विशेष :

हिन्दी को समाप्त करने का षड्यन्त्र (5)

User Rating: 0 / 5

Star InactiveStar InactiveStar InactiveStar InactiveStar Inactive
 

hindiआज सबसे बड़ी त्रासदी तथा विसंगति यही है कि हमारी पत्रकारिता नई गुलामी का रास्ता सिर्फ अपनी व्यावसायिक बुद्धि की व्यावसायिक अधीरता के कारण बना रही है। इस पत्रकारिता में जो ‘माल’ उत्पादित और वितरित हो रहा है, कहीं-कहीं तो छापकर प्रेस से सीधे गोदामों में भरा जा रहा है। क्योंकि अब सर्कुलेशन नहीं केवल प्रिण्ट आर्डर को देखना है। क्योंकि वह विज्ञापनों की दर तय करता है। उसमें न तो अतीत के आकलन का गहरा विवेक रहा है और न ही भविष्य में झांक सकने वाली दृष्टि। एक किस्म का धन्धई उन्माद है, जिसे पूंजी का प्रवाह पैदा कर रहा है। इसलिए वह केवल अपने व्यावसायिक साम्राज्य के लिए अराजक होने की दर तक भाषा, संस्कृति और समाज को विखण्डित करने से भी संकोच नहीं करेगी। यों भी उसके लिए अब समाज को मात्र एक उपभोक्ता वर्ग की तरह देखने की लत पड़ गई है। अब उसके लिए देश की जनता राष्ट्र की नागरिक नहीं, बल्कि उसके प्रॉडक्ट (?) की ग्राहक है। इसके साथ विडम्बना यह भी है कि सम्पूर्ण हिन्दी भाषाभाषी समाज भी, भाषा के साथ किए जा रहे ऐसे विराट छल को गूंगा बनकर देख रहा है।

यहाँ एक पुनर्स्मरण कराना जरूरी है कि हिन्दी का समकालीन भाषा रूप आज विकास की जिस सीढ़ी तक पहुँचा है, उसे गढ़ने और विकसित करने में निःसंन्देह हमारी हिन्दी पत्रकारिता की भूमिका बहुत बड़ी रही है। लेकिन दुर्भाग्यवश वही पत्रकारिता जिसे भाषा अभी तक का अपना सबसे अधिक विश्‍वसनीय माध्यम मानते आ रही थी, सबसे बड़ा धोखा उसी से खा रही है। उसके लिए सर्वाधिक सन्दिग्ध वही बन गयी है। आज दैनिक पत्रकारिता उस मादा श्‍वान की तरह है, जो अपने ही जन्मे बच्चे को भी खा जाती है ।

यह भ्रम हमें दूर कर लेना चाहिए कि अब भाषा बोले जाने वाले लोगों की संख्या से बड़ी नहीं होती। बोला जाना ‘कमचलाऊ संप्रेषण’ का संवादात्मक रूप है, चिन्तनात्मक नहीं। वह हमेशा ही आज अभी ताबड़तोड़ बनाम अनियन्त्रित अधीरता से भरा होता है। नतीजतन उसे इस बात की कोई जरूरत और फुरसत नहीं होती है कि वह अंग्रेजी के किसी नये शब्द का पर्याय ढूंढे या उसके लिए नया शब्द गढ़े। जैसे कि पिछली पीढ़ी ने ‘मेम्बर ऑफ पार्लियामेण्ट’ के लिए पहले ‘संसद सदस्य’ शब्द गढ़ा, फिर अन्त में ‘सांसद’ शब्द बनाया। लेकिन इलेक्ट्रानिक मीडिया अंग्रेजी को जस का तस उठाकर अपनी फोरी जरूरत पूरी कर लेता है। इसी आदत ने हिन्दी में शेयर्ड वॉकुबेलेरी को बढ़ाया और अखबारों ने लगे हाथ उसे एक अभियान की तरह उठा लिया। इसीलिए भाषा के इस खिचड़ी रूप का जयघोष करते हुए, जो लोग भाषा की सुन्दर सेहत का प्रचार कर रहे हैं, या तो वे इस खतरनाक मुहिम का हिस्सा हैं, या फिर उनकी समझ का कांकड़ ही छोटा है।

इसके साथ ही ऐसे महामूर्खों या फिर चालाकों की कमी नहीं है, जो हर समय इस बात की डूण्डी पीटते रहते हैं कि लो अब तो तुम्हारी हिंग्लिश ब्रिटेन में भी लोकप्रिय हो गई है। यह बात ऐसे महातथ्य की तरह प्रचारित की जा रही है, जैसे हमारी हिन्दी ने अंग्रेजी का सदियों की कुलीनता की कलाई झटक कर उसे सिंहासन से उतारकर सड़क पर ला दिया है। गौरांग प्रभु ने कुलीनता के कवच को खदेड़कर तुम्हारी हिंग्लिश का झगला धारण कर लिया है। यह हिन्दी की उपलब्धि नहीं, सिर्फ भारतीयों की गुलाम मानसिकता की सूचना है। यह दासी का क्वीन के करीब पहुँच जाने का मूर्ख और मिथ्या रोमांच है, जो हिंग्लिशियाते अखबारों की प्रथम पृष्ठों की खबर बनाता है।

