विशेष :

देश में अविश्‍वास का माहौल बनाने की साजिश

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Conspiracy to Create an Atmosphere of Mistrust in the Country

पिछले कुछ समय से या यूं कहें कि केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने के बाद देश में किसी न किसी बहाने अविश्‍वास का माहौल बनाने का षड्यन्त्र किया जा रहा है। दादरी के अखलाक की हत्या का मामला हो या फिर हैदराबाद विश्‍वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या का, देश में इस तरह का वातावरण बनाया जा रहा है कि यहाँ न तो अल्पसंख्यक सुरक्षित हैं और न ही दलित समुदाय को उनका वाजिब हक मिल रहा है। निश्‍चित ही दोनों घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण हैं। लेकिन जिस तरह से दोनों ही मामलों में राजनीति हुई है, वह शर्मनाक है। कांग्रेस के युवराज राहुल गान्धी और दिल्ली के मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल के पास दादरी और हैदराबाद जाने का समय तो था, लेकिन सियाचीन में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए वक्त का टोटा पड़ गया है। दरअसल, दादरी और हैदराबाद जाकर उन्होंने अपने वोट को साध लिया, लेकिन देश पर प्राण न्योछावर करने वाला सैनिक भला किसका वोट बैंक बन सकता है!

अखलाक की मौत के बाद तो देश के बड़े-बड़े साहित्यकारों, लेखकों को देश में इतनी असहिष्णुता नजर आने लगी कि उन्होंने धड़ाधड़ पुरस्कार लौटाना शुरू कर दिया। इससे देश-विदेश में भारत की उदार छवि को तार-तार करने की पुरजोर कोशिश की गई। हालांकि लोगों को समझ में भी आ रहा था कि बिहार चुनाव से पहले भाजपा के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा था। इसे साजिश इसलिए भी कह सकते हैं, क्योंकि केरल में वामपन्थी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक स्वयंसेवक की हत्या कर दी। इस हत्या को लेकर न तो किसी ने पुरस्कार लौटाया और न ही अखलाक की मौत पर दिनभर बहस चलाने वाले मीडिया के एक वर्ग ने कोई चर्चा की। दुर्भाग्य से तथाकथित ‘सहिष्णु’ लोगों की नजर उन ‘देशभक्त’(?) नवयुवकों पर भी नहीं पड़ी, जो अबू बकर अल बगदादी के नृशंस ‘इस्लामिक स्टेट’ में शरीक होने के लिए सीरिया पहुंच गए। इनकी आलोचना के लिए किसी को भी एक शब्द नहीं मिला। शायद उन्हें लगता होगा कि ये युवक किसी सामाजिक कार्य के लिए सीरिया गए थे। क्या यह दोगलापन नहीं है? इससे तो यही लगता है कि देश की जनता द्वारा पूर्ण बहुमत से चुनी गई सरकार को इस तरह के लोग पचा नहीं पा रहे हैं।

सन्देह इसलिए भी होता है क्योंकि जिस तरह से दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय में राष्ट्रविरोधी नारे लगे, किसी भी ‘सहिष्णु’ व्यक्ति के चेहरे पर शिकन नजर नहीं आई, जबकि जेएनयू में भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह...इंशाअल्लाह..., भारत की बर्बादी तक, जंग रहेगी, जंग रहेगी..., कश्मीर की आजादी तक, जंग रहेगी, जंग रहेगी..., अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं... जैसे नारे लगे। देवी दुर्गा को अपमानित करने वाले पोस्टर विश्‍वविद्यालय परिसर में लगे, यह सब हुआ अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर। जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार सामंतवाद, पूंजीवाद और गरीबी से आजादी की बात करते हैं। वे जेएनयू में काफी लम्बे समय से हैं, क्या दो साल के भीतर ही उन्हें देश में सामन्तवाद और गरीबी नजर आने लगी है, जिससे वे आजादी की बात वे कह रहे हैं। यदि उन्हें गरीब और पिछड़ों की इतनी ही चिन्ता है तो क्यों नहीं वे बिहार में आन्दोलन खड़ा करते हैं, जहाँ उनकी सबसे ज्यादा जरूरत है। वहाँ गरीबी भी है, पिछड़ापन भी है और गुण्डाराज भी है। मगर हकीकत में उनका राजनीतिक एजेण्डा है, उन्हें न तो गरीबों की चिन्ता है और न ही रोहित वेमुला की। क्योंकि वामपन्थी नेता सीताराम येचुरी ने स्पष्ट किया है कि कन्हैया पश्‍चिम बंगाल चुनाव में उनकी पार्टी का प्रचार करेंगे।

दूसरी ओर आरक्षण की आग है कि थमने का नाम ही नहीं ले रही है। पहले गुजरात के पाटीदार समुदाय ने आरक्षण मांगा, फिर हरियाणा के जाट सड़कों पर उतरे। आरक्षण की मांग तक तो सब कुछ ठीक था, लेकिन जिस तरह आन्दोलन के नाम आगजनी और तोड़फोड़ और बलात्कार की घटनाएं हुईं, वह वाकई दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक था। क्या वर्ष प्रतिपदा अर्थात हिन्दू नववर्ष के अवसर पर हम संकल्प नहीं ले सकते हैं कि अपने आसपास के राष्ट्रविरोधी तत्वों की पहचान कर उन्हें देशवासियों के सामने बेनकाब करें। क्या जन्मभूमि के प्रति हमारा कोई कर्तव्य नहीं बनता? मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने तो जननी और जन्मभूमि को स्वर्ग से भी महान कहा है। उन्हीं राम की जन्मभूमि अयोध्या में मन्दिर की बात करना साम्प्रदायिकता की श्रेणी में आ जाता है और हिन्दुत्व तथा उसके प्रतीकों को सरेआम गालियाँ देना अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता। आइए, संकल्प लें कि स्वर्ग से सुन्दर पुण्यभूमि भारत को किसी की नजर नहीं लगने देंगे।

डेढ़ दशक राष्ट्रवादी पत्रकारिता का- इस बार की वर्ष प्रतिपदा इसलिए और महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रीय मासिक पत्र ‘दिव्ययुग’ का अपने प्रकाशन के पन्द्रह वर्ष पूर्ण कर सोलहवें वर्ष में प्रवेश हो रहा है। यह सम्भव हो सका आप सभी पाठकों के पत्रिका के प्रति अथाह प्रेम और विश्‍वास के कारण। आपके सहयोग और सुझावों को ध्यान में रखकर पत्रिका में समय-समय पर बदलाव और सुधार लाने का पूरा प्रयास हमने किया। उसमें काफी हद तक सफल भी रहे। राष्ट्रवाद, वैदिक संस्कृति और हिन्दुत्व को समर्पित इस पत्रिका ने पग-पग पर चुनौतियों का सामना भी किया है। आर्थिक सहयोग और विज्ञापन के बिना किसी पत्रिका का सतत प्रकाशन लगभग असम्भव ही है, किन्तु पाठकों के स्नेह का ही प्रताप है कि पत्रिका का लगातार प्रकाशन हो रहा है। पन्द्रह वर्ष पूर्ण होने पर ‘दिव्ययुग’ परिवार की ओर से सभी पाठकों को कोटिश: शुभकामनाएं... बधाई... आभार। - सम्पादकीय (दिव्ययुग - अप्रैल 2016)

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