बिहार के झेरादेवी ग्राम में 3 दिसम्बर 1884 को जन्में राजेन्द्रप्रसाद मैट्रिक की परीक्षा में अपने विद्यालय ही नहीं अपितु सम्पूर्ण कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रथम रहे। उच्च अध्ययन हेतु राजेन्द्र कलकत्ता आये। छात्र-वृत्ति की सहायता से उसने एम.ए. व कानून की परीक्षा में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त किया। अध्ययन में इस ग्रामीण युवक ने नगरीय विद्यार्थियों को भी पीछे छोड़ दिया।
राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़ाव- राजेन्द्र ने कलकत्ता में वकालात आरम्भ की। कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति सर आशुतोष मुखर्जी ने राजेन्द्र की प्रतिभा को अनुभव करते हुए इन्हें विधि महाविद्यालय का प्राध्यापक नियुक्त किया। 1911 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने। पटना विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु सरकार द्वारा बनाये जन विरोधी कानून का राजेन्द्र बाबू ने कड़ा विरोध किया जिसके फलस्वरूप यह कानून निरस्त करना पड़ा। 1916 में लखनऊ के कांग्रेस अधिवेशन में राजेन्द्रबाबू का महात्मा गाँधी से सम्पर्क हुआ। गाँधीजी की प्रेरणा से राजेन्द्र बाबू ने गाँव गाँव घूमकर लोगों में देशभक्ति जागृत करने हेतु 18 सूत्रीय कार्यक्रम चलाया। बेलगाँव कांग्रेस अधिवेशन में प्रथम खादी प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। राष्ट्रीय शिक्षा हेतु राष्ट्रीय शिक्षण समिति की स्थापना की। राजेन्द्र बाबू द्वारा स्थापित सदाकत आश्रम राष्ट्रवादी गतिविधियों का केन्द्र बन गया।
भारतमाता की जय के लिए - उन दिनों भारतमाता का जयघोष गम्भीर अपराध था। 1930 में पटना में आन्दोलन के दौरान भारतमात की जय बोलने पर पुलिस ने राजेन्द्र बाबू पर लाठियां बरसाई और गिरफ्तार कर 6 माह के लिये हजारीबाग कारागृह में भेज दिया। 1933 में पुनः इसी कारागृह में 15 माह तक रखा गया। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने के कारण इन्हें 3 वर्ष के कारावास का दण्ड दिया गया। राजेन्द्र 1934 में प्रथम बार बम्बई अधिवेशन में तथा सुभाषबाबू द्वारा कांग्रेस से त्यागपत्र देने के कारण दूसरी बार कांग्रेस अध्यक्ष बने।
संविधान सभा के अध्यक्ष तथा देश के प्रथम राष्ट्रपति- स्वतन्त्र भारत में नेहरुजी के अन्तरिम मन्त्री मण्डल में वे कृषि मन्त्री बनाये गये। आपकी अध्यक्षता में हमारे संविधान की रचना हुई जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। राजेन्द्र बाबू भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने। 12 वर्षों तक राष्ट्रपति रहकर देश की प्रतिष्ठा बढाई। राष्ट्रपति भवन में रहते हुए भी उन्होंने आश्रमवासी के समान सरल जीवन व्यतीत किया।
अग्नि परीक्षा में खरे उतरे- 11 मई 1951 का दिन भारतीय इतिहास का स्वर्णिम दिवस था। नेहरु के कड़े विरोध के उपरान्त इस दिन राष्ट्रपति डा. राजेन्द्रप्रसाद ने हमारी अस्मिता के प्रतीक सोमनाथ मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग प्राणप्रतिष्ठा में भाग लिया। यह अवसर राजेन्द्र बाबू के लिए अग्नि परीक्षा बन गया। इस अवसर पर डा. राजेन्द्रप्रसाद का उद्बोधन स्वाधीन भारत की प्रेरणा, जीवन दर्शन और भावी स्वप्न को प्रस्तुत करने वाला अद्भुत दस्तावेज है।
राष्ट्रीय अनुशासन- 25 जनवरी की रात्रि को राष्ट्रपति भवन में राजेन्द्र बाबू के साथ रह रही उनकी बहिन की मृत्यु हो गई। राजेन्द्र बाबू ने यह समाचार किसी को नहीं बताया और अगले दिन गणतन्त्र दिवस समारोह में सम्मिलित हुए। समारोह समाप्ति के पश्चात् उन्होंने बहन का अंत्येष्टि संस्कार किया। राष्ट्रीय अनुशासन का यह अनुपम उदाहरण था। भारतीयता के प्रतीक राजेन्द्र बाबू ने 28 फरवरी 1968 को महाप्रयाग किया। अजातशत्रु राजेन्द्रबाबू को शत-शत नमन।
वेद मंथन, लेखक - प्रा. भद्रसेन वेदाचार्य एवं संपादक - आचार्य डॉ. संजय देव (Ved Manthan, Writer- Professor Bhadrasen Vedacharya & Editor - Acharya Dr. Sanjay Dev) Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev | प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद | First President of India - Bharat Ratna Dr Rajendra Prasad