विशेष :

आयुर्वेद : एक आदर्श चिकित्सा पद्धति (3)

User Rating: 5 / 5

Star ActiveStar ActiveStar ActiveStar ActiveStar Active
 

fitness copy

दातौन से मुख की दुर्गन्ध और चिपचिपाहट दूर हो जाती है तथा कफ निकल जाता है। मुख में स्वच्छता, अन्न में रुचि तथा मन में प्रसन्नता उत्पन्न होती है । इसलिए प्रतिदिन दातौन करनी चाहिये।

जिह्वानिर्लेखन - दातौन करने के बाद जिह्वा निर्लेखन (जीभी) द्वारा जीभ को सुखपूर्वक साफ करें। इससे आहार में रुचि, मुख में स्वच्छता एवं लघुता आ जाती है।
अभ्यंग- अभ्यंग को आम बोलचाल की भाषा में मालिश कहते हैं। शीतकाल में वातनाशक, सुगन्धित, उष्ण एवं ग्रीष्म काल में शीतवीर्य तैलों का प्रयोग करना चाहिये। अभ्यंग वायु को शांत करता है। शरीर के अंग प्रत्यंगों को पुष्ट करता है, निद्रा लाता है, शरीर को मजबूत एवं बड़ा बनाता है। जैसे धुरी पर तैल लगाने से रथ के पहिये सरलता से चलते हैं, चमड़े पर तैल लगाने से मशक कोमल तथा दृढ़ हो जाता है और मिट्टी के घड़े पर तैल लगाने से घड़ा स्निग्ध (चिकना) हो जाता है, वैसे ही शरीर पर तैल का अभ्यंग करने से शरीर की सन्धियों का प्रसारण एवं संकोचन आसानी से होने लगता है । त्वचा कोमल एवं दृढ़ हो जाती है और समस्त शरीर बाहर-भीतर से स्निग्ध हो जाता है।
अभ्यंग समस्त शरीर पर करें । परन्तु शिर एवं हाथ-पैरों पर विशेष रूप से करना चाहिये । क्योंकि शिर पर अभ्यंग करते रहने से बालों की वृद्धि होती है, साथ ही वे स्निग्ध एवं मजबूत व घने भी हो जाते हैं।

व्यायाम - इसे आम भाषा में कसरत भी कहते हैं। जिस कर्म से शरीर में थकावट की अनुभूति हो उसे ‘व्यायाम’ कहते हैं। विधिपूर्वक व्यायाम करने से शरीर में लघुता, स्फूर्ति एवं हलकापन, परिश्रम करने की शक्ति, जठराग्नि की वृद्धि, मोटापे का क्षय हो जाता है तथा शरीर सुडौल एवं ठोस हो जाता है । अंग-प्रत्यंग की मांसपेशियाँ अलग-अलग दिखाई देने लग जाती है तथा पुष्ट दिखाई देती हैं । बलवान व्यक्तियों को एवं घी-दूध के साथ भोजन करने वालों को शीतकाल में तथा वसन्त-ऋतु में अर्द्धशक्ति भर व्यायाम करना चाहिये। ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु एवं शरद ऋतु में बहुत ही कम व्यायाम करना चाहिये। यहाँ अर्द्धशक्ति भर व्यायाम से तात्पर्य है कि जब व्यायाम करते-करते श्‍वास फूलने लगे या जल्दी-जल्दी आने लगे, कक्षा प्रदेश में (काँख में), माथे एवं नासा के अग्र भाग पर, हाथों, पैरों एवं समस्त सन्धियों में पसीना आने लगे और मुख सूखने लगे तब समझ जाये कि आधी शक्ति खर्च हो गई है । उस समय व्यायाम छोड़कर बैठ जाये और शरीर का मर्दन स्वयं करे या अन्य व्यक्ति से करावे।