कुछ ही समय पूर्व ऐसी ही पगला डालने वाली एक खबर और रही कि हिन्दी के कुछेक शब्दों को ऑक्सफर्ड डिक्शनरी ने ले लिया। ऑक्सफर्ड डिक्शनरी हिन्दी गर्भित हो गई है। ये वे शब्द थे जिनके लिए अंग्रेजी में उपयुक्त या पर्याय असम्भव था। क्योंकि वे अपना विकल्प खुद थे। उनको अंग्रेजी में उलथाया जाता तो वे अपना अर्थ ही खो देते। बस.....क्या था? अखबार बताने लगे कि ये लो हिन्दी छाने लगी अंग्रेजी पर। एक अनपढ़ महान ने तो यह तक कह दिया कि आज हमने डिक्शनरी पर विजय पाई है, एक दिन ब्रिटेन पर पा लेंगे। बहरहाल यह वैसी ही विदूषकीय प्रसन्नता थी, जो मालवी की एक कहावत को चरितार्थ करती है कि एक नदीदे को किसी ने दे दी कटोरी। तो उसने उससे पानी पी-पीकर ही अपना पेट फोड़ लिया। जबकि यह ऑक्सफर्ड डिक्शनरी की ज्ञानात्मक उदारता नहीं, बल्कि नव उपनिवेशवादी बिरादरी का पूरा सुनिश्‍चित अर्थशास्त्र और मनोविज्ञान है, जो भारतीयों को तैयार करता है कि जब अंग्रेजी जैसी महान भाषा उदार होकर हिन्दी के शब्दों को अपना रही है तो हिन्दी को भी चाहिए कि वह अंग्रेजी के शब्दों को इसी उदारता से अपनाये। अंग्रेजी के शब्दकोष में हिन्दी के शब्दों का दाखिला बमुश्किल एक प्रतिशत होगा। अर्थात् दाल में नमक के बराबर भी नहीं। लेकिन हमारे अखबार तो नमक में दाल मिला रहे हैं।

जब भी अंग्रेजी द्वारा हिन्दी को हिंग्लिश बनाये जाने की चिन्ता प्रकट की जाती है, तो कुछ लोग अपनी अज्ञानता में और चालक लोग अपनी धूर्तता में एक कविताई सच के जरिए हमें समझाने के लिए आगे आ जाते हैं कि कुछ है हस्ती मिटती नहीं हमारी। जबकि हकीकत ये है कि हस्ती कभी भी पस्ती में बदल चुकी है। हमारी भाषा हमारी संस्कृति कभी के घुटने टेक चुकी है।

हमारा पूरा व्यक्तित्व पिछले दशकों में पश्‍चिमी हो चुका है, जो अब अमेरिकाना होने की तरफ बढ़ रहा है। किसी ने कहा था कि आज लोग अमेरिका जाकर अमेरिकाना बन रहे हैं, लेकिन शीघ्र ही वह समय आयेगा अमेरिका द्वारा आपके घर में घुसकर आपको अमेरिकन बना दिया जायेगा। यह मिथ्या कथन सी लगने वाली बात धीरे-धीरे सत्य का रूप धारण कर रही है। इसलिए अब मॉर्डनिज्म एक पुराना और बासी शब्द है, जिसे छिलके की तरह उतारकर उसकी जगह नया अमेरिकाना शब्द ले चुका है। यहाँ तक कि विज्ञापनों में अब अमेरिकी मॉडल का उपयोग इस तरह किया जाता है, हे भारतवंशियों! ये तुम्हारे नये देवपुरुष हैं और तुम्हें इन्हीं के सम्मुख दण्डवत होना है ।

दरअसल, अस्मिता की इन दिनों एक नई और माध्यम निर्मित अवधारणा को प्रस्तुत करते हुए उसका प्रचार और वकालत की जा रही है। यूं भी अब वही सबको परिभाषित करता है तथा तमाम जीवन और समाज के तमाम मूल्यों का प्रतिमानीकरण करने का औजार बन चुका है। दूसरी तरफ हम अपनी सनातन रूढ़ सांस्कृतिक आत्मछवि से इतने मोहासक्त हैं कि प्रत्यक्ष और प्रकट पराजय को स्वीकारना नहीं चाहते हैं। बर्बर उपनिवेश के विरुद्ध लड़ने की निरन्तरता को जीवित बनाये रखने के लिए ऐसी अपराजय का अस्वीकार पराधीनता के दौर में राष्ट्रवाद की नब्जों में प्राण फूंकने के काम आता था। कुछ बात है कि हस्ती मिटती ही नहीं, तब यह दम्भोक्ति अचूक और अमोघ बनकर काम करती थी। जन-जन को जोड़ने और जगाने का जुमला था ये कि लगे रहो भैया! निश्‍चय ही उस दम्भोक्ति ने ब्रिटिश उपनिवेश के विरूद्ध संघर्ष में समूचे राष्ट्र को लगाये रखा और हमने अंग्रेजों को निकालकर बाहर कर दिया। लेकिन यह अपने दंश का जहर खून में इस कदर शामिल कर चुका था कि हम आज हिन्दी को हिन्दी से हिंग्लिश बनाते देख रहे हैं और कहते हैं कि कुछ नहीं होगा, वह हर हाल में बची रहेगी। हस्ती है कि मिटती नहीं। (जारी) - प्रभु जोशी

Conspiracy to End Hindi-4 | Journalism | New Slavery Path | Language, Culture and Society | Need and Leisure | Dangerous Operation | Form of Truth | Vedic Motivational Speech & Vedas Explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) for Kherdi - Abiramam - Sonipat | Newspaper, Vedic Articles & Hindi Magazine Divya Yug in Kherli - Abu Road - Yamuna Nagar | दिव्ययुग | दिव्य युग


स्वागत योग्य है नागरिकता संशोधन अधिनियम
Support for CAA & NRC

राष्ट्र कभी धर्म निरपेक्ष नहीं हो सकता - 2

मजहब ही सिखाता है आपस में बैर करना

बलात्कारी को जिन्दा जला दो - धर्मशास्त्रों का विधान