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वेदों का महत्त्व (4)

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Vedo ka Mahatvमहर्षि दयानन्द सरस्वती ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका में लिखते हैं “अर्थज्ञान सहित पढ़ने से ही परमोत्तम फल की प्राप्ति होती है, परन्तु न पढ़ने वाले से तो पाठमात्रकर्त्ता भी उत्तम होता है। जो शब्दार्थ के विज्ञानसहित अध्ययन करता है वह उत्तमतर है। जो वेदों का अध्ययन कर उनके अर्थों का आचरण करते हुए सर्वोपकारी होता है वह उत्तमोत्तम है।’’

पुराण भी वेद की महिमा से भरे हुए हैं। श्रीमद्भागवत का कथन है-
वेदप्रणिहितो धर्मो ह्यधर्मस्तद्विपर्यय:।
वेदो नारायण: साक्षात्स्वयंभूरिति शुश्रुम॥ भागवत पुराण 6.1.40

जो वेद में कहा है वही धर्म है और जो वेद के विरुद्ध है वही अधर्म है। वेद साक्षात् नारायणस्वरूप हैं, क्योंकि वे स्वयं भगवान से प्रकट हुए हैं, ऐसा हमने सुना है।
अब कूर्मपुराण का एक वचन देखिए-
एकतस्तु पुराणानि सेतिहासानि कृत्स्नश:।
एकत्र परमं वेदमेतदेवातिरिच्यते॥ कूर्म.उ.46.121

एक ओर इतिहास सहित सम्पूर्ण पुराण और एक ओर परम वेद। इनमें वेद ही परम हैं, महान् हैं, श्रेष्ठ हैं।
देवीभागवत पुराण में वेद का महत्त्व इन शब्दों में प्रकट किया गया है-
सर्वथा वेद एवासौ धर्ममार्गप्रमाणक:।
तेनाविरुद्धं यत्किञ्चित्तत्प्रमाणं न चान्यथा॥
यो वेदधर्ममुज्झित्य वर्ततेऽन्यप्रमाणत:।
कुण्डानि तस्य शिक्षार्थं यमलोके वसन्ति हि॥ देवीभागवत 11.1.26,27

धर्म के विषय में वेद ही प्रमाण है। जो कुछ वेदानुकूल है वही प्रामाणिक है, अन्य नहीं। जो वेद को छोड़कर दूसरे ग्रन्थों को प्रामाणिक मानता है, उसके लिए यमलोक में कुण्ड तैयार है। अर्थात् वह यमलोक में जलकुण्डों में गिरता है।

वेद की महिमा महान् है। मानव बुद्धि और उसका सीमित ज्ञान वेद की महिमा का बखान करने में असमर्थ हैं। गरुड़पुराण की सम्मति देकर इस प्रसंग को समाप्त किया जाता है-
सत्यं सत्यं पुन: सत्यमुद्धृत्य भुजमुच्यते।
वेदाच्छास्त्रं परं नास्ति न देव: केशवात् पर:॥ गरुड़ ब्र. का. 102.55

मैं दुहाई देकर और भुजा उठाकर सत्य-सत्य कहता हूँ कि वेद से बढकर कोई शास्त्र नहीं है और केशव-परमात्मा से बढकर कोई देव नहीं है।

वेद संस्कृत-साहित्य के मुकुटमणि हैं, वैदिक संस्कृति और सभ्यता का मूलाधार हैं। इसीलिए वैदिक विचारकों ने, दर्शन और स्मृतिकारों ने, इतिहास और पुराणकारों ने वेद की महिमा के गीत गाये हैं, ऐसा नहीं समझना चाहिए। वेद के वेदत्व और उसकी सर्वांगपूर्णता पर न केवल भारतीय विद्वान् अपितु पाश्‍चात्य जगत् भी मोहित एवं मुग्ध है। जिन्होंने विमल वैदिक ज्ञान के अन्वेषण में अपना समय, श्रम और शक्ति व्यय की है, उन सभी व्यक्तियों ने वेद के अलौकिक ज्ञान की प्रशंसा की है। यहाँ कुछ सम्पतियाँ दी जाती हैं- प्रो. हीरेन महोदय लिखते हैं-
The Vedas stand alone in their solitary splendour serving as beacon of Divine Light for the onword march of humanity. (Historical Risearches Vol.II P. 127)

जिस प्रकार वेद देदीप्यमान हैं, इस प्रकार अन्य कोई ग्रन्थ नहीं चमकता । वे मनुष्यमात्र की उन्नति और प्रगति के लिए दिव्य प्रकाशस्तम्भ का काम देते हैं।
लार्ड मोर्ले ने घोषणा की-
What is found in the Vedas exists now-where else. (The Nineteenth Century and after)
जो कुछ वेदों में मिला है, वह अन्यत्र कहीं नहीं है।• (जारी) - स्वामी जगदीश्‍वरानन्द सरस्वती

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