ओ3म् कालो अश्वो वहति सप्तरश्मि सहस्राक्षो अजरो भूरिरेताः।
तमा रोहन्ति कवयो विपश्चितः तस्य चक्रा भुवनानि विश्वा॥ (ऋग्वेद 19.53.1)
ऋषि भृगुः॥ देवता कालः॥ छन्द त्रिष्टुप्॥
विनय- कालरूपी महाबली घोड़ा चल रहा है। यह सब संसार को खींचे लिये जा रहा है। इस विश्व के सब प्रकार के जंगलों में सात तत्व काम कर रहे हैं। सब जगतों में सात लोक, सात भूमियाँ हैं, सप्त प्रकार की सृष्टि है और प्रत्येक प्राणी में भी सात प्राण, सात ज्ञान और सात धातु हैं। ये ही सात रस्सियाँ (रश्मियाँ) हैं, जिनसे कि यह विश्व उस कालरूपी घोड़े से जुड़ा हुआ है। काल की महाशक्ति से जुड़कर इस ब्राह्मण के सब भुवन, सब लोक, सब मनुष्य, सब प्राणी, सब उत्पन्न वस्तुएँ चक्र की तरह घूम रही हैं। इन असंख्य भुवनों के, उत्पन्न चर या अचर प्रदार्थों के असंख्यात अक्षों (व्यक्ति-केन्द्रों) को गति देता हुआ, यह महाशक्ति काल अपने इन भुवन चक्रों द्वारा इस समस्त विश्व को चला रहा है। इस तरह यह संसार न जाने कब से चलाया जा रहा है। हम परम तुच्छ मनुष्यों की क्या गणना, असंख्यों वर्षों की आयु वाले बहुत से सौरमण्डल भी जीर्ण होकर सदा से इस अनन्तकाल में लीन होते गये हैं, परन्तु कभी जीर्ण न होता हुआ यह कालदेव आज भी अपनी उसी और उतनी ही शक्ति से इस विश्व ब्रह्माण्ड को खींचे लिये जा रहा है। इस कालदेव को कोटि-कोटि प्रणाम हैं। भाइयो! क्या तुम्हें यह कभी जीर्ण न होने वाला, सब विश्व को चलाने वाला महाशक्तिशाली अश्व दीख रहा है? पर याद रखो कि इस महावेगवान् अश्व की सवारी वे ही ले सकते हैं, जो कि ज्ञानी हैं और जो समय को पहचानते हैं। जिनकी दृष्टि इस सबको हिलाने वाले अनन्त कालदेव के दर्शन पाकर विशाल हो गई है। अतएव जोकि क्रान्तिदर्शी हैं। जोकि विशाल भूत और भविष्य को दूर तक देख रहे हैं। जो अज्ञानी या अतिचञ्चल मनुष्य स्थिर ज्ञान प्रकाश को न पाकर क्षुद्र दृष्टि वाले और काल के महत्व को न पहचानने वाले हैं, वे तो कालरथ पर नहीं चढ़ सकते और न चढ़ सकने के कारण वे या तो कुचले जाते हैं या कुछ दूर तक घिसटते जाकर कहीं इधर-उधर दूर जा पड़ते हैं और मार्ग भ्रष्ट हो जाते हैं या इसके नीचे यूँ ही पड़े रहकर नष्ट हो जाते हैं। इसीलिए काल नाम मृत्यु का हो गया है। परन्तु वास्तव में काल तो वह महाशक्तिवाला, महावेग वाला यान है, जिस पर सवार होकर हम बड़ी जल्दी अपना मार्ग तय करके लक्ष्य पर पहुँच सकते हैं। अतः आओ, हम आज से काल के सवार बनें। अपने पल-पल, क्षण-क्षण का सदा सदुपयोग करें। इस महाशक्ति को कभी भी गँवाएँ नहीं और काल की इस विशालता को देखते हुए सदा ऊँची तथा विशाल दृष्टि से ही समय के अनुसार अपना कर्त्तव्य निश्चय किया करें।
शब्दार्थ- सप्तरश्मिः=सात रस्सियों वाला सहस्राक्षः=हजारों धुरों को चलाने वाला अजरः=कभी भी जीर्ण, बुड्ढा न होने वाला भूरिरेताः=महाबली कालः अश्वः=समय रूपी घोड़ा वहति=चल रहा है, संसार-रथ को खींच रहा है। विश्वा भुवनानि=सब उत्पन्न वस्तुएँ, सब भुवन तस्य=उसके चक्राः=चक्र हैं, उस द्वारा चक्रवत् घूम रहे हैं। तम्=उस घोड़े पर विपश्चितः=ज्ञानी और कवयः=क्रान्तदर्शी लोग ही आरोहन्ति=सवार होते हैं। - आचार्य अभयदेव विद्यालंकार
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