विशेष :

अच्छे साधन से अर्जित धन से यश में वृद्धि

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ओ3म् अग्निना रयिमश्‍नवत् पोषमेव दिवे दिवे।
यशसं वीरवत्तमम्॥ ऋग्वेद 1.1.3॥
(यशसम्) कीर्तिकर (वीरवत्तमम्) अतिशय वीरवत् (रयिम्) धन को (दिवे-दिवे) प्रतिदिन (पोषमेव) पुष्टि को ही (अग्निना) अग्नि से (अश्‍नवत्) सेवन करें।

यह मन्त्र सच्चे धन के लक्षण और उसके व्यापक प्रभाव की ओर संकेत करता है। इसमें बताया गया है कि प्रभु से प्राप्त अर्थात् सत् साधनों से अर्जित धन ही सच्चा धन है। वही श्रेष्ठ, श्रेयस्कर, सुन्दर और प्रशंसनीय भी है। अतः प्रभु-प्रदत्त ऐश्‍वर्य ही सेवनीय है। असत् साधनों द्वारा अर्जित धन का उपभोग सर्वदा वर्जित है। पर अफसोस कि आज का विपुल ऐश्‍वर्य और वैभव प्रायः असत् साधनों से कमाया हुआ है। सारे दिखावे, सजावट और शृंगार गलत साधनों के साक्षी हैं। इसीलिए मानव त्रस्त है, मानवता कराह रही है और हम सब श्‍वासों का भार ढो रहे हैं।

सच्चा धन साक्षात् पोषण होता है। जो धन हमें प्रतिदिन स्वास्थ्य-संवर्धन की ओर अग्रसर करे और परमात्मा (अग्नि) के समीप पहुँचने का मार्ग सुझाए, हमारी आत्मिक, मानसिक और शारीरिक शक्तियों को परिपुष्ट, सन्तुष्ट और जागरित करो, जो इन्हें पोषण दे सके वही सेवनीय है। जो धन-वैभव हमारी शक्तियों को क्षय की ओर ले जाए वह निश्‍चय ही विष है, त्याज्य है। निकृष्ट साधनों से अर्जित धन तो कमाने वाले को निगल जाने के लिए आतुर रहता है। इसके अनेक उदाहरण आपके दाएं-बाएं मिल सकते हैं। सच्चा धन तो साधारण प्रकार से परिवार के पालन-पोषण के पश्‍चात् शेष लोकोपकार में लगा दिया जाता है। जो धन कुविचार, कामुकता, रोग-भोग, स्वार्थान्धता, अत्याचार और अहंकार बढ़ाए तथा अधिक से अधिक धन कमाने के निमित्त गलत मार्ग सुझाए वह अभिशाप है, पाप है, और त्याज्य है। ऐसी प्रभुता से प्रभु हमें दूर रखे।

अच्छे साधनों से अर्जित धन ही हमारे यश में वृद्धि करता है। और यश वीरता से प्राप्त होता है। वीर कीर्तिमान स्थापित करते हैं, रणक्षेत्र में भी, कर्मक्षेत्र में भी। वीरता वह नहीं है जो कमजोरों को दबाए और असहायों को लूटे, जैसे आजकल बहादुर कहलाने वाले कर रहे हैं। सच्चा बल वह है जिससे निर्बलों, कमजोरों, प्रताड़ितों, दुखियों और दरिद्रों को उठाया जा सके, डूबतों का सहारा बना जा सके। जो धन हमें सच्ची वीरता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचा सके वही सच्चा धन है। धन की रक्षा के लिए बल की आवश्यकता होती है। जिस धन के साथ बल नहीं होता है, वह धन काल बन जाता है।

अग्नि-ऊर्जा को नाना प्रकार के यन्त्रों और शिल्पों में प्रयोग करके पोषण, यशस्वी और वीरतापूर्ण बनाया जाए।
सेवन करें मात्र हम वह धन, जो पोषक यशदायक हो।
वीर-कर्म की ओर बढ़ाए प्रभु प्रेरित सुखदायक जो॥

Increase in success with earned money from good resources | Signs of True Wealth | Sickness | Promising | Success Bravery | Sovereignty | Highest Peak | Health Promotion | Castaway | Power of Life | Divyayug | Divya Yug


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