भ्रष्टाचार ऐसा कैंसर है जो लोकतन्त्र को कमजोर करता है तथा हमारे राज्य की जड़ों को खोखला करता है। यदि भारत की जनता गुस्से में है, तो इसका कारण है कि उन्हें भ्रष्टाचार तथा राष्ट्रीय संसाधनों की बर्बादी दिखाई दे रही है। यदि सरकारें इन खामियों को दूर नहीं करतीं तो मतदाता सरकारों को हटा देंगे। चुनाव किसी व्यक्ति को भ्रान्तिपूर्ण अवधारणाओं को आजमाने की अनुमति नहीं देते हैं। जो लोग मतदाताओं का भरोसा चाहते हैं, उन्हें केवल वही वादा करना चाहिए जो सम्भव हो। लोकलुभावन अराजकता शासन का विकल्प नहीं हो सकती। झूठे वायदों की परिणति मोहभंग में होती है, जिससे क्रोध भड़कता है तथा इस क्रोध का एक ही स्वाभाविक निशाना होता है- सत्ताधारी वर्ग। यह क्रोध केवल तभी शान्त होगा जब सरकारें वह परिणाम देंगीं जिनके लिए उन्हें चुना गया था। महत्वाकांक्षी भारतीय युवा अपने भविष्य से विश्वासघात को क्षमा नहीं करेंगे। जो लोग राजनीति में हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि हर एक चुनाव के साथ एक चेतावनी जुड़ी होती है, परिणाम दो अथवा बाहर हो जाओ।
ये पंक्तियाँ भारत के राष्ट्रपति माननीय प्रणब मुखर्जी के भाषण के वे अंश हैं, जो उन्होंने 65 वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम सम्बोधन में कही थीं। समय साक्षी है, इन पंक्तियों का एक-एक शब्द दीवार पर लिखी इबारत की तरह सही साबित हुआ है। गत लोकसभा चुनाव में देश की जनता ने कांग्रेस नीत यूपीए सरकार को सत्ता से उतार दिया। सम्भवत: कांग्रेस जनता की चेतावनी को नहीं समझ पाई, न ही देशवासियों की आशा के अनुरूप परिणाम दे पाई और जनता के क्रोध का शिकार बन गईं। इतना ही नहीं इस बार देशवासियों ने ऐसी सरकार को चुना जिसके पास पूरा बहुमत है। अर्थात अब यह बहाना भी काम नहीं आएगा कि हमारे साथ संख्या बल नहीं था, अन्यथा हम तो आसमान से तारे तोड़ लाते।
खुशी की बात तो यह है कि इस बार जनता ने उन दलों को भी पूरी तरह नकार दिया जो केन्द्र में चल रही सरकार की बैसाखियाँ हुआ करते थे और डरा-धमकाकर अपने हित साधा करते थे। अपनी जायज और नाजायज सभी बातों को खुशी-खुशी या जिद से मनवा लेते थे और सरकार दलों के इस दलदल में जितनी छटपटाती उतनी ही इसमें धंसती चली जाती थी। मगर आज स्थितियाँ बिलकुल अलग हैं।
हालांकि बदलाव को लेकर वर्तमान सरकार या सत्तारूढ़ दल को बहुत ज्यादा खुश होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उसकी जिम्मेदारी और बढ़ गई है। जनता ने उस पर भरोसा किया है। अत: सत्तारूढ़ पार्टी को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यह वही जनता है, जिसने अपनी आशाओं के फलीभूत नहीं होने पर पिछली सरकार को उखाड़ फेंका था। यह नई सरकार के लिए बड़ा सबक भी है। यह भी सही है कि वर्तमान सरकार से इतनी जल्दी परिणाम की अपेक्षा करना बेमानी होगा। लेकिन यह भी सच है कि सरकार को लोगों की उम्मीदों पर पूरी तरह खरा उतरना होगा। क्योंकि देश में भ्रष्टाचार रूपी दानव समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा, तो महंगाई सुरसा की मुख तरह बढ़ती ही जा रही है। वह कम नहीं हो पा रही है। नौजवान हाथ बेरोजगारी का शिकार हैं।
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने देश को इन सभी बुराइयों से मुक्ति का आश्वासन दिया है और भारतवासियों को भी उम्मीदों की भोर नजर आने लगी है। लेकिन अभी तो यह शुरुआत भर है। लम्बा सफर तय करना है। कवि बलवीरसिंह रंग की पंक्तियाँ भारत की वर्तमान स्थिति के लिए काफी सामयिक हैं और केन्द्र की भाजपा सरकार के लिए सन्देश भी-
उदित प्रभात हुआ फिर भी छाई चारों ओर उदासी।
ऊपर मेघ भरे बैठे हैं किंतु धरा प्यासी की प्यासी ॥
जब तक सुख के स्वप्न अधूरे, पूरा अपना काम न समझो,
विजय मिली विश्राम न समझो॥ - वृजेन्द्रसिंह झाला (दिव्ययुग- जनवरी 2015)
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