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औद्योगिक सफलता का सूत्र

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सृष्टि के आदि में मानव के कल्याण और मार्गदर्शन के लिये परमात्मा ने जो बौद्धिक ज्ञान का प्रकाश दिया, उसी का नाम ‘वेद’ है। वेद अर्थात् ज्ञान, जो ईश्‍वरीय प्रेरणा का फल है। वेद-मन्त्रों में जहाँ सर्वमंगल हेतु प्रार्थना है, वहाँ ज्ञान-विज्ञान, आयुर्विज्ञान, धर्मशास्त्र, राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, वाणिज्य-व्यवसाय, कृषि और पारिवारिक व्यवस्था के तत्वों का प्रतिपादन भी है तथा भौतिक विज्ञान, रासायनिक विज्ञान, जीव विज्ञान, भूगर्भ विज्ञान आदि के विभिन्न विषयों का वर्णन भी है। इससे यह ज्ञात होता है कि हमारे प्राचीन मन्त्रद्रष्टा ऋषि-महर्षि मात्र आध्यात्मिक जप-तप, पूजा-पाठ करने वाले ही नहीं अपितु महान् वैज्ञानिक, दार्शनिक और अर्थवेत्ता भी थे।

ऋग्वेद का यह मन्त्र एक व्यवसायी का किस तरह मार्गदर्शन कर रहा है, देखिये-
ओ3म् इन्द्र श्रेष्ठानि द्रविणानि धेहि चित्तिं दक्षस्य सुभगत्वमस्मे।
पोषं रयीणाम् अरिष्टिं तनूनाम् स्वाद्मानं वाचः सुदिनत्वमह्नाम्॥

अर्थात्- हे अखिल ऐश्‍वर्यसम्पन्न (इन्द्र) परमेश्‍वर! हमें श्रेष्ठ दे। उत्साह, चतुरता और सत्कर्म का ज्ञान दे। सौभाग्य, धनों की पुष्टि, शरीर की निरोगता, मधुर वाणी और अच्छे दिन दे।

यदि ध्यान से इस मन्त्र को समझें तो किसी भी कार्य या व्यवसाय की सफलता के लिये आवश्यक सभी श्रेष्ठ पदार्थों व गुणों की प्रार्थना ईश्‍वर से कर दी गई है। सबसे पहले हमने कहा-
1. इन्द्र श्रेष्ठानि द्रविणानि धेहि- हे ईश्‍वर! हमें श्रेष्ठ धन दे। सत्कर्मों द्वारा प्राप्त धन दे, गलत तरीके से कमाया हुआ नहीं।
2. चित्तिं दक्षस्य- उत्कृष्ट बुद्धि, उत्साह, चतुराई और सत्कर्म का ज्ञान दे। क्योंकि केवल कर्म का ज्ञान होने ही से सफलता नहीं मिलती। उसके साथ कर्म करने का उत्साह और चतुराई भी होनी चाहिये।
3. सुभगत्वमस्मे- सौभाग्य मिले। सौभाग्य और दुर्भाग्य हमारे अच्छे-बुरे कर्मों का फल होता है। अतः पहले उत्कृष्ट सद्बुद्धि मांगी गई है, जिससे सत्कर्म करें और फिर कहा कि हमारा भाग्य भी अच्छा हो। क्योंकि सारे साधन हों और भाग्य (अच्छे-बुरे कर्मों का फल) अच्छा न हो तो भी सफलता नहीं मिलेगी।
4. पोषं रयीणाम्- धन की पुष्टि हो अर्थात्बिना पर्याप्त धन के हम अपना काम पूरा नहीं कर सकते। कर्म, पुरुषार्थ और भाग्य के साथ बहुत सारा धन भी चाहिये। काम को सुचारू रूप से चलाने के लिये धन की कमी न हो, प्रचुर मात्रा में धन हो।
5. अरिष्टिं तनूनाम्- ये सब श्रेष्ठ धन, उत्कृष्ट बुद्धि, सौभाग्य और पर्याप्त धन भी हो और शरीर स्वस्थ न हो, तो भी हम कुछ नहीं कर पाएंगे। अतः कहा है कि हमारा शरीर स्वस्थ, निरोग और बलवान रहे।
6. स्वाद्मानं वाचः- अब शरीर भी स्वस्थ है, लेकिन वाणी में मधुरता नहीं है, तो हमारी कटु वाणी से बने हुए काम भी बिगड़ जाएंगे। इसलिये कहा है कि हमारी वाणी मधुर हो। सोच-समझकर मधुर बोलने वाले ही अपने कार्य-व्यापार में सफल हो पाते हैं।
किसी कवि ने ठीक ही कहा है-
कुदरत को नापसन्द है सख्ती बयान में, इसलिए लगाई नहीं हड्डी जबान में।
इस तरह प्रार्थना करने के बाद अन्त में कहा है-
7. सुदिनत्वमह्नाम्- हे ईश्‍वर! हमारे दिन सुदिन हों, अच्छे हो।

इस एक मन्त्र में ही मानो गागर में सागर भर दिया गया है। सफलता के इस एक मन्त्र से हम जीवन के हर क्षेत्र में सफल हो सकते हैं। यह वेद मन्त्र हमें सिखाता है कि किसी भी उद्योग-व्यवसाय या छोटे से छोटे काम में सफलता पाने के लिये ये सभी गुण होना अत्यन्त आवश्यक है।

तात्पर्य यह है कि वैदिक मन्त्रों का ज्ञान हमें जीवन के हर पहलू का बोध कराकर उसका समाधान भी बताता है। आज की विकराल समस्याओं जैसे पर्यावरण-प्रदूषण, मानसिक अशान्ति एवं समाज, राष्ट्र और विश्‍व में विषमता तथा अराजकता आदि अनेकानेक प्रश्‍नों का हल पाया जा सकता है। बस आवश्यकता है इस ज्ञान के अथाह सागर में से ज्ञान के अमूल्य मोतियों खोजने की।

वर्तमान युग में पारिवारिक रिश्तों के गिरते मूल्य, भोगोन्मुख प्रवृत्ति, मनुष्य की कर्त्तव्य विमुखता के कारण चारों ओर अशान्ति और असन्तोष, निरन्तर गिर रहा सामाजिक स्तर, फैल रहा भ्रष्टाचार, पाशविक प्रवृत्ति के कारण बढ़ता हुआ आतंकवाद आदि समस्याएं प्राणीमात्र के लिये दुःखदायी हो गयी हैं। आज का किशोर और युवा वर्ग आँखें बन्द करके पाश्‍चात्य जगत की भोगपरक व अर्थप्रधान विलासिता को ही आधुनिकता की पहचान समझकर दिशा भ्रमित हो रहा है। आज का समाज अर्थ व्यवस्था में बेशुमार बढ़ते काले धन के कारण अपसंस्कृति को ही संस्कृति समझ रहा है । वह यह समझना ही नहीं चाहता कि हमारी प्राचीन वैदिक संस्कृति जो स्वस्थ और पवित्र जीवन शैली की आधारशिला है उसका त्याग करना आधुनिकता नहीं है। परमपिता परमात्मा सृष्टि के सबसे अधिक बुद्धिमान प्राणी मनुष्य को सद्बुद्धि दे कि वह पुनः वेदों की ओर, प्रकृति की ओर चले जिससे सम्पूर्ण विश्‍व फिर से कह उठे- यही वृद्ध भारत गुरु है हमारा। - रोचना भारती


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