विशेष :

जीत में पागल मत हो जाओ हार में हिम्मत न हारो

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Jeet or Haarआज तक किसी को सुख से सुख नहीं मिला। दुःख से ही सुख मिलता है। सुख का अनुभव दुःख से होता है। आप दुःख को जितना सहन करोगे, दुःख उतना ही हल्का हो जायेगा। कई बार आपको दुःख बड़ा भारी मालूम पड़ता है। वास्तव में दुःख भारी नहीं है, बल्कि हममें उस दुःख को सहन करने की शक्ति कुछ कम होती है। इसीलिए दुःख भारी लगने लगता है।

महापुरुषों को कितने बड़े दुःख आये, परन्तु उनके अन्दर सहन करने की महान शक्ति थी। इसीलिए उनके दुःख बहुत हल्के हो गये। मर्यादा पुरुषोत्तम राम का पूरा जीवन दुःखमय था। आप कल्पना करो, किसी व्यक्ति को एक रात्रि पहले ही सूचना हो कि कल प्रातः से राजगद्दी का सुख-वैभव मिलेगा। परन्तु प्रातः होते-होते उसे 14 वर्ष के वनगमन का आदेश हो गया हो। परन्तु उस महामानव राम पर न तो उस राज्य प्राप्ति का पागलपन ही सवार हुआ और न ही वनगमन रूपी कार्य में हिम्मत ही हारी। क्योंकि उन सब दुःखों को सहन करने की शक्ति उनमें थी। वन यात्रा के समय असंख्य राक्षसों से संघर्ष, पत्नी का अपहरण, भ्राता का मूर्च्छित होना आदि न जाने कितनी विपत्तियाँ आईं। परन्तु वह महामानव डिगा नहीं। भगवान कृष्ण का तो जन्म ही जेल में हुआ। पालन बाबा नन्द एवं यशोदा मैया के घर में। जन्म से लेकर कंस वध तक तथा पाण्डवों (सत्य) के समर्थन के कारण किन-किन अपशब्दों से कौरवों द्वारा उन्हें पीड़ित नहीं किया गया और अन्त में दुखद मृत्यु! परन्तु फिर भी योगेश्‍वर कृष्ण कभी दुःखों से घबराये नहीं। महर्षि दयानन्द सरस्वती ने बहन की मृत्यु, चाचा की मृत्यु, घर छोड़कर सच्चे शिव की खोज में जहाँ-तहाँ धक्के खाना, कहीं बर्फ खाकर गुजारा करना, किसी के द्वारा उन पर सांप फैंकना, पत्थर फेंकना अनेकों बार विष दिया जाना आदि कष्ट सहन किए। पर वाह! शिव के सच्चे पुजारी शंकर के रूप में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने स्वयं तो विष पीया, परन्तु मानव जाति को अमृत पिलाते रहे। सारा जीवन दुःख और कष्टों में बीता। परन्तु मृत्यु के समय यह कहना “हे ईश्‍वर! तूने अच्छी लीला की, तेरी इच्छा पूर्ण हो’’ दुःखों पर विजय प्राप्त करने का एक अनूठा मार्ग था। शास्त्रार्थों में विजय प्राप्त करने पर वह पागल नहीं हुआ और अपमान मिलने पर भी वह हिम्मत नहीं हारा।

जो लोग दुःख को सहन नहीं कर सकते, ऐसे लोग दूसरों की निन्दा करते फिरते हैं। शिकायत करते रहते हैं। गर्मी अधिक हो जाये तो गर्मी की शिकायत, सर्दी अधिक हो जाये तो सर्दी की शिकायत। फिर परमात्मा से भी शिकायत की जाती है कि परमात्मा ने हमारे लिए दुःख ही दुःख पैदा किये हैं। दुःखों के जाल में हमें धकेल दिया है। वह कहते हैं कि हम अपनी इच्छा से इस दुनिया में नहीं आये। परमात्मा हमें कोई सहयोग नहीं देता। ऐसे लोग सदैव दुःख ही उठाते हैं।

यह दुःख और सुख हमारे कर्मों के फल हैं। हमारे जीवन में सुख अधिक हैं और दुःख बहुत कम हैं। परन्तु दुःख आने पर हमने सुखों का जो आनन्द लिया है, उसे भूल जाते हैं। बस दुःखों के कष्टों को अधिक भारी अनुभव करने लगते हैं, यही दुःख का कारण है। लोग यह सोचते हैं कि सुख तो हमारे अच्छे कर्मों के कारण है और दुःख भगवान दे रहा है। यही सोच उनकी नकारात्मक है। इसी कृतघ्नता के कारण ही दुःख उठाते हैं।

