ओ3म् त्वं च सोम नो वशो जीवातुं न मरामहे।
प्रियस्तोत्रो वनस्पति॥ (ऋग्वेद 1.91.6)
शब्दार्थ- (सोम) हे श्रेष्ठ कर्मों की प्रेरणा देने वाले परमेश्वर! (त्वं च) आप (नः) हम लोगों के (जीवातुम्) जीवन को (वशः) वश में रखने वाले, स्थिर रखने वाले और प्रकाशित करने वाले हो। आप (प्रिय स्तोत्रः) प्रिय स्तोत्र हैं, आपके स्तुति वचन सुनकर हृदय में प्रेम उत्पन्न होता है। (वनस्पतिः) आप सेवनीय पदार्थों के रक्षक हैं। अतः आपकी कृपा से (न मरामहे) हम अकाल मृत्यु और अनायास मृत्यु न पाएँ।
भावार्थ-
1. परमात्मा मनुष्यों के जीवन को वश में रखने वाला और प्रकाशित करने वाला है।
2. परमेश्वर प्रियस्तोत्र है, क्योंकि उसके स्तुति-वचन सुनकर हृदय में आनन्द उत्पन्न होता है।
3. परमेश्वर अपनी महान् शक्ति से मनुष्यों द्वारा सेवनीय पदार्थों की रक्षा करता है।
4. प्रभु की कृपा से हम अकाल मृत्यु के वश में न जाएँ। - स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती
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