मानव जीवन को सफल बनाना सभी चाहते हैं। आखिर मनुष्य खाने के लिये नहीं जीता है उसके सामने कुछ लक्ष्य होता है। प्रत्येक व्यक्ति जीवन में ऐसा कुछ करना चाहता है कि उसके कार्यों की सराहना हो। उसकी समाज तथा राष्ट्र में प्रतिष्ठा हो। इसके लिये जीवन में कुछ त्यागना पड़ता है, महत्वपूर्ण कार्यों को करना पड़ता है। जिन अनेक छोटे-छोटे कार्यों को हम महत्वपूर्ण नहीं समझते हैं, यदि उन पर ध्यान दें तो जीवन में सफलता अवश्य प्राप्त हो सकती है। सफलता पाने के लिए प्रस्तुत सूत्रों को अपनायेंगे तो निःसन्देह जीवन में उन्नति के शिखर पर पहुँचेंगे।
जीवन का उद्देश्य निर्धारित करिये- बिना उद्देश्य के जीवन का कोई महत्व नहीं होता और वह ऐसे ही है जैसे बिना पतवारे के नाव। मनुष्य को जीवन यों ही जीने के लिए नहीं मिला है। जीवन में कुछ ऐसा विशेष कार्य करें ताकि आपके कार्यों की प्रशंसा हो। अपने जीवन का उद्देश्य निर्धारित कर सावधानीपूर्वक लक्ष्य की पूर्ति करनी चाहिए। लक्ष्य प्राप्त होने पर निश्चय ही प्रसन्नता की अनुभूति होती है।
कर्त्तव्य परायण बनिये- आपका किसके प्रति क्या कर्त्तव्य है? यह समझना अति आवश्यक है। कर्त्तव्यपरायण व्यक्ति अपने विवेकपूर्ण आचरण से अपनी जिम्मेदारी को पूर्ण करके सर्वत्र एक आदर्श प्रस्तुत कर सकता है। माता-पिता, भाई-बहिन, पति-पत्नी, बच्चों, मित्रों, परिवार, समाज तथा राष्ट्र के प्रति क्या कर्त्तव्य है यह न केवल जानें अपितु उस पर आचरण करें। रामचरित मानस से कर्त्तव्य पालन की शिक्षा मिलती है। इसका अवश्य अध्ययन कर मनन करें।
सन्तोषी बनिये- जिसके जीवन में सन्तोष नहीं है उसका जीवन भी क्या जीवन है। प्रायः लोगों में दूसरों की उन्नति देखकर मन में ईर्ष्या-द्वेष की भावना उत्पन्न होती है। इसका परित्याग कर हमें दूसरों की उन्नति से प्रेरणा लेकर उन्होंने उन्नति कैसे की इसका विश्लेषण करना चाहिए। यदि किसी ने गलत तरीके से धनोपार्जन किया है तो क्या उन्हीं तरीकों को अपनाकर धनोपार्जन करना उचित होगा? इस पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए।
आवश्यकतायें कम करिये- दूसरों की देखादेखी अपनी आवश्यकता बढ़ाकर वस्तुओं का संग्रह करना, अपनी आय से अधिक खर्च करना क्या उचित है? हमें ध्यान रखना चाहिए कि जितनी हमारी आवश्यकतायें कम होगी उतनी ही चिन्ता कम होगी और जीवन में तनाव कम होगा। जिसकी अभिलाषायें जितनी कम होंगी वह उतना ही अधिक सुखी होगा। शान्ति संग्रह में नहीं त्याग में है।
सकारात्मक सोच रखिये- जीवन में सकारात्मक सोच रखकर ही अपने जीवन को सार्थक, प्रसन्न और मधुर बनाया जा सकता है। सफलता के शिखर पर पहुँचने के लिए सकारात्मक सोच बहुत ही आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति की बात को अच्छे नजरिये से सुनना तथा अपने कार्य को सही तरीके से उत्साहपूर्वक करना ही सकारात्मक सोच है। सकारात्मक सोच नहीं होने से जो व्यक्ति जिस कार्य को कर रहा है उस कार्य से खुश नहीं होता। नौकरी वाले को व्यापार अच्छा लगता है एवं व्यापार वाले को नौकरी अधिक अच्छी लगती है। नौकरी वाले को जीवन पराधीन लगता है। उसे व्यापार वाले का जीवन स्वतन्त्र लगता है। यह नकारात्मक सोच का परिणाम है। कार्य कोई भी हो प्रत्येक व्यक्ति को अपना कार्य अच्छा लगना चाहिए। नौकरी करके भी व्यक्ति अपने क्षेत्र में सफलता के शिखर पर पहुँच सकता है तो व्यापार में भी कोई सफल होता है तो कोई सफल नहीं होता है। व्यापारी को सदैव मन्दी या घाटे की चिन्ता सताती है और प्रतिस्पर्धा एवं अधिक लाभ कमाने की लालसा से असन्तोष ही असन्तोष रहता है। व्यवसाय तथा नौकरी सभी क्षेत्रों में उन्नति करने के उचित अवसर सबको मिलते हैं। किन्तु व्यवहार कुशल एवं सही सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति ही अवसर का लाभ उठा सकते हैं और उन्नति करते हैं।
