विशेष :

शत्रु-विजय

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Shatru Vijay

ओ3म् इतो जयेतो वि जय सं जय जय स्वाहा।
इमे जयन्तु परामी जयन्तां स्वाहैभ्यो दुराहामीभ्य:। नीललोहितेनामूनभ्यवतनोमि॥ अथर्ववेद 8.8.24॥

शब्दार्थ- हे वीरो ! रणबाँकुरो ! शत्रुनाशको! (इत: जय) इधर जय प्राप्त करो (इत: वि जय) इधर विजय का सम्पादन करो। (सं जय) अच्छी प्रकार जय प्राप्त करो। (जय) विजय प्राप्त कर (स्वाहा) लोकों में तुम्हारी कीर्ति हो, तुम्हारे नाम का यशोगान हो। (इमे) हमारे ये वीरगण (जयन्तु) विजय प्राप्त करें। (अमी पराजयन्ताम्) शत्रु लोग परास्त हो जाए। (एभ्य:) इन धर्मशील वीरों को (सु आह) उत्तम कीर्ति प्राप्त हो (अमीभ्य:) उन शत्रुओं की (दुर् आहा) अपकीर्ति हो। (अमून्) उन शत्रुओं को (नील-लोहितेन) अपने बल और तेज से (अभि) उनके सम्मुख जाकर और उनका साम्मुख्य करके (अव तनोमि) अपने नीचे दबाता हूँ।

भावार्थ- कितना उत्साहवर्धक और स्फूर्तिदायक मन्त्र है! सीधे-साधे और सरल शब्दों में वेद ने शत्रुओं को नष्ट करने का कैसा सुन्दर सन्देश दिया है!

1. प्रत्येक युवक और युवती को आगे-ही-आगे बढते हुए इधर और उधर से जय और विजय प्राप्त करनी चाहिए।
2. जो वीर, जो सैनिक, जो विद्यार्थी विजयी होते हैं उनकी विजय के डंके बजते हैं, संसार में उनकी कीर्ति होती है।
3. सदा सावधान होकर ऐसा युद्ध करना चाहिये कि शत्रु पराजित हो जाए।
4. इस बात का दृढ निश्‍चय रखना चाहिए कि धार्मिकों की ही जीत होती है, शत्रु पराजित होते हैं।
5. अपने तेज और बल से शत्रुओं को नीचे बिछा देना चाहिए। - स्वामी जगदीश्‍वरानन्द सरस्वती (दिव्ययुग- जुलाई 2015)

Enemy Victory | Veda Sourabh | Edit of Victory | Your Fame | Yashogan | Perfect Fame | Virtuous Heroes | Encouraging and Exciting | Beautiful Message | Fast and Force | Vedic Motivational Speech in Hindi by Vaidik Motivational Speaker Acharya Dr. Sanjay Dev for Meghahatuburu Forest Village - Kalka - Bhabat | दिव्ययुग | दिव्य युग |