सर्दी के मौसम में खाए जाने वाले पौष्टिक पदार्थों में तिल का बड़ा महत्व है। आयुर्वेदिक चिकित्सा शास्त्र में तिल को मधुर, स्निग्ध, कफ-पित्त-वातनाशक, उष्ण, तृप्तिदायक, दुग्धवर्द्धक, बलवर्द्धक, बहुमूत्र रोग में रुकावट करने वाला तथा बालों के लिए लाभदायक माना गया है।
तिल पौष्टिक और विटामिनों से भरपूर होता है। यही कारण है कि सर्दी के मौसम में विभिन्न रूपों में तिल का उपयोग किया जाता है। इन दिनों में तिल का तेल और तिल से बने विविध व्यंजनों का सेवन करना बड़ा गुणकारी होता है।
आयुर्वेद में तिल के तेल की मालिश की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि प्रतिदिन तिल के तेल की मालिश करने से बुढ़ापा, थकावट व वायु की निवृत्ति होती है, आँखों की ज्योति बढ़ती है, आयु एवं निद्रा में वृद्धि होती है तथा त्वचा की सुन्दरता एवं दृढ़ता में भी वृद्धि होती है।
चर्म रोग में तिल के तेल की मालिश करना विशेष रूप से लाभदायक माना गया है। इससे त्वचा की खुश्की दूर होकर त्वचा कान्तिमय बनती है और उसमें स्निग्धता आती है। तिल में 28 प्रश प्रोटीन, 43 प्रश चर्बी, 25 प्रश शर्करा व विटामिन ए-बी तथा चूना एवं लोहा प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसमें तेल की मात्रा 48 प्रश तक पाई जाती है। तिल में लैसीथीन भी पाया जाता है जो मस्तिष्क के स्नायु व मांसपेशियों को शक्ति देता है।
सफेद तिल गुणों में मध्यम और लाल तिल हीन माने जाते हैं, वहीं काला तिल विशेष लाभप्रद माना जाता है। तेल की मात्रा भी इसमें अधिक होती है। तिल का प्रयोग खाने में, औषधि में एवं पूजा-हवन आदि में किया जाता है।
आयुर्वेद के मतानुसार भी तिल औषधीय गुणों से भरपूर होता है। तिल को अच्छी प्रकार चबाकर खाने से दाँत, मसूढे, दाढ़ व जबड़े मजबूत तथा निरोग बनते हैं और कान की बीमारियाँ नहीं होतीं। शरीर में शक्ति का संचार होता है, स्नायविक तन्त्र व पेशियों को बल मिलता है। शरीर की रोग-प्रतिरोध क्षमता बढ़ती है।
सर्दी के मौसम में 30 से 50 ग्राम तिल नियमित रूप से प्रतिदिन रात्रि में सोने से पूर्व खाना स्वास्थ्य के लिए अनेक प्रकार से लाभदायक होता है। तिल पाचन क्रिया को सुव्यवस्थित रखने की दृष्टि से विशेष गुणकारी है। इसके नियमित सेवन से भूख लगती है। अजीर्ण, चिड़चिड़ापन, याददाश्त की कमजोरी, मानसिक अस्थिरता, थकावट आदि की शिकायत दूर होती है।
सर्दी के दिनों में गुड़ और तिल का सेवन करने से दिल और दिमाग को ताकत पहुँचती है तथा मानसिक दुर्बलता एवं तनाव दूर होता है। चेहरे पर चमक और शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है। फेफड़ों के रोग, श्वास, सूखी खाँसी, नेत्र रोग, गठिया आदि बीमारियों में काला तिल लाभप्रद होता है।
यदि पैरों में अधिक ठण्डापन महसूस हो तो भुने हुए तिलों को गुड़ मिलाकर देशी घी में गूँथकर लड्डू बनाकर नियमित रूप से सेवन करने से तकलीफ दूर हो जाती है। जिनके बाल समय से पूर्व सफेद हो गए हों, झड़ते हों या गंजापन आ गया हो, तो उन्हें नियमित रूप से तिल का सेवन करना चाहिए। इससे बालों की समस्त प्रकार की बीमारियों से आराम होता है।
जिन लोगों को कब्ज और बवासीर रोग हो, उन्हें प्रातः नियमित रूप से एक-एक चम्मच काले तिल के साथ मिश्री और मक्खन के मिश्रण का सेवन करना चाहिए। अगर खूनी बवासीर हो तो काले तिल के साथ दही का सेवन करना लाभप्रद रहता है।
यदि बच्चे बार-बार पेशाब करते हों अथवा रात में बिस्तर गीले करते हों, तो एक भाग अजवाइन, दो भाग काले तिल और चार भाग गुड़ लेकर, अच्छी तरह मिलाकर लड्डू बना लें और उन्हें खाने को दें। यह लड्डू प्रातः एवं रात्रि को सोने से पहले चबा-चबाकर खाने को दें। - डॉ. हनुमान प्रसाद उत्तम
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