हम 3 अक्टूबर 2014 को विजयदशमी पर्व मनाएंगे जो आर्य हिन्दुओं के पर्वों में से एक प्रसिद्ध पर्व है। इसे आर्य लोग बड़े उत्साह से सर्वत्र मनाते हैं। यद्यपि ऐतिहासिक दृष्टि से इस बात की प्रामाणिकता सन्दिग्ध है कि इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने रावण का वध किया था, तथापि प्राय: सर्वत्र ऐसी ही मान्यता है और इसलिए 10 दिनों तक रामलीला का मंचन करके अन्तिम दिन विजयादशमी के अवसर पर रावण का पुतला जलाया जाता है।
प्राचीन काल में क्षत्रियों की विजय यात्रा इस दिन से प्रारम्भ होती थी इतना ही ज्ञात होता है। फिर भी चिरकाल से इसका सम्बन्ध श्रीराम द्वारा रावण विजय से जुड़ गया है। अत: ऐसे अवसर पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का स्मरण स्वाभाविक और उपयोगी है। दक्षिण भारत में इस विजयादशमी का सम्बन्ध विराट नगर में अर्जुन के कौरव विजय से माना जाता है। दुर्गा देवी द्वारा महिषासुर के वध को भी इस पर्व से सम्बद्ध माना जाता हैं। इन घटनाओं से विजयादशमी का ‘सत्यमेव जयते नानृतम्‘ अर्थात् सत्य की ही अन्त में विजय होती है असत्य की नहीं, यह स्फूर्तिदायक सन्देश स्पष्टत: ज्ञात होता है, जिसे सदा स्मरण रखना चाहिए। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के महान गुणों का स्मरण करने के लिए बाल्मीकि रामायण के आधार पर इन दिनों कथा की जानी चाहिए।
भगवान राम के चरित्र की महिमा जैसा कि बाल्मीकि रामायण से स्पष्ट है, उनके मानव स्वरूप से ही प्रतिष्ठित एवं गौरवान्वित होती है। ईश्वर के अवतार के रूप में उनको प्रस्तुत करने से अलौकिकता के कारण उनकी कर्त्तव्यपरायणता, सदाचार की मर्यादाएं (ऊंच नीच की वीथियों में से गुजरकर) एवं उनका मानव स्वरूप उतने चामत्कारिक और प्रभावोत्पादक नहीं रहते जितने रहने चाहिएँ। अंग्रेज विद्वान सर मोनियर विलियम का इस विषय में कथन है कि ‘‘जब हम राम को भगवान का अवतार बना देते हैं तो स्वयं राम अपने चरित्र से अनभिज्ञ रहते हैं। रामायण के जिन स्थलों पर उन्हें विष्णु का अवतार दिखाया गया है वे बाद के प्रक्षेप प्रतीत होते हैं।‘‘ (हीरन्स हिस्टोरिकल रिसर्चेज)
बाल्मीकि रामायण के प्रारम्भिक भाग में सामान्यत: वे वीर, उच्चमना, पवित्र एवं महान् सदाचारी मानव के रूप में दिखाये गये हैं जिनकी वीरता, उदारता, पितृभक्ति, पत्नी व्रत, भ्रातृ प्रेम, निर्वैरता आदि गुण अनुकरणीय एवं प्रशंसनीय थे। जब उन्हें वनवास का आदेश मिला तो उनके मुंह से एक भी कटु शब्द न निकला।
उन्होंने जिन शब्दों में अपने इस निश्चय की घोषणा की थी कि वे अपने पिता को वचन भंग नहीं करने देंगे भले ही उनका सर्वस्व चला जाये, वे बड़े उच्च हैं। भगवती सीता श्रेष्ठतम् नारी, परम् निष्ठावान् पत्नी एवं विशिष्ट गृह साम्राज्ञी का प्रतिनिधित्व करती हैं। राम ने सदाचार और कर्त्तव्य परायणता का झण्डा ऊंचा रखा था।
परमात्मा हमें सुबुद्धि दें जिससे हम मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के उदात्त चरित्र को अपने जीवन में धारण करके उनके सच्चे उत्तराधिकारी सिद्ध हो सकें। - आचार्य डॉ.संजय देव (दिव्ययुग-अक्टूबर 2014)
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