अपनी शक्ति से ज्यादा व्यायाम कभी-भी नहीं करें । विशेषकर रोगी व्यक्ति, बालक, वृद्ध और अजीर्ण से पी़डित व्यक्तियों को व्यायाम नहीं करना चाहिए। अधिक एवं अविधिपूर्वक व्यायाम करने से अनेक प्रकार की व्याधियाँ हो जाती हैं।

उचित प्रकार से व्यायाम करने से परिश्रम, मानसिक थकावट, प्यास, सर्दी, गर्मी आदि को सहन करने की शक्ति एवं उच्चकोटि की व्याधि-क्षमता (इम्युनिटी) प्राप्त होती है। व्यायाम करने वालों को शत्रु परेशान नहीं करते और उस पर जल्दी से बुढापे का आक्रमण नहीं होता तथा उसके पास रोग वैसे ही नहीं आते, जैसे सिंह के पास खरगोश एवं सियार आदि क्षुद्र पशु। प्रतिदिन व्यायाम करने वाले का गरिष्ठ एवं कच्चा-पक्का भोजन भी सुखपूर्वक पच जाता है।

उद्वर्तन- जौ, चना, मसूर आदि का आटा और तैल एवं हल्दी को जल में मिलाकर अथवा सरसों का कल्क बनाकर शरीर पर मलना ‘उद्वर्तन’ कहलाता है। इसे साधारण भाषा में ‘उबटन’ कहते हैं।

व्यायाम के पश्‍चात् उबटन लगाना चाहिये। उबटन से कफ का नाश होता है और मेदो धातु का विलयन (पिघलना) होता है। यह अंग-प्रत्यंग को स्थिर, दृढ़ एवं बलवान करता है और त्वचा को अत्यंत स्निग्ध एवं कान्तियुक्त करता है। उबटन लगाने से त्वचा एवं रोमकूपों की मलिनता दूर हो जाती है। परिणामस्वरूप त्वचा कान्तियुक्त हो जाती है। उबटन लगाते समय जो मर्दन होता है और त्वचा का घर्षण होता है, उससे उत्पन्न हुई उष्णता कफ एवं मेद को पिघला देती है। इस प्रकार उबटन क्रिया मोटापा कम करने में भी सहायक है।

स्नान- प्रतिदिन समशीतोष्ण जल से स्नान करना चाहिये अर्थात् नहाने के लिए पानी न तो ज्यादा गरम हो तथा ना ही ज्यादा ठण्डा हो। स्नान करने से जठराग्नि एवं पाचन शक्ति तीव्र हो जाती है। रक्त आदि धातुओं के साथ-साथ शुक्र तक की पुष्टि अच्छी प्रकार से हो जाती है। शक्ति की वृद्धि के साथ ही बाजीकरण के सब गुणों की प्राप्ति होती है। आयु की वृद्धि होती है। रसायन के सद्गुणों की प्राप्ति होती है। ओज एवं बल की वृद्धि होती है। सम्पूर्ण शरीर में खुजली, त्वचागत मैल, थकावट, पसीने की बदबू, तन्द्रा, प्यास, शरीर में जलन तथा बुरे विचारों का नाश होता है।

स्नान से बाह्य शुद्धि तो होती ही है, साथ ही मानसिक शुद्धि भी होती है। शीतल जल से स्नान करते समय भले ही कुछ शीतलता लगती हो, परन्तु तत्काल ही शीतलता का नाश भी हो जाता है। इससे प्रतीत होता है कि स्नान करने से अग्नि (शारीरिक ताप) की वृद्धि होती है और भूख भी अच्छी लगती है।

स्नान करने के पश्‍चात् कंघी से केश संवारना चाहिये। केश संवारते समय, पगड़ी बाँधते समय, कुरता आदि वस्त्र पहनते समय शीशा अवश्य देखना चाहिये, जिससे कोई हास्यापद त्रुटि न रह जाये।•

