शास्त्रों में कहा गया है- सा विद्या या विमुक्तये। विद्या वही है जो मनुष्य को मुक्त करे। मुक्त करे दुर्गुणों से, मुक्त करे दुर्व्यसनों से, मुक्त करे दुर्विचारों से और मुक्त करे कदाचरण से। तात्पर्य यह है कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो मनुष्य के आन्तरिक-बाह्य कल्मषों का पूर्ण प्रक्षालन कर एक ऐसे आदर्श मानव का निर्माण करे जिसके आचार-विचार-व्यवहार पूर्णतया शुद्ध-पवित्र हों।
यदि एक वाक्य में कहना हो तो हम कह सकते हैं कि जिसका आचरण ठीक है, वही वास्तव में एक आदर्श व्यक्ति है और वही सच्चे मानव धर्म का अनुपालन कर रहा है। इसीलिए तो शास्त्रों में आचार को ही परम धर्म माना है- आचारः परमो धर्मः देश के ऋषि-मुनियों द्वारा गुरुकुलों में जो शिक्षा दी जाती थी, उसका उद्देश्य ही विद्यार्थियों का चरित्र निर्माण था। क्योंकि व्यक्तित्व आदर्श बनता है तो केवल उत्कृष्ट चरित्र से। इसीलिए भारतीय संस्कृति में आचरण को विशेष महत्त्व दिया गया है। व्यक्ति कितना ही विद्वान हो, कितना भी समृद्ध हो, कितने ही उच्च पद पर आसीन हो, किन्तु यदि उसका आचरण-चरित्र ठीक नहीं है, तो वह व्यक्ति दो कौड़ी का है।
शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्ति का चरित्र निर्माण कर सर्वांगीण विकास करना है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक पण्डित मदनमोहन मालवीय ने जब बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (इ.क.ण.) की स्थापना की, तो उन्होंने एक सपना संजोया था कि विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का विकास भारतीय संस्कृति के अनुरूप हो। वे मानव जीवन के उद्देश्य, उसकी महत्ता एवं अर्थ को समझें, इसके बाद ही वे कॅरियर का मार्ग चुनें।
आज की शिक्षा इस उद्देश्य से पूरी तरह भटक गई है। एक अच्छे इन्सान का निर्माण शिक्षा की प्राथमिकता होना चाहिए, पर अब वह नहीं रहा। अब तो केवल कॅरियर निर्माण की अन्धी दौड़ है, जिसमें मानवीय मूल्य कहीं गुम हो गये हैं।
आज की शिक्षा एक अच्छा डॉक्टर, अच्छा इंजीनियर, अच्छा तकनीशियन, अच्छा एण्टरप्रेन्योर तो बना रही है, पर वह एक अच्छा मनुष्य नहीं बना पा रही है। जबकि आज दुनिया को अच्छे इन्सान की सर्वाधिक आवश्यकता है। एक अच्छा इन्सान ही सुख-शान्ति-सद्भावना वाले समाज, राष्ट्र एवं विश्व के उदय में सहायक हो सकेगा और इसके लिए हमें भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्मिक विचारों को युवाओं तक पहुँचाना होगा। आध्यात्मिक शिक्षा के बिना कोई भी शिक्षा पूरी नहीं कही जा सकती।
आज उच्च शिक्षित युवाओं को विविध तकनीकी विद्याओं का श्रेष्ठतम ज्ञान है, पर वे जीवन में शान्ति एवं सुकून से वंचित हैं। उनमें भारी हताशा, निराशा, अवसाद-विषाद एवं अशान्ति है। जीवन में सभी प्रकार के सुख-साधन, भोग सामग्रियों के रहते वे आत्महत्या जैसे आत्मघाती कदम उठा रहे हैं। हमें गम्भीरता से सोचना होगा कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या कारण है इसके पीछे? मुझे तो लगता है कि हमारी शिक्षा, हमारा ज्ञान केवल नौकरी, कॅरियर तक सीमित रह गया है। जीवन का ज्ञान मिलेगा अध्यात्म से।
अतः बहुत जरूरी है कि शिक्षण-संस्थानों में प्रदान की जा रही शिक्षा में आध्यात्मिक शिक्षा को शामिल किया जाये। ऐसा होगा तभी हमारे युवाओं के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास सम्भव होगा और तब इस आर्यावर्त का पुरातन गौरव पुनः लौटेगा और यह विश्व गुरु बनेगा। - डॉ. राजाराम गुप्ता (दिव्ययुग- अप्रैल 2019)
Spiritual Education is Essential for Youth | Creation of Ideal Human | Comply with Religion | Character Building Students | Super Character | Special Importance to Conduct | Basic Objective of Education | Personality Development | Education Priority | Knowledge of Life | All Round Development of Personality | Vedic Motivational Speech & Vedas Explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) for Manalmedu - Vadakkuvalliyur - Bageshwar | दिव्ययुग | दिव्य युग