प्रायः लोगों को यह कहते सुना जाता है-
* जीवन नीरस और उबाऊ हो गया है।
* जीवन में कुछ मजा नहीं बचा है।
* जीवन स्थिर और यांत्रिक हो गया है।
* लोग स्वार्थी और धन लोलुप हो गए हैं।
* मैं जो कहता हूँ, लोग उसे समझते नहीं।
* जीवन तनावपूर्ण हो गया है। काम में तनाव बढ़ गया है।
इसी तरह की बहुत सी टिप्पणियाँ लोग करते हैं। यह आम धारणा है और अक्सर हम सभी ऐसी बातें कहते हैं। जब हम लोगों की बात करते हैं तो हमेशा खुद को छोड़ देते हैं। हम भूल जाते हैं कि लोगों में हम भी तो हैं। सामूहिक रूप से हम ही ’लोग’ हैं। हमें लोगों से काफी शिकायते हैं, इसी तरह दूसरों को हमसे शिकायतें हैं।
जब हम लोगों की बात करते हैं, तो खुद को कैसे छोड़ सकते हैं? और हम जीवन की बात करते हैं तो जन्म, विकास, वृद्धि या जीवन के अन्य पहलू वहीं रहते हैं। जीवन तो एक धारा है और हम सब इस धारा का एक भाग हैं। प्रकृति ने जन्म, विकास, वृद्धि के लिए हमें सब कुछ दिया है। उसने हमें काम करने, निर्णय करने व अन्य गतिविधियों के लिए मस्तिष्क दिया है। हम अपने मस्तिष्क से सोचते हैं और अपने हाथों से काम करते हैं तथा अपने पैरों पर चलते हैं।
हम भूल यह जाते हैं कि हर व्यक्ति अपने अच्छे व बुरे गुणों के साथ जन्मा है। हर व्यक्ति की कुछ कमियाँ हैं। सभी व्यक्ति सम्पूर्ण नहीं हैं। हर व्यक्ति के गुणों में सकारात्मक व नकारात्मक पहलू होते हैं। सकारात्मक पहलुओं पर ध्यान देना बेहतर है।
असफलता को परिणाम के आधार पर देखा जाना चाहिए और इसका सामना एक सबक के रूप में करना चाहिए। जब आपको असफलता मिलती है तो उसके कारणों का विश्लेषण कीजिए। इससे आपको सुधार के बिन्दु मिलेंगे। यदि किसी व्यक्ति को अपनी क्षमता पर सन्देह है, तो उसके सामने निश्चय ही अवरोध आएगा और वह असफल होगा।
एक अँग्रेज दार्शनिक के शब्दों में ’‘कोई कार्य करने की कोशिश तब तक मत करो, जब तक कि आपका खुद पर विश्वास न हो। लेकिन इसे इसलिए भी मत छोड़ो कि किसी दूसरे का आप पर विश्वास नहीं है।’’ सकारात्मक सोचो। अपनी क्षमताओं के बारे में सोचो। अपनी क्षमताओं को उजागर करो। असफलता पर खुद को बधाई दो, क्योंकि इससे आपको असफलता के कारणों का विश्लेषण करने का अवसर मिलता है। और यह असफलता ही आपको सफलता के मार्ग पर ले जाती है। क्या आप अपनी हर असफलता पर खुद को बधाई देने को तैयार हैं? यदि ऐसा है तो सफलता आपकी मुट्ठी में है।
उपलब्ध संसाधनों का समुचित उपयोग
सफलताएँ और उपलब्धियाँ किसी को भी अनायास नहीं मिलतीं। उन्हें प्राप्त करने के लिए एक सुनिश्चित योजना तैयार करनी पड़ती है तथा उन्हीं उपलब्ध संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग का निर्धारण करना होता है, जो हमारे पास होते हैं। सफलता एक संयोजना है। समस्त उपलब्ध मानवीय, प्राकृतिक तथा भौगोलिक संसाधनों की संयोजना के अन्तिम परिणाम के रूप में सफलता हमारे सामने आती है। मात्र भाग्य के सहारे शीर्ष पर पहुँचे लोग व्यावहारिक रूप से किसी के आदर्श नहीं बन सकते, न उनसे प्रेरणा लेकर कोई व्यक्ति अपने पुरुषार्थ को सार्थक कर सकता है। सफलता का सम्बन्ध संघर्षों से है तथा संघर्षों के उपरान्त अर्जित तथा संयोजित उन उपलब्धियों से है, जो किसी व्यक्ति को सफल बनाती हैं।
मात्र भाग्य से अर्जित उपलब्धियाँ किसी भी परिभाषा में सफलता के अन्तर्गत नहीं आती हैं। कर्मयोगी के लिए कुछ भी कर गुजरना असम्भव नहीं है तथा वह प्रत्येक उपलब्धि जो संसाधनों के ढेर पर बैठे मनुष्यों के लिए सुरक्षित समझी जाती है, कर्मसाधकों के लिए उसे हस्तगत करना असम्भव नहीं है। संघर्ष बहुत कुछ देते हैं, यदि वे सार्थक पथ की तलाश से जुड़े हैं। साधनों की अधिकता का अर्थ सफलता नहीं है, बल्कि कभी-कभी साधनों की अधिकता व्यक्ति विशेष की एकाग्रता तथा लक्ष्यबद्ध सफलता के परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली साबित होती है। यदि अपने पास मौजूद संसाधनों की समग्र शक्ति पर विश्वास करके उन्हें अपने लक्ष्यप्राप्ति का माध्यम बनाएँ, तो सफलता आपके निकट खड़ी होगी। - वाई.एम. अग्रवाल
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