विशेष :

आत्म-ज्योति का प्रकाश

User Rating: 0 / 5

Star InactiveStar InactiveStar InactiveStar InactiveStar Inactive
 

ओ3म् गूहता गुह्यं तमो वि यात विश्‍वमत्रिणम्।
ज्योतिष्कर्त्ता यदुश्मसि॥ ऋग्वेद 1.86.10॥

ऋषिः राहूगणो गोतमः॥ देवता मरुतः॥ छन्दः गायत्री॥

विनय- हे मरुत देवो ! हे प्राणो ! हम अँधेरी गुफा में पड़े हुए हैं। चारों ओर अँधेरा ही अँधेरा है। इस अँधेरे में खा जाने वाले राक्षस हमें सता रहे हैं, हमें खाये जा रहे हैं। उन्हें भगाओ। इन सब ‘अत्रियों’ को हमसे दूर कर दो। हमें जो कुछ चाहिए वह प्रकाश है। हमें प्रकाश दो। इस गुफा में चारों तरफ प्रकाश फैला दो।

मैं पंचकोशों की अँधेरी गुफा में रहा हूँ। शरीर, प्राण, मन आदि के पाँच शरीरों में बन्द पड़ा हुआ हूँ। अपने-आपको भूलके इन शरीरों को आत्मा समझ रहा हूँ। इसलिए काम, क्रोध, लोभ आदि राक्षस मुझे खाये जा रहे हैं। ये काम, क्रोध आदि अज्ञान में ही रह सकते हैं। आत्मान्धकार में ही ये फूलते-फलते हैं। इसलिए हे प्राणो ! तुम मेरे गुहा के अन्धकार को विलीन कर दो। अन्धकार के हटने पर ये ‘अत्रि’ अपने-आप ही यहाँ से भाग जाएंगे। जब हममें आत्म-ज्योति फैल जाएगी, सब भूतों, सब प्राणियों में फिर आत्मा दिखाई देने लगेगा तो हम किसके प्रति क्रोध करेंगे? जब हमारा प्रेम सर्वव्यापक हो जाएगा तो हम किस एक में कामासक्त होंगे? लोभ किसलिए करेंगे? ओह, आत्म-ज्योति का प्रकाश हो जाने पर ये क्षुद्र ‘अत्रि’ कहाँ ठहर सकते हैं! आत्म-ज्योति वह ज्योति है जिससे कि सहस्रों सूर्य, चन्द्र और विद्युत प्रकाशित हो रहे हैं। जिस परमोज्ज्वल ज्योति के सामने हजारों सूर्यों की इकट्ठी ज्योति भी फीकी है, वह प्रकाश हमें दो। हम उस प्रकाश के पाने के लिए तड़प रहे हैं। उस प्रकाश के पा जाने पर तो सब कुछ हो जाएगा। हृदय का अन्धकार मिट जाएगा और इन खो जाने वालों से हमारी रक्षा हो जाएगी। हे प्राणो! तुम प्रकाश के लाने वाले हो। हम जानते हैं कि तुम्हारे जागने पर प्रकाशावरण का क्षय हो जाता है। इस सत्य में हमें विश्‍वास है। इसलिए हे प्राणो! हम तुमसे विनय कर रहे हैं। तुम हममें समाकर हमारे प्रकाश का द्वार खोल दो।

शब्दार्थ- मरुतः=हे प्राणो ! गुह्यं तमः=गुहा के अँधेरे को गूहत=विलीन कर दो विश्‍वं अत्रिणम्=सब खा जाने वालों को वि यात=भगा दो। यत् उश्मसि=जिसे हम चाह रहे हैं उस ज्योतिः=ज्योति को कर्त्त=हमारे लिए कर दो।

योगदर्शन में प्राणायाम का फल बतलाते हुए कहा है- तत क्षीयते प्रकाशावरणम्। अर्थात् प्राणायाम सिद्ध होने पर प्रकाश का आवरण हट जाता है, अनन्त प्रकाश खुल जाता है। - आचार्य अभयदेव विद्यालंकार

Light of Self Light | Dark Cave | Light all Around | Work | Anger | Greed | Ubiquitous | Workman | Heart Dark | Pranayama in Yogradaran | Light Coat | Eternal Light | Vedic Motivational Speech in Hindi by Vaidik Motivational Speaker Acharya Dr. Sanjay Dev for Harduaganj - Sidhi - Jadugora | News Portal - Divyayug News Paper, Current Articles & Magazine Harharia Chak - Sidhpura - Jamshedpur | दिव्ययुग | दिव्य युग