पश्चिमी पंजाब के जिला डेरागाजीखां में कोटकरानी नाम की एक बस्ती है । खेमीबाई का जन्म उसी गांव में हुआ । उसी धरती पर वह खेली और उसी का अन्न-जल खाते हुए यौवन की ओर बढने लगी। यौवन सम्पन्न होने पर उसका विवाह पिता ने साथ के गाँव डोने में एक अच्छे सच्चरित्र युवक रामचरण के साथ कर दिया। पति-पत्नी दोनों प्रसन्नतापूर्वक रहने लगे ।
एक दिन रामचरण किसी काम से बाहर गया। खेमीबाई घर में अकेली थी । उस दिन सायं उसकी गाय घर न लौटी । चरवाहा गाय चराने के लिये ले जाता था और शाम को वापस गांव में छोड़ जाता था। खेमीबाई को चिन्ता हुई कि कहीं गाय खो न गई हो । इसलिये वह गाय का पता लगाने चरवाहे के घर की ओर चल दी । भगवान् भास्कर का रथ आराम करने के लिये तेजी से भागा जा रहा था । चरवाहे का घर गांव से एक मील की दूरी पर था । उसके रास्ते में एक बहुत भयानक खाई थी। इसमें वर्षा का पानी आकर एकत्र हो जाता । अंधेरे में तो वह और भी भंयकर हो जाती ।
अब खेमीबाई उस खाई के निकट पहुँच चुकी थी। उसे एक मुसलमान गुण्डे करीम ने देख लिया । करीम पर कामदेव का भूत सवार हो गया । उसने सोचा, अभी तो इसे जाने देना चाहिये । वापसी पर अपना मनोरथ पूरा करूंगा, क्योंकि तब अच्छा खासा अन्धेरा हो जाएगा। यों भी वह उस समय उसे घेर न सकता था। क्योंकि जितनी देर में वह उसके पास पहुँचता, उतनी देर में वह खाई पार कर लेती ।
खेमीबाई चरवाहे के घर पहुँची । पूछने पर मालूम हुआ कि चरवाहा गाय को कोटकरानी में ही छोड़ आया है। वह वापस जाने को तैयार हो गई ।
दिन का प्रकाश समाप्त हो रहा था। पर खेमीबाई को तो घर पहुँचना ही था । जब वह लौट रही थी, तो पश्चिम की ओर का अन्तिम लाल मेघ भी समाप्त हो चुका था । रात के अंधेरे ने धरती को अपनी चादर में लपेट लिया । इधर वह गुण्डा बदमाश उसके आने की ताक में बैठा था कि वह कब खाई में प्रवेश करे और कब वह अपनी नीच वासना पूरी करे । अन्त में बेईमान को पैरों की आहट सुनाई दी। वह चौकस हो गया । जब खेमीबाई खाई के ठीक बीच में पहुँची, तो उसके कानों में धीमी सी आवाज सुनाई दी - ठहर जाओ !
खेमी बाई ने पीछे मुड़कर देखा । क्षणभर में सब कुछ समझ गई ।
बेईमान ! वह गरजकर बोली- अपना हित चाहते हो तो वापस चले जाओ ।
परन्तु वासना के अन्धे उस बदमाश पर कोई प्रभाव न हुआ । वह पागल के समान आगे बढने लगा। खेमीबाई चुपचाप खड़ी रही । करीम निकट पहुँचा और उसको वह अपने बाहुपाश में जकड़ना ही चाहता था कि खेमीबाई के जोरदार मुक्के ने उसकी नाक तोड़ दी । करीम को इतने जोर का धक्का लगा कि वह पीछे जा गिरा । एक छोटी-सी चीख भी उसके मुँह से निकल गयी। उसके हाथ अपनी नाक को मलने लगे ।
खेमीबाई आगे बढी । करीम डर गया कि अब पता नहीं यह क्या करे । इस कारण उसने भागने का यत्न किया । इस बीच में खेमीबाई का हाथ करीम के कान पर जा पड़ा । बदमाश ने कानों में बालियाँ पहन रखी थीं । खेमी ने एक बाली को पकड़ लिया। किन्तु वह इस जोर से भागा कि बाली उसके कान को फाड़ती हुई खेमी के हाथ में रह गई । खेमीबाई अपने गांव में पहुँच गई । घर जाने से पूर्व उसने अपनी गाय की खोज की और उसे ढूँढकर घर ले आई । पति के घर आने पर उसने पुलिस में रिपोर्ट की । कान की बाली की पहचान से दुष्ट पकड़ा गया। उसे सजा हुई ।
विपत्ति में न घबरा कर साहस से सतीत्व की रक्षा करने वाली खेमीबाई धन्य है !
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