्देश फैलाने का पर्व है।
होली मात्र लकड़ी के ढेर को जलाने का त्यौहार नहीं है। यह तो चित्त की दुर्बलताओं को दूर करने का, मन की मलिन वासनाओं को जलाने का पवित्र दिन है।
आज के दिन से विलास-वासनाओं का त्याग करके परमात्म प्रेम, सद्भावना, सहानुभूति, इष्टनिष्ठा, जपनिष्ठा, स्मरणनिष्ठा, सत्संगनिष्ठा, स्वधर्मपालन, करुणा, दया आदि दैवी गुणों का अपने जीवन में विकास करना चाहिए। भक्त प्रह्लाद जैसी दृढ़ ईश्‍वरनिष्ठा, प्रभुप्रेम, सहनशीलता व समता का आह्वान करना चाहिए।
होली अर्थात् हो ली। अर्थात् जो हो गया सो गया। कल तक जो होना था वह हो चुका। उसे भूल जाओ। निन्दा हो गयी सो हो गयी, प्रशंसा हो गयी सो हो गयी, जो कुछ हो गया सो हो गया। तुम रहो मस्ती में, आनन्द में।
आइये, आज से एक नया जीवन शुरू करें। जो दीन-हीन हैं, शोषित हैं, उपेक्षित हैं, पीड़ित हैं, अशिक्षित हैं, समाज के उन अंतिम व्यक्तियों को भी सहारा दें। जिन्दगी का क्या भरोसा? कोई कार्य ऐसा कर लें कि जिससे हजारों हृदय आशीर्वाद देते रहें। चल निकलें ऐसे पथ पर कि जिस पर चलकर कोई दीवाना प्रह्लाद बन जाये।
होली का उत्सव हमें यही पावन सन्देश देता है कि हम भी अपने जीवन में आने वाली विघ्न-बाधाओं का धैर्यपूर्वक सामना करें एवं कैसी भी विकट परिस्थितियाँ आयें किन्तु प्रह्लाद की तरह ही ईश्‍वर में अपनी श्रद्धा को अडिग बनाये रखें।
जहरीले रंगों के स्थान पर परम शुद्ध, परम पावन परमात्मा के नाम संकीर्तन के रंग में खुद रंगें और दूसरों को भी रंगायें। छोटे-बड़े, मेरे-तेरे के भेदभाव को भूलकर सबमें उसी एक सत्यस्वरूप, चैतन्यस्वरूप परमात्मा को निहारकर अपना जीवन धन्य बनाने के मार्ग पर अग्रसर हों। 

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