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अंग्रेज अधिकारी को लगाई फटकार महर्षि दयानन्द सरस्वती

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Aryans Cannot be Enslavedलगभग 7 लाख से भी अधिक वीरों और क्रान्तिकारियों के त्याग व बलिदान से 15 अगस्त 1947 ई0 को भारत देश को अंग्रेजों के विदेशी शासन से स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। लगभग ढाई साल बाद 26 जनवरी 1950 ई0 को भारत का संविधान लागू किया गया। हालांकि विधायिका से तो 26 नवम्बर 1949 को संविधान पास हो गया था, परन्तु 26 जनवरी को गणतन्त्र दिवस चुना गया । इसके पीछे कारण यह रहा कि 26 जनवरी 1930 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज का नारा दिया था।

परन्तु 26 जनवरी 1930 को पहली बार पूर्ण स्वराज का नारा नहीं दिया गया था। इससे 60-65 साल पहले महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने पूर्ण स्वदेशी शासन के बारे में अनेकों बार बड़े-बड़े अंग्रेज़ अधिकारियों के सामने निडर होकर कहा था। उनके बाद श्यामजी कृष्ण वर्मा, वीर सावरकर, लाला लाजपतराय, भाई परमानन्द, स्वामी श्रद्धानन्द, रामप्रसाद बिस्मिल, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, अशफाक़उल्ला जैसे वीरों ने पूर्ण स्वदेशी शासन की पुरजोर वकालत की । यह सब देखकर कांग्रेस के भीतर भी सुभाषचन्द्र बोस व वल्लभ भाई पटेल जैसे देशभक्तों ने पूर्ण स्वराज की बात करनी प्रारम्भ कर दी । अब कांग्रेस को एक रखने व टूटने से बचाने के लिए गांधी-नेहरू आदि नेताओं को अन्तत: पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पास करना पड़ा। बहरहाल जो भी हो किसी ओर की पगड़ी अपने सिर बन्धवाकर कुछ कांग्रेस के नेताओं ने ऋषियों के वंशज भोली भारतीय जनता का लाभ उठाकर सारी उम्र अपनी राजनीतिक रोटी सेकी है।

नत्वेवार्यस्य दासभाव:। आचार्य चाणक्य के अनुसार आर्यों (श्रेष्ठ) को गुलाम नहीं बनाया जा सकता। यह बिलकुल सत्य है। क्योंकि देशभक्त क्रान्तिकारी तो हमेशा जंगल के शेर की भांति स्वतन्त्र जीते थे । अपनी इच्छा अनुसार सभी कार्य बिना किसी विदेशी की आज्ञा के करते थे।

आज हमारे भारतवर्ष को गणतन्त्र के सूत्र में बन्धे हुए 65 वर्ष हो चुके हैं। इन वर्षों में हमने बहुत कुछ पाया और बहुत कुछ खोया है। गणतन्त्रता का अर्थ है - हमारा संविधान, हमारी सरकार, हमारे कर्तव्य और हमारा अधिकार। भारत का प्रत्येक नागरिक जब गणतन्त्र दिवस का नाम सुनता है तो हर्ष से आप्लावित हो उठता है। परन्तु जब वही नागरिक इस बात पर विचार करता है कि यह गणतन्त्रता तथा स्वतन्त्रता हमें कैसे मिली? तो उसकी आंखों से अश्रुधारा बह उठती है और कहने लग जाता है कि -
दासता गुलामी की बयां जो करेंगे, मुर्दे भी जीवित से होने लगेंगे।
सही है असह्य यातनायें वो हमने, जो सुनकर कानों के पर्दे हिलेंगे॥

26 जनवरी जिसे गणतन्त्र दिवस के नाम से जाना जाता है। इस दिवस को साकार करने के लिए अनेक वीर शहीदों ने अपने प्राणों की बलि दी थी। गणतन्त्र के स्वप्न को साकार रूप में परिणत करने के लिए लाखों युवा देशभक्त वीरों ने अपनी सब सुख-सुविधाएं छोड़कर स्वतन्त्रता के संग्राम में अपने आपको स्वाहा किया। बहुत से विद्यार्थियों ने अपनी शिक्षा-दीक्षा व विद्यालयों को छोड़ क्रान्ति के पथ का अनुसरण किया। बहनों ने अपने भाई खोये, पत्नियों को अपने सुहाग से हाथ धोने पड़े, माताओं से बेटे इतनी दूर चले गये कि मानो माँ रोते-रोते पत्थर दिल बन गयी। पिता की आशाओं के तारे आसमान में समा गये। अन्त में 26 जनवरी गणतन्त्र दिवस की सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ । सभी में ईश्‍वर की कृपा से इसी प्रकार देशभक्ति बनी रहे ।

वन्दे मातरम् ! जय आर्यावर्त !! आचार्य डॉ. संजय देव (सम्पादकीय) (दिव्ययुग- जनवरी 2016)

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