विशेष :

यन्त्र-कूप

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ओ3म् सिञ्चन्ति नमसावतमुच्चा चक्रं परिज्मानम्।
नीचीनबारमक्षितम् ॥ ऋग्वेद 8.72.10॥

शब्दार्थ- वैज्ञानिक लोग (उच्चा चक्रम्) जिसके ऊपर चक्र लगा हो और (परिज्मानम्) चारों ओर भूमि हो तथा (नीचीनबारम्) नीचे पानी के द्वार हों ऐसे (अक्षितम्) कभी समाप्त न होने वाले, अक्षय जल के भण्डाररूप (अवतम्) कूप को (नमसा) अन्न के लिए (सिञ्चन्ति) सींचते हैं, खेतों की सिंचाई करते हैं।

भावार्थ- वेद अखिल विद्याओं का भण्डार है, सभी ज्ञान और विज्ञानों का कोष है। महर्षि दयानन्द के शब्दों में, ‘वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है।‘ योगिराज अरविन्द घोष के शब्दों में, ‘‘आज तक जितने वैज्ञानिक आविष्कार हुए हैं और जो आविष्कार भविष्य में होंगे उन सबका मूल वेद में विद्यमान है।‘‘ इस मन्त्र पर ध्यानपूर्वक मनन कीजिए। इसमें स्पष्ट ही यन्त्र-कूप (Tubewell) का वर्णन है।

ट्यूबवैल में ऊपर एक चक्र होता है, उस चक्र के साथ एक बहुत बड़ा पाइप होता है जिसका एक मुख ऊपर की ओर होता है और एक नीचे की ओर। नीचे का मुख जल के भण्डार कुएँ में लगा होता है। यन्त्र के चलने पर यह नीचे से पानी खींचना शुरु कर देता है। पानी पर्याप्त में ऊपर आता है। कुएँ के चारों ओर भूमि=खेत होते हैं। इस प्रकार के कूपों से खेतों की सिंचाई की जाती है। - स्वामी जगदीश्‍वरानन्द सरस्वती (दिव्ययुग - जुलाई 2014)