अनुभूत-नुस्खे

1. कलौंजी को सिरके में पीसकर रात को मुँह पर लगाकर सो जाएं। सवेरे उठकर पानी से धो डालें। इस उपाय को करने से कुछ ही दिनों में मुँहासे और छोटे-छोटे तिल दोनों ही नष्ट हो जायेंगे।
2. जायफल, लालचन्दन और काली मिर्च, इनको समान-समान मात्रा में लेकर पानी में पीसकर मुँह पर लेप करने से मुँहासे नष्ट हो जाते हैं।
3. नींबू का रस और चीनी को अच्छी तरह से मिलाकर सिर में लगायें । फिर 3-4 घण्टे बाद सिर धोने से सिर का डेण्ड्रफ (रूसी) नष्ट हो जाता है।
4. भैंस के दही में ककोड़े की जड़ पीसकर सिर में लेप करने से और फिर सिर धोकर भृंगराज तैल की मालिश करने से बाल खूब बढ़ जाते हैं। लेप को 2-3 घण्टे तक लगाए रखना चाहिये और 21 दिन तक बराबर उसे लगाना चाहिये।
5. मंजिष्ठा (मंजीठा) के चूर्ण में शहद मिलाकर लेप करने से चेहरे पर पड़ी हुई झाँई नष्ट हो जाती है।
6. मसूर की दाल को दूध में पीस लें। फिर उसमें थोड़ा सा कपूर एवं घी मिला लें। इस लेप को लगाने से चेहरे की झाईयाँ नष्ट होकर चेहरा कमल के जैसा मनोहर हो जाता है।
7. यदि किसी बालक के पेट में कृमि हों तो वायविडंग का चूर्ण एवं सन्तरे के छिलके का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर दो चम्मच (10 ग्राम) की मात्रा में गरम पानी से रात में सोते समय देना चाहिये। पेट के कीड़े मरकर बाहर निकल जायेंगे।
8. काली मिर्च के 5-6 दाने पीसकर उसमें शहद मिलाकर प्रातःकाल एवं सायंकाल 15 दिनों तक सेवन करें। इससे शीतपित्त (पित्ती उछलना) या अर्टीकेरिया मे बहुत लाभ होता है।
9. लगभग 10 कालीमिर्च के दानों को 1/2 गिलास पानी में उबालकर उससे कुल्ला करने से मसूढों का फूलना ठीक हो जाता है तथा मसूढे मजबूत और स्वस्थ रहते हैं।
10. आधा चम्मच पीसी काली मिर्च, आधा चम्मच मिश्री एवं आधा चम्मच गाय का घी इन तीनों को मिलाकर प्रातःकाल सेवन करें । इससे आंखों की ज्योति में वृद्धि होती है तथा आँखों की कमजोरी दूर हो जाती है।• - डॉ. धर्मेन्द्र शर्मा एम.डी.

वैधानिक सलाह / परामर्श - इन प्रयोगों के द्वारा उपचार करने से पूर्व योग्य चिकित्सक से सलाह / परामर्श अवश्य ले लें। सम्बन्धित लेखकों द्वारा भेजी गई नुस्खों / घरेलु प्रयोगों / आयुर्वेदिक उपचार विषयक जानकारी को यहाँ यथावत प्रकाशित कर दिया जाता है। इस विषयक दिव्ययुग डॉट कॉम के प्रबन्धक / सम्पादक की कोई जवाबदारी नहीं होगी।

Ayurveda : An Ideal Medical Practice | Intake Prescription | Oldest Medical Practice | Cultural Heritage | Cleanliness in the Mouth | Interest in Food | Ayurveda from Vedas | Vedic Motivational Speech in Hindi by Vaidik Motivational Speaker Acharya Dr. Sanjay Dev for Dausa - Punjaipugalur - Mandi | News Portal, Current Articles & Magazine Divyayug in Davlameti - Puranattukara - Mant Khas | दिव्ययुग | दिव्य युग