आत्म नियन्त्रण करिये- आत्म नियन्त्रण करके ही मनुष्य जीवन में सफल हो सकता है। जिस व्यक्ति ने आत्म नियन्त्रण कर लिया, वह क्रोध पर भी नियन्त्रण कर सकता है। क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। हमें प्रतिदिन आधा घण्टा आत्म निरीक्षण के लिए देकर यह देखना चाहिए कि आज के दिन मुझे किन कार्यों में सफलता मिली और नहीं मिली तो क्या कारण है? मैंने आज के कार्यों को निर्धारित समय में पूर्ण किया या नहीं? मैंने कौन से अच्छे तथा कौन से गलत कार्य किये। क्या आज मैंने कोई भलाई का कार्य किया? क्या आज मैंने किसी की आलोचना, निन्दा या बुराई की? आज मैंने प्रभु उपासना, प्रार्थना के लिए समय दिया या नहीं? आदि बातों पर आत्मचिन्तन करके अपनी भूलों को सुधारना चाहिए।
अहंकार को त्यागें- सफलता के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा मनुष्य का अहं या अहंकार होता है। जो मनुष्य यह सोचता है कि मैं ही सर्वगुणसम्पन्न हूँ और मेरी बात ही शत प्रतिशत सही है, यह भावना उसके अहं को प्रकट करती है। अपने को अपनी योग्यता से अधिक प्रकट करना तथा दूसरों को नगण्य समझना, उनके विचारों को अनसुना करना यह व्यक्ति की प्रतिष्ठा नहीं बढ़ाता है अपितु गिराता है। सफलता चाहने के लिए यह बहुत जरूरी है कि हम अपनी भूलों से शिक्षा ग्रहण करें। अहंकारी व्यक्ति को क्रोध शीघ्र आता है और दूसरों के उपकारों को भी वह भूल जाता है और कभी-कभी अहंकारवश दूसरों के साथ दुर्व्यवहार भी कर बैठता है। क्रोध एवं अहंकार से दूर रहकर सबके साथ मुस्कुराते हुए बातचीत करें, ताकि अपने मधुर व्यवहार से आप उनसे चाहे जो कार्य पूरा करा सकते हैं।
समय का सदुपयोग करिये- बीता हुआ समय कभी वापिस नहीं आता है। अतः प्रत्येक क्षण का सही उपयोग करने वाले व्यक्ति की ही सफलता चरण चूमती है। जो व्यक्ति अपने कार्य को निर्धारित समय में अच्छे ढंग से पूरा करता है वो ही आगे उन्नति, करता है। आपसी, गपशप एवं डींग हांकने वाले व्यक्ति कभी प्रगति नहीं कर सकते हैं। बीते समय की बातों को याद करके तथा भविष्य के लिए सुनहरे स्वप्न संजोने में समय को नष्ट नहीं करना चाहिए। वर्तमान में जो समय मिला है उसका एक क्षण भी व्यर्थ न जावे इसका पूरा ध्यान रखने वाले व्यक्ति को निःसन्देह सफलता अवश्य प्राप्त होती है।
अपने वादों को पूरा करिये- जिसको वचन देवे उसे अवश्य पूरा करे, चाहे मार्ग में अनेक कठिनाइयां आवें। रामचरित मानस में तुलसीदास जी ने कहा है- रघुकुल रीति सदा चली आई। प्राण जाहि पर वचन न जाहि॥
व्यक्ति के वचन पालन से ही उसकी विश्वनीयता बढ़ती है। जो व्यक्ति अपनी प्रतिष्ठा परिवार, समाज एवं राष्ट्र में बढ़ाना चाहता है उसे अपने वचनों का पूर्णतया पालन करना चाहिए। चुनाव के समय नेतागण अनेक सुनहरे स्वप्न तथा लुभावने वादे करते हैं। किन्तु चुनाव में विजयी होने के पश्चात उन्हें पूरा करना भूल जाते हैं। ऐसे नेताओं पर जनता विश्वास नहीं करती है और उसकी नजरों में उनकी कुछ भी प्रतिष्ठा नहीं रहती है। व्यापारी की प्रतिष्ठा उसकी वचनबद्धता पर ही निर्भर करती है। व्यापार में तो विश्वास पर ही सारा कार्य होता है। किन्तु जीवन में सफलता के लिए सामाजिक, राष्ट्रीय एवं पारिवारिक कार्यों में भी अपने वचनों का पूरा पालन करना बहुत जरूरी है। अतः अपनी कथनी-करनी को एक रखें। अपने आचरण को मन-वचन-कर्म से समान रखें, तभी आपको जीवन में सफलता प्राप्त हो सकेगी।
यदि आप अपनी मानसिकता बदलकर इन बातों को प्रतिदिन जीवन में अपनायेंगे तो सफलता अवश्य प्राप्त कर सकते हैं। - कृष्णचन्द्र टवानी
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