विशेष :

जीवनोपयोगी चिन्तन

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1. अधिकार कर्त्तव्यों को नींव पर आधारित होते हैं।
2. संस्कारयुक्त शिक्षा ही जीवन को सफल बनाती है। भारतीय संस्कृति ‘इन्द्रिय-संयम’ पर बल देती है। भाग्यवादी एवं आलसी में मानसिक अपंगता होती है। संस्कारविहीन व्यक्ति शिक्षित समाज में हंसों के बीच में बगुलों के समान होते हैं।
3. जिज्ञासु एवं संस्कारवान शिक्षक ही ‘राष्ट्रनिर्माता’ होता है।
4. बेईमान इस समाज में निकृष्टतम व्यक्ति है।
5. भारतवर्ष ही सम्पूर्ण संसार में ‘कर्मभूमि’ के रूप में विख्यात है।
6. किसी व्यक्ति का शारीरिक सौन्दर्य अस्थायी होता है, जबकि उसका मानसिक (वैचारिक) सौन्दर्य स्थायी।
7. अपने जीवन को ‘सार्थक’ करना ही हर व्यक्ति का धर्म (कर्त्तव्य) है। - डॉ. महेशचन्द्र शर्मा, साहिबाबाद

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