फाँसी से पूर्व भगतसिंह जेल में बन्द थे। जेल में जो सफाई कर्मचारी काम करती थी, भगतसिंह उसे माँ कहते थे। उनका कहना था कि बचपन में मेरी माँ ने मेरी गन्दगी उठायी थी और जवानी में इस माँ ने उठायी है।
जब फाँसी से पूर्व भगतसिंह से उनकी इच्छा पूछी गई, तो उन्होंने माँ के हाथ की रोटियाँ खाने की इच्छा जाहिर की। जेलर ने इसे उनका मातृप्रेम समझा। किन्तु जब जेलर को पता चला कि भगतसिंह सफाई कर्मचारी के हाथ से भोजन करना चाहते हैं तो वह स्तब्ध रह गया।
जेलर ने जब उस महिला को भगतसिंह की इच्छा बताई, तो वह भाव विभोर होकर रो पड़ी और बोली, “बेटा, मेरे हाथ ऐसे नहीं है कि उनसे बनी रोटी आप खाएँ।’’ भगतसिंह ने प्यार से उनके दोनों कन्धे थपथपाते हुए कहा, “माँ जिन हाथों से बच्चों का मल साफ करती है, उन्हीं हाथों से तो खाना बनाती है। माँ, तुम चिन्ता मत करो और रोटी बनाओ।’ भगतसिंह ने बड़े चाव से उसके हाथ से बनी रोटियाँ खाई।
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