भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा.राधाकृष्णन विश्वविख्यात दार्शनिक होने के साथ-साथ बड़े विनोदी स्वभाव के थे। स्वतन्त्रता से पूर्व एक बार जब वे इग्लैण्ड में थे, तब किसी अंग्रेज ने बड़प्पन दिखाते हुए कहा था कि हम इतने गोरे और सुन्दर हैं, इसीलिए ईश्वर की चुनी हुई सन्तान है।
डाक्टर राधाकृष्णन ने इस व्यंग्य का उत्तर एक कहानी के रूप में दिया।
एक बार ईश्वर को रोटी बनाने की इच्छा इुई। उसने पहली रोटी सेकी जिससे अंग्रेज जाति का जन्म हुआ। दूसरी उससे अधिक सिक गई जिससे अफ्रीका के नीग्रो उत्पन्न हुए। दो रोटियां सेकने के बाद ईश्वर को अपनी भूल की अनुभूति हुई इसलिए उसने अगली रोटी को न कम सेका न अधिक, फलस्वरूप हम भारतीयों का जन्म हुआ।
जितने लोग वहाँ बैठे थे, यह कथा सुनकर वे हंसी के मारे लोट-पोट हो गए।
वस्तुत: रंग की विभिन्नता क्षेत्र विशेष की भौगोलिक स्थिति एवं जलवायु पर निर्भर करती है। ठण्डी जलवायु के व्यक्तियों की चमड़ी प्राय: चिट्टी होती है और उष्ण जलवायु के व्यक्तियों की काली। भारत जैसे न अधिक गर्म और न अधिक ठण्डे क्षेत्रों के व्यक्तियों की चमड़ी काली और गोरी दोनों ही होती है। गोरे माता-पिता से काली और काले माता-पिता से गोरी सन्तान भी उत्पन्न होती है। - प्रस्तुति- वरुण पहल (दिव्ययुग-अक्टूबर 2014)
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