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विषवृक्ष के मूल को जानना आवश्यक

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अमेरिका की संसदीय समिति ने गहराई से अध्ययन कर एक कटु सत्य उजाकर किया है कि पूरे भारत को आतंकवादियों से भारी खतरा है। दूसरी ओर आतंकी सरगना ओसामा बिन लादेन ने एक ऑडियो टेप के द्वारा धमकी दी है कि यदि अमेरिका में 9 नवम्बर के हमले के षड्यंत्रकारी खालिद शेख मोहम्मद को मौत की सजा दी गई, तो अलकायदा द्वारा बंधक बनाए गए किसी भी अमेरिकी नागरिक को जीवित नहीं छोड़ा जाएगा। यह जानकारी अलजजीरा टेलीविजन से प्रसारित की गई। अमेरिका के संकेत को समझते हुए भारत के गृहमंत्री श्री चिदम्बरम् ने बी.बी.सी. को साक्षात्कार में कहा कि “सही मायनों में आज कोई भी देश सुरक्षित नहीं है। यह मत सोचिए कि आतंकवाद का खतरा सिर्फ भारत को है, यह खतरा विश्‍वव्यापी है। लश्कर-ए-तोइबा भी अलकायदा जैसा संगठन बन गया है, जिसका जाल कई देशों में फैला है।’’ अभी-अभी रूस में भारी विस्फोट हुए हैं, जिसके कारण बड़ी संख्या में जन-हानि हुई है। यह घटना इस कथन की साक्षी है। अमेरिका भारत पर आतंकी हमलों का संकेत देकर भारत-पाकिस्तान को उलझाकर स्वयं निश्‍चिन्त हो जाने की गलत धारणा बनाए बैठा हो सकता है, परन्तु भारत ने इसके समानान्तर सम्पूर्ण विश्‍व को आतंकी खतरों से सावधान होने की बात कहकर उक्त धारणा पर प्रहार किया है।

भारत पर एक अन्य आतंकवादी खतरा और मण्डरा रहा है। वह है नक्सलवादी आतंक। इस आन्दोलन का सूत्रधार तथा शिल्पकार था कानू सन्याल। उसका प्रमुख साथी था चारू मजूमदार। चारू मजूमदार वर्ग-शत्रुओं का मारने का पक्षधर था। नक्सलवाद अपने उद्देश्य में बिल्कुल स्पष्ट है। ये मार्क्स-लेनिनवाद के आधार पर शोषणविहीन समाज की रचना करने में हिंसा का प्रयोग उचित समझते हैं। प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था में इनका विश्‍वास नहीं है। वर्तमान में कानू सन्याल, चारू मजूमदार तथा जंगल सन्थाल दिवंगत हो चुके हैं। परन्तु इनके द्वारा प्रेरित आतंकवादी चिंगारी अभी भी आग उगल रही है। परिणामतः भारी मात्रा में जन-धन को हानि पहुंचा रही है।

मुख्य रूप से जो आतंकवाद चर्चा और चिन्ता का विषय बना हुआ है वह है अलकायदा, लश्करे तोइबा, मुजाहिद्दीन, तालिबान आदि संगठनों द्वारा संचालित आतंकी हत्याएं। समाचार-पत्रों की साक्षी में आतंकवाद भारत के लिए ही नहीं, बल्कि विश्‍व के लिए भयानक उत्पीड़क दिखाई दे रहा है। जिस खतरे की और अमेरिकी संसदीय समिति भारत के लिए संकेत दे रही है, यही वह खतरा है। भारत के गृहमन्त्री ने इसे विश्‍वव्यापी संकट बताया है। इस खतरे की विश्‍वव्यापकता के आधार पर एक प्रश्‍न उभरता है कि ये आतंकवादी आखिर चाहते क्या हैं? तालिबानी हमले तो पाकिस्ता में भी हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में इनके उद्देश्य को जानना अत्यन्त आवश्यक है। वे किस लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं? इस प्रश्‍न की खोज तथा उत्तर पाना आवश्यक है। इसे जानकर ही कुछ उपाय किए जा सकते हैं।

यह तो स्पष्ट है कि आतंकवाद का खतरा विश्‍वव्यापी है। अमेरिका की संसदीय समिति ने जिसे भारत के लिए भारी खतरा बतलाया है, उसी सन्दर्भ में उसका यह भी मानवीय उत्तरदायित्व है कि वह आतंक के प्रमुख कारण, उसके उद्देश्य और वे जिस लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं, उनकी खोज कर विश्‍व समुदाय को सचेत करे, ताकि आतंकवादी संगठनों से उनके समाधान की चर्चा की जा सके और यदि उनके उद्देश्य, उनके मन्सूबे अमानवीय हैं, तो विश्‍वस्तर पर शक्ति संगठित कर उसका सामना किया जा सके। नक्सलवादी आतंक का उद्देश्य तो स्पष्ट है। परन्तु तालिबान तथा ऐसे ही अन्य आतंकी संगठनों द्वारा संचालित आतंकी गतिविधियों के उद्देश्य, उनके लक्ष्य स्पष्ट रूप से सबके सामने नहीं हैं। क्योंकि इस्लामी राष्ट्र पाकिस्तान में भी तालिबान आतंकी गतिविधियाँ संचालित कर रहा है। अन्य देशों में होने वाली आतंकी हरकतों के कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं, परन्तु पाकिस्तान में मारने व मरने वालों दोनों पक्ष एक ही इस्लाम मजहब को मानने वाले हैं।

इस सन्दर्भ में विश्‍व समुदाय अर्थात् संयुक्त राष्ट्र-संघ का प्रमुख उत्तरदायित्व हो जाता है कि वह विश्‍वव्यापी आतंकवाद के उद्देश्यों की खोज कर विश्‍व जनमत को सावधान करें। विष-वृक्ष की डालियों को काटने से वृक्ष नष्ट नहीं होगा। उसकी जड़ पर प्रहार करना होगा। बीज और जड़ ही उस वृक्ष के मूल कारण हैं। अतः विष-बीज और उसकी जड़ों की पहिचान आवश्यक है।

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