ओ3म् सुमङ्गली प्रतरणी गृहाणां सुशेवा पत्ये श्वसुराय शंभूः।
स्योना श्वश्वै प्र गृहान्विशेमान्॥ (अथर्ववेद 14.2.26)
शब्दार्थ- हे देवी! तू (गृहाणाम्) घरों, गृहस्थों, घर के लोगों की (सुमङ्गली) कल्याणकारी (प्रतरणी) तारने वाली, पार ले जाने वाला नौका के समान है। तू (पत्ये) पति के लिए (सुशेवा) सुसेवाकारिणी बन। (श्वसुराय) श्वसुर के लिए (शम्भूः) शान्तिदायक और कल्याणदात्री हो (श्वश्वै) सास के लिए (स्योना) सुख देने वाली होकर (इमान् गृहान्) इन घरों, इन गृहस्थों में (प्रविश) प्रवेश कर।
भावार्थ- घर में प्रवेश करने वाली नववधुओं में क्या-क्या गुण और विशेषताएँ होनी चाहिएँ, वेद ने बहुत थोड़े से परन्तु अत्यन्त सारगर्भित और मार्मिक शब्दों में वर्णन कर दिया है-
1. नववधुओं को पारिवारिक जनों को दुःखों से तारने वाली होना चाहिए।
2. पति की सेवा और सुश्रूषा करके उसे सदा प्रसन्न रखना चाहिए।
3. श्वसुर के लिए शान्ति और कल्याणदात्री होना चाहिए।
4. सास के लिए सुख देने वाली होना चाहिए।
इन चार गुणों से युक्त होकर ही वधुओं को पति-गृह में प्रवेश करना चाहिए। जिन घरों में ऐसी सुशीला नारियाँ होती हैं वे घर स्वर्ग बन जाते हैं। वहाँ दुःख और कष्ट नहीं होते। सभी व्यक्ति प्रसन्न और हर्षित रहते हैं। - स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती
Such Females | Atharvaveda | Welfare | Like Boat | Comforting | Abstract and Tangible | Husband's Service | Pleasurable | Entering the House | Grief and Suffering | Glad and Cheerful | Vedic Motivational Speech in Hindi by Vaidik Motivational Speaker Acharya Dr. Sanjay Dev for Goregaon - Sethiathoppu - Basukinath | News Portal - Divyayug News Paper, Current Articles & Magazine Gosainganj - Sevugampatti - Bhojudih | दिव्ययुग | दिव्य युग