कुछ लोगों ने सुखों और दुःखों का विचित्र प्रकार का समीकरण बना रखा है। वह कहते हैं कि यदि हमने 8 अच्छे और 5 बुरे कार्य किये तो शेष 3 अच्छे कार्यों का सुख हमें मिलेगा। यह गणित गलत है। वैदिक गणित तो यह कहता है कि 8 अच्छे कार्यों का सुख लाभ हमें प्राप्त होगा और 5 बुरे कार्यों का दुःख भी हमें भोगना पड़ेगा क्योंकि वैदिक सिद्धान्त है- अवश्यमेव भोक्तव्यम् कृतं कर्म शुभाशुभम्। किये हुए कर्मों का फल चाहे वह शुभ हो या अशुभ, अवश्य ही भोगना पड़ेगा।

जो लोग साहस करके दुःख को सहन कर लेते हैं, उनके जीवन में बसन्त आ जाती है, बहार आ जाती है। उनके जीवन में कांटे नहीं बल्कि फूल खिलने लगते हैं। ऐसे लोगों के जीवन से दूसरों को भी सुखों की प्राप्ति होती है। अतः साहस करो और गुजरे हुए काल पर दुःख मत करो। वर्तमान को संभालो।

निराशा से बढ़कर दूसरी कोई वस्तु नहीं। यह मृत्यु का दूसरा नाम है। अतः ध्यान रखो कि हर कठिनाई आपकी परीक्षा लेने आती है। अतः दुःख आने पर घबराना नहीं चाहिए। उत्साह और साहस से सभी समस्याओं का हल हो जाता है। मस्तिष्क को शान्त रखें। आपके द्वारा किया हुआ क्रोध गलत कार्य से प्रारम्भ होता है और अपमान पर समाप्त होता है। अपना कर्त्तव्य पूरा करो, शेष परमात्मा पर छोड़ दो। कर्म करना तेरा काम है, फल का देना परमपिता परमात्मा का काम है। तुम अपने काम से काम रखो, उस महान सत्ता को अपना काम करने दो। जिस दिन ऐसा अनुभव करने लगोगे, उस दिन दुःख में भी सुख का अनुभव होना लगेगा।

यदि आप कुछ सीखना चाहते हैं तो आप द्वारा की हुई भूल भी आपके लिए प्रेरणादायक बन सकती है। आवश्यकता है सकारात्मक सोच की। ध्यान रखो कि केवल धन से प्रसन्नता नहीं मिलती, प्रसन्नता का सम्बन्ध हृदय और स्वास्थ्य के साथ है। कोई भी कार्य समय आने पर होता है, शीघ्रता करने से कुछ नहीं बनता। वृक्ष को चाहे कितनी ही खाद डालो, परन्तु मौसम आने पर ही फल देगा। अतः हिम्मत मत हारो। जो लोग हिम्मत हार जाते हैं, जरा सा दुःख आने पर घबरा जाते हैं, चेहरा सफेद होने लगता है, होंठ सूखने लगते हैं, आवाज कांपने लगती है, सिर पकड़कर बैठ जाते हैं, ऐसे लोग अपनी किस्मत को कोसने लगते हैं, परमात्मा पर दोष लगाने लगते हैं। ऐसे लोगों को कौन समझाये! जो ऐसी छोटी-छोटी बातों से अपनी लम्बी जिन्दगी में हार मान बैठते हैं, तनावयुक्त होकर आत्महत्या कर लेते हैं, वे अपने आप पर अत्याचार करते हैं। जो व्यक्ति ‘ईश्‍वर जो भी करता है, अच्छा करता है, मानव तू परिवर्तन से काहे को डरता है’ इस बात में विश्‍वास करता है, वह जीत में पागल नहीं होता और हार में हिम्मत नहीं हारता। क्योंकि जिन्दगी बहुत लम्बी है। इसे ईश्‍वर का प्रसाद समझकर आनन्द से व्यतीत करें। अपने लक्ष्य की ओर निरन्तर विश्‍वासपूर्वक आगे बढ़ें। तभी हम अपने जीवन को उच्च और सार्थक बना पायेंगे।

तुम सुख-दुःख की अधीनता छोड़ उनके ऊपर अपना स्वामित्व स्थापित करो और उसमें जो कुछ उत्तम मिले उसे लेकर अपने जीवन को नित्य नया रसयुक्त बनाओ। प्रतिकूलताओं से डरोगे नहीं और अनुकूलता ही को सर्वस्व मानकर न बैठे रहोगे तो सब कुछ कर सकोगे। जो मिले (सुख या दुःख) उसी से शिक्षा ग्रहण कर जीवन को उच्च बनाओ। यह जीवन ज्यों-ज्यों उच्च बनेगा, त्यों-त्यों आज तो तुम्हें प्रतिकूल (दुःख) प्रतीत होता है, वह सब अनुकूल (सुख) दिखने लगेगा और अनुकूलता आ जाने पर दुःख की निवृत्ति हो जायेगी। - कन्हैयालाल आर्य

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